महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का 12वें दीक्षांत समारोह
अजमेर। राज्यपाल हरीभाऊ बागडे ने शनिवार को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में कहा कि परंपरा के साथ आधुनिक ज्ञान की दृष्टि से ही भारत विश्व गुरु बनेगा।
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का 12वां दीक्षांत समारोह शनिवार को आयोजित हुआ। इसमें वर्ष 2023 एवं 2024 के स्वर्ण पदकों का वितरण किया गया। साथ ही विद्या वाचस्पति उपाधि धारकों को भी उपाधियां वितरित हुई। इस समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल बागडे ने कहा कि भारत की समृद्ध वैज्ञानिक परंपरा रही है। इसके साथ आधुनिक ज्ञान की दृष्टि को मिलाकर उपयोग करने से भारत विश्व गुरु के पद पर आसीन होगा।
महर्षि भारद्वाज के द्वारा वर्णित विमान विज्ञान के आधार पर 1895 में शिवकर बापूजी तलपे ने विमान उड़ाया था। उन्होंने चिरंजिलाल वर्मा से संस्कृत ग्रंथों की शिक्षा ग्रहण की थी। इसके बाद ही 1903 में राइट बंधुओं ने विमान बनाया। इसी प्रकार गुरुत्वाकर्षण के बारे में न्यूटन से बहुत ही पहले कॉपरनिकस और उससे भी पहले भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत दिया था।
उन्होंने कहा कि विनोबा भावे ने आजादी के तत्काल पश्चात् शिक्षा पद्धति में बदलाव की आवश्यकता बताई थी। लार्ड मैकाले ने भारत को गुलाम बनाने के लिए जो शिक्षा पद्धति चलाई वह अभी तक चल रही है। नई शिक्षा पद्धति भारत के समाज, नागरिक और संस्कृति के अनुसार है। नई शिक्षा नीति से निकले हुए विद्यार्थियों के माध्यम से समाज को आगामी कुछ समय में ही परिणाम मिलने लगेंगे।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में इस प्रकार के पाठ्यक्रम तैयार होने चाहिए। जिससे समाज में रोजगार का सृजन हो सके। ज्ञान की विभिन्न शाखाओं का अध्ययन कर युवा उद्यमी बनने चाहिए। इससे देश के विकास में उनका योगदान सुनिश्चित होगा। विश्वविद्यालय को विद्यार्थियों में टैलेंट का विकास करना चाहिए। शिक्षा मनुष्य का निर्माण करने वाली हो। महर्षि दयानंद सरस्वती मानव मूल्यों के साक्षात उदाहरण रहे है।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में कुलपति को कुलगुरु कहना प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति की पुनस्र्थापना की दिशा में एक कदम है। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति परिपूर्ण थी। उस समय शिक्षक को आचार्य कहा जाता था। आचार्य का आचरण उचित होता है। साथ ही वह अन्य व्यक्तियों का आचरण उचित करने की क्षमता भी रखता है। नई शिक्षा पद्धति का महत्व वृहद है। देश के 400 कुलगुरुओं तथा 1000 से अधिक शिक्षाविदों ने दो वर्षों तक गहन चर्चा के उपरांत इस नीति को बनाया है। यह शिक्षा पद्धति विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता में वृद्धि करने में कारगर सिद्ध होगी।
उन्होंने कहा कि अर्जित विद्या का व्यवहारिक उपयोग समाज हित में और राष्ट्रहित में किया जाना चाहिए। शिक्षा एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। इसीलिए प्राध्यापकों और अध्यापकों को नई पुस्तकें पढ़ने के साथ ही नई विद्या भी प्राप्त करनी चाहिए। विद्यार्थी को भी पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें को भी पढ़ने में अपना समय देना चाहिए। इससे उनकी बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होगी।
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि दीक्षांत समारोह माता-पिता, परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति दायित्वों के स्मरण का दिन होता है। शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक प्रक्रिया है। आज के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और डिजिटल युग में हमें विश्व के साथ-साथ चलना होगा। बढ़ती तकनीक में आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने समाज को बहुत प्रभावित किया है। सोशल मीडिया और सार्वजनिक जीवन पर इसके दुष्परिणाम देखे जा सकते हैं। नई पीढ़ी को इन दुष्प्रभावों से बचाए जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति ने चार आश्रमों और चार पुरुषार्थों के माध्यम से शिक्षा व्यवस्था दी है। नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला के शिक्षा केंद्रों, मैत्रेई, गार्गी, अपाला, घोषा, विश्ववारा जैसी विदुषियों और वराह मिहिर, आर्यभट्ट, चरक, सुश्रुत, आश्वघोष, चाणक्य एवं समर्थ गुरु रामदास जैसे शिक्षकों के कारण भारत विश्व गुरु रहा है। विद्यार्थियों को छत्रपति संभाजी महाराज और महाराणा सांगा जैसे पूर्वजों के पद चिह्वों का अनुकरण करना चाहिए। क्रूर आक्रांताओं को सम्मान देने वाले लोग इस भारत और भारत की संस्कृति के नहीं हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि युवाओं में राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण और त्याग हो।