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15 August 2018-नक्सली साए में रहे 62 गांवों के बच्चे पहली बार देखेंगे फहरता तिरंगा - Sabguru News
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नक्सली साए में रहे 62 गांवों के बच्चे पहली बार देखेंगे फहरता तिरंगा

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नक्सली साए में रहे 62 गांवों के बच्चे पहली बार देखेंगे फहरता तिरंगा

सुकमा। छत्तीसगढ के बस्तर संभाग के धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के 62 गांवों के 300 आदिवासी बच्चे इस बार 15 अगस्त को जिंदगी में पहली बार स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहरते हुए देखेंगे।

कलेक्टर जय प्रकाश मौर्य ने बताया कि जिला प्रशासन की इस अभिनव पहल के लिए अत्यंत संवेदनशील कोंटा विकासखण्ड के अंदरूनी हिस्सों के करीब 300 बच्चों को योजना के पहले चरण के तहत कुछ दिन पहले जिला मुख्यालय लाया गया, इन बच्चों ने हमेशा नक्सली तांडव ही देखे थे, पहली बार बस में चढ़ कर बाहरी दुनिया देखी। अब इनकी मानसिकता में बदलाव लाने की कोशिश की जा रही है।

प्रशासन के प्रतिनिधि करीब 10 साल से कम उम्र के इन बच्चों को नहाने से लेकर नाखून काटने और ठीक से कपड़े पहनने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। बच्चों को हिंदी नहीं आने की वजह से इनके लिए अनुवादक रखे गए हैं।

उन्होंने बताया कि 2008 में सलवा जुडूम प्रांरभ होने के समय इन इलाकों में हिंसा के कारण 62 गांवों के स्कूलों को अन्य जगहों पर स्थानांतरित कर दिया गया था। उस समय वहां पढ रहे करीब आठ हजार बच्चों को पोटाकेबिन आश्रम छात्रावासों में रखा गया, जहां वे पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन 2008 के बाद पैदा हुए लगभग तीन हजार से अधिक बच्चों का सर्वेक्षण कर ये पहल की गई है, इनमें 13 सौ से अधिक बालिकाएं भी हैं।

उन्होंने बताया कि इन बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण भी कराया जा रहा है, इसके बाद इनके आधार कार्ड बनाये जाएंगे। कल 15 अगस्त को जिला मुख्यालय पर इन्हें स्वतंत्रता दिवस का पर्व दिखाया जाएगा। अब तक राष्ट्रीय पर्वों पर सिर्फ नक्सलियों के काले झंडे देखते आए बच्चे पहली बार तिरंगा फहरते देखेंगे। इसके बाद इन्हें विभिन्न पर्यटन स्थलों का भ्रमण करा कर वापस गांव भेजा जाएगा, जहां उनकी पढ़ाई शुरू होगी।

मौर्य ने बताया कि कोंटा विकासखण्ड के 12वीं पास छात्र- छात्राओं का चयन कर उन्हें शिक्षादूत बनाया जा रहा है, जो गांवों में जाकर बंद स्कूलों को खोलेंगे। इसके लिए 62 गांवों में 62 झोपड़ी बनायी गई है। इसके पूर्व उन्हें पंचायत स्तर से एक माह का प्रशिक्षण दिया गया। ये प्रतिमाह पांच हजार रूपए मानदेय के रूप में कार्य करेंगे।

गांव के कलांगतोंग, आमा, रामू, लच्छू और लक्ष्मी ने अनुवादक द्वारा बताया कि वे लोग हमेशा दहशत में रहते थे। पुलिस और नक्सलियों के बीच गोलीबारी और नक्सलियों के आंतक के चलते घर से नहीं निकलते थे। गांव से पहली बार बाहर आकर बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं।