SABGURU NEWS | सदियों से लगने वाले इस गर्दभ मेले में 500 रूपये प्रति जानवर लिखाई खर्च शुल्क वसूला जाता है।
मेले मे दिल्ली, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, पंजाब के अलावा प्रदेश के चित्रकूट,बांदा, फतेहपुर, उन्नाव, इलाहाबाद, मिर्जापुर आदि जिलो से एक जाति विशेष धोबी के अलावा व्यापारी अपने जानवरो को बेचने एवं क्रय करने आते है।
शीतला धाम कडा मे आयोजित होने वाले गदर्भ मेला धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। कन्धपुराण वर्णित गधा शीतला देवी की सवारी माना जाता है। इसकी रचना स्वयं शंकर भगवान ने की है। गधे को दूर्वा घास पसन्द है इसलिए दूर्वा घास गणेश जी को चढाई जाती है ।
इस मेले मे धोबी विरादरी के लोग आकर पवित्र गंगा में वर्ष में एक बार अपने गधों को भी डुबकी लगवाते हैं फिर गधों को रंग–बिरंगे रंगों से रंग कर शीतला देवी के मंदिर की परिक्रमा कराते हैं और स्वयं भी परिक्रमा कर देवी मंदिर में माथा टेकते हैं। इसके बाद ही मेले में अपने जानवरों को बेचते है। अनादिकाल से यहां धोबी समुदाय के लोगों का मानना है कि देवी धाम कड़ा से खरीदे गए गर्दभ, खच्चर एवं घोड़े तिजारत में भी फलीभूत होते है।
गर्दभ मेले में धोबी समुदाय एवं सपेरा लोग बेटों का विवाह भी निश्चित करते हैं। कलन्दर समुदाय के लोग भी यहां भारी संख्या में सगाई करते हैं।
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