सबगुरु न्यूज। कोरोना महामारी से देश की जनता डर के साए में जीवन जीने को मजबूर है। एक ओर खतरनाक वायरस से जान बचाने का डर, दूसरी ओर केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा लगाई गई बंदिशों से लोग सहमे हुए हैं। इस महामारी को लेकर आज देश के हालात आपातकाल (इमरजेंसी) जैसे नजर आने लगे हैं। आज 25 जून है । यह तारीख जब-जब आती है तब देश अतीत को एक बार जरूर याद करता है। हालांकि आज की नई पीढ़ी को उस दौर की घटना याद नहीं होगी, लेकिन जो इस समय 60 वर्ष से ऊपर हैं उनके जेहन में दहशत के साए में गुजारे 21 माह जरूर याद होंगे।
आइए हम भी आज आपको 45 वर्ष पहले लिए चलते हैं और भारतीय लोकतंत्र इतिहास के कुछ पन्ने पलटते हैं। 25 जून 1975 देश के लोकतंत्र में सबसे काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। इसी तारीख को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल यानी इमरजेंसी लगाने की घोषणा की थी। देश में आपातकाल आधी रात को लगी थी, अगली सुबह 26 जून को पूरा देश ठहर सा गया था। इमरजेंसी लागू होने के बाद जनता एक ऐसे अंधेरे में डूब गई थी, जहां सरकार के विरोध का मतलब जेल था। उस 21 महीनों के दौरान जब अपने अधिकारों को मांगने के लिए भी जनता के पास कोई रास्ता नहीं बचा था, क्योंकि अखबारों में वही छपता था, जो सरकार चाहती थी, रेडियो में वही समाचार सुनाई देते थे, जो सरकार के आदेश पर लिखे जाते थे। देश में इतनी बंदिशें थोपी गई थी कि विरोध का मतलब सीधे ही जेल भेज दिया जाता था। जिन लोगों ने इमरजेंसी के खिलाफ विरोध किया, उनको भारी कीमत भी चुकानी पड़ी थी।
इंदिरा गांधी के खिलाफ हाईकोर्ट का फैसला ही बना देश में इमरजेंसी का कारण
बता दें कि देश में अभी तक इमरजेंसी लगाने का मुख्य कारण इंदिरा गांधी के खिलाफ आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को ही माना जाता है। आपातकाल की नींव 12 जून 1975 को ही रख दी गई थी। इस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया था और उनके चुनाव को खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं, इंदिरा पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर और किसी भी तरह के पद संभालने पर रोक भी लगा दी गई थी।
बता दें कि राज नारायण ने वर्ष 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों चुनाव हारने के बाद मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल कराया था। जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने यह फैसला सुनाया था। हालांकि 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी। एक दिन बाद जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के इस्तीफा देने तक देश भर में रोजाना प्रदर्शन करने का आह्वान कर दिया। उसके बाद देश भर में इंदिरा गांधी के खिलाफ हड़तालें, विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई सहित कुछ नेताओं के नेतृत्व में सड़क पर उतर कर इंदिरा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गया था। इन विपक्षी नेताओं के भारी दबाव के आगे भी इंदिरा आसानी से सिंहासन खाली करना नहीं चाहती थीं। दूसरी और इंदिरा के पुत्र संजय गांधी कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता जाए। उधर विपक्ष सरकार पर दबाव बना रहा था। आखिरकार इंदिरा गांधी ने 25 जून की रात देश में आपातकाल लागू करने का फैसला लिया। आधी रात इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपाताकाल के फैसले पर दस्तखत करवा लिए। उसके बाद देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया था, जिसे भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय भी कहा जाता है।
देश में 21 महीनों तक सरकार के हर फैसले को मानने के लिए बाध्य रही जनता
देश में इमरजेंसी के दौरान इंदिरा सरकार के हर फैसले को मानने के लिए बाध्य रही जनता। विरोध करने का मतलब सजा के तौर पर माना जाता था। उस समय इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने देश में हजारों लोगों की जबरदस्ती ‘नसबंदी’ भी करा दी थी, जिससे देश में तानाशाही का माहौल बन गया था। हजारों लोग नसबंदी के डर के मारे इधर-उधर छुपते फिर रहे थे। 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे। इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर माना जाता है, पूरे देश में जनता की आजादी पूरी तरह समाप्त कर दी गई थी ।सरकार ने पूरे देश को एक बड़े जेलखाना में बदल दिया गया था।
आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। आपातकाल में जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में पूरा विपक्ष एकजुट हो गया। पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ आंदोलन छिड़ गया, सरकारी मशीनरी विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में लग गई थी। अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव समेत विपक्ष के तमाम नेता जेल में ठूंस दिए गए। संजय गांधी की मनमानियां सीमा पार कर गई थीं। बता दें कि 36 साल बाद आखिरकार इमरजेंसी में जीने तक का हक छीन लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी 2011 में अपनी गलती मानी थी, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि देश में आपातकाल के दौरान इस कोर्ट से भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था।
देश की जनता ने इंदिरा गांधी से आपातकाल का लिया था बदला
देशभर में विपक्षी नेताओं और जनता के बीच आपातकाल को लेकर गुस्सा पूरे चरम पर पहुंचा था। इंदिरा सरकार के विरोध में लोगों का आक्रोश बढ़ता जा रहा था। इंदिरा गांधी भी अब समझने लगी थी कि देश में इमरजेंसी बहुत दिनों तक थोपी नहीं जा सकती है, आखिरकार 21 माह के बाद देश से इमरजेंसी खत्म कर दी गई। उसके बाद धीरे-धीरे विपक्षी नेताओं को जेल से रिहा भी कर दिया गया। वर्ष 1977 में देश एक बार फिर से लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गया था। देशवासियों के गुस्से को देख इंदिरा भी इस बात को जान रही थी कि इस बार सत्ता में वापसी आसान नहीं होगी।
आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण (जेपी) सबसे बड़े नेता के रूप में उभरकर सामने आए थे। उस दौरान इंदिरा सरकार के खिलाफ जेपी के चलाए गए आंदोलन को आज भी लोग नहीं भूले हैं। जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची, इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा। मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ। 1977 में फिर आम चुनाव हुए, इन चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई थी। इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं। देश में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई 80 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बने, ये आजादी के तीस साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार