इटावा। उत्तर प्रदेश में रूक रूक कर हो रही बारिश के बीच राजस्थान में कोटा बैराज से छोड़े जा रहे पानी से उफनायी चंबल नदी में दुर्लभ प्रजाति के जलीय जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
कोटा बैराज से लगातार छोडे जा रहे जल से चंबल नदी मे पाये जाने वाले दुर्लभ प्रजाति के जलचरो की मौतो की ना केवल शंका जताई जा रही है बल्कि इस बात को दावे के साथ पेश किया जा रहा है कि चंबल नदी मे घडियाल,मगरमच्छ और कछुए के सत्तर फीसदी तक बच्चो की मौत हो चुकी होगी।
इटावा में चंबल सेंचुरी के जिला वनाधिकारी डा आंनद कुमार ने कहा कि बारिश के समय डैम से छोड़े जाने वाला पानी जमा किया हुआ गंदा होता है जिसमें जैविक आक्सीजन (बीओडी) की मात्रा बेहद कम होती है जो जलचरों के जीवन के लिये खतरे का सबब बनती है। ऐसी संभावनाए इस दफा भी जताई जा रही है चंबल की बाढ के दौरान जलचरो को खासा नुकसान हुआ होगा लेकिन अभी प्रमाणिक तौर पर कुछ भी स्पष्ट नही किया जा सकता है ।
राजस्थान,मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश मे प्रवाहित चंबल नदी यहां खतरे के निशाने को पार कर चुकी है जिसके चलते तटीय इलाको में बसी ग्रामीण आबादी के लिये खासी मुसीबत खडी हुई है । चंबल नदी को सेंचुरी को दर्जा मिला हुआ है और चंबल नदी मे दुर्लभ प्रजाति के कई सैकडा जलचर है जिनके नष्ट होने की आशंका जताई जा रही है।
देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान की नमामी गंगे परियोजना के संरक्षण अधिकारी डा.राजीव चौहान बताते है कि जब कभी भी चंबल जैसी नदियो मे डैम का पानी छोडा जाता है । चंबल मे प्रजनन के बाद पैदा हुए घडियाल, मगरमच्छ और कछुए के बच्चे गंदे पानी की भेंट चढ जाते है जिनका प्रतिशत एक अनुमान के अनुसार करीब सत्तर फीसदी के आसपास होता है।
चंबल नदी में घड़ियालों, मगर, डाल्फिन, कछुये के अलावा करीब दौ सौ से अधिक प्रजाति के वन्य जीवों का संरक्षण मिला हुआ है लेकिन सेंचुरी अधिकारी और कर्मी वन्य जीवों के संरक्षण के नाम पर खुद को मजबूत करने में लगे हुये हैं क्योंकि इन पर किसी का कोई दबाव नहीं है।
’चंबल नदी के पानी से तटीय क्षेत्र के खेत पूरी तरह से जलमग्न हैं। खतरे के निशान को करीब 4 मीटर पार कर चुकी चंबल नदी इंसानी तौर पर नुकसान पहुंचा पाने की दशा मे नही होती है क्यो कि इस नदी का प्रभाव रिहायशी इलाके के बजाय पूरी तरह से जंगल यानि बीहडी इलाके से हो करके होता है।
पंचनदा के पास स्थित गांव अनेठा के सुरेंद्र सिंह बताते है कि चंबल नदी के व्यापक जल स्तर का सबसे बडा विहंगम सीन देखने को पंचनदा मे मिल रहा है। जहा पर चंबल के साथ साथ यमुना,क्वारी सिंधु और पहुज नदी का मिलन होता है। इस समय इस इलाके मे करीब 3 से 5 किलोमीटर के दायरे मे जल ही जल का समुद्र नजर आ रहा है। पंचनदा मे चंबल का जल वापस इटावा की ओर लौटने लगता है इस कारण यमुना नदी का जल स्तर बढना शुरू हो जाता है।
इटावा जिले में यमुना, चंबल, क्वारी, सिंध, पहुज, पुरहा, अहनैया, सेंगर और सिरसा कुल नौ नदियां बहती हैं। जिले के आठ विकास खंडों मे बह रही इन नदियों के दोनों ओर करीब 60 गांव बसे हैं । बर्ड सेंचुरी घोषित होने के कारण फिलहाल चंबल नदी में जल यातायात और शिकार प्रतिबंधित है लेकिन यहां नाव के बजाय डोंगियां खूब चलती हैं। अन्य नदियों खासकर पचनद इलाके में लोग सैर सपाटा और पर्यटन के इरादे से रोजाना पहुंचते हैं।