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रोशन न हो सका तले का अंधेरा - Sabguru News
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रोशन न हो सका तले का अंधेरा

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सबगुरु न्यूज। दिये की बदनसीब होतीं है कि वो सबको रोशन करने के बाद भी खुद के तले को अंधेरे मे छोड़ देता है जबकि वही अंधेरा उसका अंतिम साथी होता है। जब दिये का तेल खत्म हो जाता है या बाती जल कर खाक हो जातीं हैं तो वो प्रकाश दियें को अकेला छोड़ कर चला जाता है और दिये के अर्थ को बै अर्थ वाला बना जाता है।

जीवन की यही खूबसूरत सच्चाई होतीं हैं व्यक्ति अपनें पांवों तले जली आग को छिपा कर पहाडों पर जली आग को दिखा कर अपनी समस्याओं से सब का ध्यान हटा देता है और वही समस्या उस व्यक्ति के किरदार को खत्म कर देती हैं और दिये के तले का अंधेरा बन जातीं हैं , एक मजबूत उस पहलवान की तरह जिसको ह्रदय रोग की बीमारी है।

दिये कोतो इसलिये पहचाना जाता है की वो अपने को नहीं तेल ओर बाती को जलाता है। वो खुद नहीं जलता इसलिए वो अंधेरे मे ही रह जाता है ओर अपने आधार के साथ न्याय नहीं कर पाता। जीवन मे कुछ ऐसा ही होता है जब व्यक्ति अपने कुनबे की समस्याओ को हल न कर दूसरे कुनबे का हमदर्द बनने की कवायद में जुट जाता है तो वो ना तो दूसरों के कुनबे का बन पाता है और ना ही अपने कुनबे का रह पाता है।

दूसरों को बुरा कहना आसान होता है और अपनी बुराई को उजागर नहीं होने दी जातीं हैं और इसी के कारण उजालो के बाद भी आज विश्व स्तर पर गहरे अंधेरे हर क्षेत्र में छाये रहते है ।

संत जन कहतें है कि हे मानव जो वास्तव मे सुधारक होते हैं उन्हे बाहु बली कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते उन्हे यीशु की तरह सूली पर चढ़ा दिया जाता है और शैतान खुद सुधारक होने का नकली जामा पहन कर अपने आप को स्थापित करनें का प्रयास करता है।

इसलिए हे मानव तू अपने तले का अंधेरा मिटाने के लिए खुद त्याग कर ओर एक फकीर की तरह सृष्टि के मालिक से रहम की भीख मांग तेरे नीचे का अंधेरा मिट जायेगा ओर तू वास्तव मे सुधारक बन जायेगा।

सौजन्य : भंवरलाल