सबगुरु न्यूज-सिरोही/आबूरोड/माउंट आबू। माउण्ट आबू उपवन संरक्षक कार्यालय मे ब्रह्माकुमारी संस्थान के पदाधिकारी व एक अन्य व्यक्ति माउण्ट आबू वन्यजीव सेंचुरी की करीब पांच बीघा जमीन पर हुए निर्माण से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए। इससे माउण्ट आबू उपवन संरक्षक कार्यालय इस भूमि को माउंट आबू वन अभयारन्य की दावेदारी मानते हुए तलहटी क्षेत्र में अतिक्रमित भूमि पर बनी बहुमंजिला इमारत, सर्वेंट क्वार्टर, सडक आदि निर्माण तोडने के आदेश देते हुए वनभूमि को कब्जे में लेकर पर्यावरण बहाली के आदेश जारी किए हैं।
इसमें होने वाले व्यय को संबंधित पक्षों से वसूलने का आदेश देते हुए ब्रहमाकुमारी संस्थान के पदाधिकारी के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवहेलना, वन्यजीवों के आश्रय स्थलों को नुकसान पहुंचाने और वन्यजीव अधिनियम 1972 का उल्लंघन करने का पृथक वाद सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत करने का भी आदेश दिया है।
सूत्रों के अनुसार यह आदेश राजस्थान के कुछ विरले आदेशों में है क्योंकि अब तक उपवन संरक्षक कार्यालय वाइल्ड लाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट की धारा 34(2) के तहत वन क्षेत्र की अतिक्रमिक भूमि से अवैध निर्माणों को हटाने की अनुमतियां नहीं हुई हैं। ऐसे निर्णय एसीएफ न्यायालयों द्वारा ज्यादा हुए हैं, जो कि जिला कलक्टर न्यायालय में अपील किए जा सकते हैं, लेकिन वाइल्ड लाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट की धारा 34-2 के तहत डीसीएफ कार्यालय से किए जाने वाले निणर्यों की अपील सुप्रीम कोर्ट या फिर संभवतः हाईकोर्ट में ही हो सकती है।
-यह है मामला
सूत्रों के अनुसार संस्थान के ही कुछ नाराज लोगों ने मुख्यमंत्री को संस्थान द्वारा वन भूमि पर अतिक्रमण करने की शिकायत पोर्टल पर दर्ज करवाई थी। इसका लगातार फाॅलो अप देने पर राज्य सरकार की निगरानी में ही इस मामले को देखा जाने लगा।
इसके लिए 13 सितम्बर, 2017 को जिला कलक्टर द्वारा जारी आदेश के बाद वन विभाग और राजस्व विभाग का संयुक्त दल गठित करके सर्वे करवाया गया। सर्वे में माउण्ट आबू वनक्षेत्र की 5 बीघा वन भूमि पर अतिक्रमण होना पाया गया। अतिक्रमण की पुष्टि के बाद माउण्ट आबू वनजीव सेंचुरी के आबू तलेटी वन खड के क्षेत्रीय वन अधिकारी ने 18 अक्टूबर को शांतिवन के ब्रह्माकुमारीज के सेकेट्री जनरल, आबूरोड ब्रह्माकुमारी संस्थान के मैनेजर तथा माउण्ट आबू के पांडव भवन निवासी शशिकांत पुत्र गंगाराम व्हटकर के खिलाफ माउण्ट आबू वन्यजीव अभयारक्ष्ण की वन भूमि के आरक्षित वनखण्ड आबू नम्बर 1 के ग्राम आबू नम्बर 2 की करीब पांच बीघा वनभूमि पर अतिक्रमण करने की वन्यजीव अधिनियम 1972 की धारा 34-2 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
-नोटिस के बाद भी नहीं प्रस्तुत किए दस्तावेज
जांच के दौरान संबंधित पक्षों को क्षेत्रीय वन अधिकारी ने कई बार चिन्हित पर हुए निर्माण व उसकी भूमि पर अधिकार के संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा गया।
ब्रहमाकुमारी संस्थान के पदाधिकारी संबंधित पक्ष को जांच के दौरान माउण्ट आबू वन्यजीव अभयारण्य की वन भूमि के आरक्षित वन खण्ड आबू नम्बर 1 के ग्राम आबू नम्बर 2 की 4 बीघा 10 बिस्व वन भमि पर बहुमंजिल भवन निर्माण करने, अवैध खनन कर चट्टानों को तोडकर गुफाएं बनाने, सडक व दीवार बनाने, श्रमिक क्वार्टर बनाने, कटीले तारों से फेंसिंग करने, वन्यजीवों के आश्रय स्थल को नुकसान पहुंचाने व वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का उल्लंघन करने के मामले तथा माउण्ट आबू के पांडव भवन निवासी शशिकांत पुत्र गंगाराम व्हटकर ने वन खण्ड आबू नम्बर 1 के ग्राम आबू नम्बर 2 की वन भूमि पर सडक व दीवार बनाकर, कंटीले तारों से फेंसिंग वाली भूमि पर अपने अधिकार से संबंधित कोई साक्ष्य व दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए।
आदेश के अनुसार इन लोगों को 2 नवम्बर, 10 नवम्बर, 16 नवम्बर, 17 नवम्बर व 22 नवम्बर को नोटिस देकर अपना पक्ष रखने को कहा गया था। इसी तरह उपवन संरक्षक कार्यालय ने भी सुनवाई के दौरान 4, 11 व 20 दिसम्बर को संस्थान प्रतिनिधियों को इस संबंध में दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा, लेकिन दस्तावेज व साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए िजिससे यह प्रतीत हो सके कि वह अतिक्रमी नहीं हैं।
इनके अधिकवक्ताओं द्वारा सर्वे में शामिल नहीं होने की दलील दी गई, जिसके जवाब में वन विभाग के अधिवक्ता ने बताया कि नायब तहसीलदार आबूरोड द्वारा संस्थान के पदाधिकारियों को 6 व 9 अक्टूबर को नोटिस जारी करके संयुक्त सर्वे में शामिल होने को अनुरोध किया था, लेकिन वह शामिल नहीं हुए।
-कई न्यायालयों में भी गए
आदेश में इस बात का उल्लेख है कि माउण्ट आबू वन खण्ड की पांच बीघा भूमि पर अतिक्रमण का मामला वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 34-2 के तहत दर्ज करने को लेकर ब्रहमाकुमारी संस्थान के पदाधिकारी कई न्यायालयों में भी गए, लेकिन राहत नहीं मिली।
29 नवम्बर को राजस्थान हाईकोर्ट में मामला न्यायालय में विचाराधीन होने की दलील देते हुए एफआईआर को स्टे करने की अपील की गई वहीं न्यायाधीश पुष्पेन्दसिंह भाटी के न्यायालय में माउण्ट आबू के अवतारसिंह राणा वर्सेज राज्य सरकार के मामले में आदेश दिए गए कि मामले को वन्यजीव अधिनियम की धारा 34-2 के तहत दर्ज करके संबंधित पक्षों को सुना जाए।
इसी तरह सिविल न्यायाधीश आबूरोड में निषेधाज्ञा चाही जिसे न्यायालय ने 10 नवम्बर को खारिज कर दिया। संस्थान के बीके भरत पुत्र त्रियम्बक सुरवसे ने वन विभाग व तहसीलदार आबूरोड के खिलाफ माउण्ट आबू एसडीएम कोर्ट में प्रार्थना प्रत्र प्रस्तुत किया व एसीजेएम कोर्ट आबूरोड से निषेधाज्ञा भी मांगी थी।
आदेश में यह उल्लेख है कि राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी संस्थान पदाधिकारी विभिन्न न्यायालयों में गए, लेकिन उपवन संरक्षक कार्यालय में अपना पक्ष रखना नहीं पहुंचे। आदेश में इस प्रक्रिया को न्यायालय व सरकार के समय को नष्ट करने वाला बताया।
-इनका कहना है…
ब्रह्मकुमारी संस्थान के पदाधिकारियो को अपना पक्ष रखने के लिये लिखित मे नोटिस जारी किये गये थे। पेशियो मे मेन भी जमीन पर हक होने का कोई सबूत पेश नही किया गया है। ऐसे मे क्षेत्रिय वन अधिकारी को आरक्षित वन क्षेत्र की भूमि पर किये गये निर्माण को तोडने के आदेश जारी किये गये है।
हेम्ंतसिंह, उपवनअधिकारी, वनअभ्यारण्,माउंटआबू ।