सबगुरु न्यूज। पोष मास की परछाईयों से बचपन में पहुंचा माघ मास का महीना कपकंपाती ठंड से होश उडा रहा था। चारों तरफ सन्नाटा छा रहा था। इसी बीच एक युवक अपने मित्र के गांव में रात्रि सत्संग मे जा रहा था। कहर ढहाती ठंड में वह कांपता हुआ चला जा रहा था।
जैसे तैसे गांव के नजदीक आया तो सड़क के एक ओर खुले मैदान में आग जलती हुई दिखी। उसे रहा ना गया ओर वह रूककर आग से तपने लग गया। आग की आंच ज्यादा ना थी, बुझने वालीं थीं तब भी तपता रहा। थोड़ी राहत मिली ओर गांव में जाकर संत्सग का आनंद लेने लग गया।
संत्सग समाप्ति के बाद सो गया। सोते ही उसे एक सपना दिखा। एक बूढ़ी औरत उसे कह रहीं है कि बेटा तुझे ठंड तो नहीं लग रही हैं। तब युवक बोला माताजी ठंड तो मुझे रास्ते में आते हुए बहुत लग रही थीं लेकिन मेरी आधी ठंड तो रास्ते में आ रहा था जब ही दूर हो गई क्योकि रास्ते मे आग जली हुई मिल गई। मैं ठंड के कांप रहा था इसलिए में तपने के लिए बैठ गया। लेकिन आग थोड़ी देर बाद बूझने से मेरी आधी ठंड शरीर मे ही रह गई। अब में रजाई ओढकर सो गया हू आधी ठंड अब खत्म हो जाएगी।
बूढ़ी औरत बोली हे बेटा में तेरी मदद नहीं कर सकी। मुझे माफ करना। जब तू सड़क से नीचे उतर कर तपने के लिए आया था तो मेरी लाश पूरी जल चुकी थी और थोड़े से अंगारे और दाग़ की लकड़ियां ही चल रही थी। जब तू तपने लगा तो मुझे बहुत दया आई। लेकिन मे असहाय थी और तेरी मदद नहीं कर सकी।
तुझे यू कांपता देख मेरी आत्मा से रहा ना गया और तेरे पीछे पीछे चली आई। आत्मा का नाम सुनते ही उस युवक की नींद उड़ गई ओर वह डर से कांपने लगा। सारा सपना उसकी आंखों में घूमता रहा। सुबह होते ही उस युवक ने अपने मित्र को सपने की बात बताई। तब मित्र ने कहा भैया तुम वास्तव में तपे थे क्या। तब उस युवक ने कहा मित्र हां। तब मित्र ने कहा भैया वहां तो शमशान थ। वहां टीन शेड नहीं होने के कारण तुम जान ना सके की वो शमशान है। यह सुनते ही उस युवक के होश उड़ गए।
संत जन कहते हैं कि हे मानव इस कहर ढाती ठंड में आत्मा भी लोगों के लिए चिंतित होती है कि येन केन प्रकारेण मानव को राहत मिले और यही राहत व्यक्ति के जीवन को सुरक्षित रखने वाली होतीं है। अतः हे मानव तू दया कर और उन जरूरतबंद लोगों की गर्म कपड़े, बिस्तर और रेन बसेरों की व्यवस्था कर क्योंकि तेरी ये मदद ही तेरा शुभ कर्म है और उसी में परमात्मा का निवास रहता है।
सौजन्य : भंवरलाल