सबगुरु न्यूज। साल 2018 में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी को दिन के एक बजकर सैंतालीस मिनट पर होगा। दिन की संक्राति होने से इसका पुण्य काल सायंकाल तक है। संक्राति के दिन माघ मास की कृष्ण त्रयोदशी रविवार तथा मूल नक्षत्र है। संक्राति का वाहन महीष और उप वाहन ऊंट है।
काले रंग के वस्त्र धारण कर महीष पर सवार होकर तथा खप्पर में दही का भक्षण करती हुई अपनी प्रगल्भावस्था में दिन के दोपहर बाद आ रहीं है जो कि शुभ संकेत नहीं दे रही। वणिज करण में संक्राति का प्रवेश काल यह उच्च आय वर्ग और व्यापारियों के लिए शुभ संकेत नहीं देती तथा कई प्रकार के करों से व्यापारियों को परेशान कर सकती है।
ग्रहों एवं नक्षत्रों का हमारे जीवन पर विशेष प्रभाव पडता है। इनकी गति स्थिति और उदय अस्त तथा वक्री मार्गी होने का अलग अलग प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है। पृथ्वी अपने अक्ष व कक्ष दोनों पर नियमित भ्रमण करती है। अक्ष पर भ्रमण करने के दिन और रात होते हैं इसी तरह कक्ष पर भ्रमण करने के कारण ऋतु परिवर्तन होता है।
यह भी जानते हैं कि पृथ्वी साल में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी कर लेतीं हैं जो वार्षिक गति कहलाती है। इस वार्षिक गति के आधार पर मास की गणना की जाती है। अयन गणना अर्थात जब सूर्य की गति दक्षिण से उतर की ओर होती है, इसे उतरायन सूर्य कहा जाता है तथा उतर से दक्षिण होने पर दक्षिणायन सूर्य कहा जाता है।
सूर्य जब अपनी कक्षा परिवर्तित करता है तो उसे संक्रमण काल कहा जाता है। इसी क्रम में 14 जनवरी को सूर्य दक्षिणायन से उतरायन होकर मकर राशि में प्रवेश करता है इस कारण ये दिन “मकरसंक्रांति” के रूप में माना जाता है।
मकर राशि में सूर्य का प्रवेश व सूर्य की गति का उतरायन होना वैदिक धर्म शास्त्र के अनुसार शुभ माना जाता है क्योंकि देवी देवताओं का प्रवेश उतरी गोलार्द्ध में माना जाता है। श्रीकृष्ण ने गीता में ऐसा कहा है कि जो मनुष्य उतरायन काल में अपनी देह परित्याग करता है तो उसे पुनः जन्म नहीं लेना पडता है। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने अपने प्राणो का परित्याग सूर्य के उतरायन होने के बाद किया।
सूर्योत्सव के रूप में मनाया जाने वाला यह पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का द्योतक है। सूर्य के उतरायन होने से रात्रि काल घटने लगता है, दिन काल बढ़ने लगता है जिससे पृथ्वी पर प्रकाश की वृद्धि होती है और व्यक्ति की कार्य दक्षता बढती है।
मकर संक्रांति पर नदियों पर स्नान, दान पुण्य, गाय को चारा खिलाना आदि का अपना विशेष पौराणिक महत्व है। इस दिन तिल दान, हवन, यज्ञ, तर्पण कर्म आदि का विशेष महत्व है।
हिन्दू परम्परा मे मकर संक्रांति का अपना अलग महत्व है। पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा यमुना और सरस्वती नदियों मे इस दिन समस्त देवी देवता अपना स्वरूप बदल कर स्नान करने के लिए आते हैं।
अपनी अपनी मान्यतानुसार इस दिन कंबल, घी, तेल और तिल के लड्डू, घेवर, मोतीचूर के लड्डू तथा ऊनी वस्त्र कपास व नमक दानका विशेष महत्व माना जाता है। नई फ़सल चावल दाल व तिल को घर में लाया जाता है और भगवान के अर्पण किया जाता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से मल मास समाप्त हो जाता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य व चन्द्रमा व अन्य ग्रहों के आधार पर वर्ष भर की भविष्यवाणी की जाती हैं। तमिल पंचांग का नया वर्ष भी इसी दिन से शुरू होता है। अलग अलग राज्यों व समाज की मान्यता के अनुसार इस पर्व को विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।
राजस्थानी मान्यता के अनुसार इस दिन स्त्रियां घेवर मोतीचूर के लड्डू तिल के लड्डू अपनी सांस को भेंट करती तथा किसी भी चोदह वस्तुओं का दान करतीं हैं। दक्षिण भारत में इसे पोंगल नाम से जाना जाता है तो असम में इसे बिहू त्योहार के रूप में पूजा जाता हैं।
उतर प्रदेश में इसे खिचड़ी पर्व के रूप में मानकर खिचड़ी व तिल दान करने की प्रथा है। बंगाल में इस दिन तिल दान का विशेष महत्व है तो महाराष्ट्र में तेल कपास व नमक दान किया जाता है। पंजाब में इसे लोहडी पर्व के रूप में माना जाता है। अपने अपने धर्म की मान्यता अनुसार इस पर्व को विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।
सुहागिन स्त्री सुहाग की समस्त सामग्री के 13 जोड़ी लेकर कलपती है। कही कही देवताओं हेतु एक पृथ्क रख कर 14 जोड़ी मानतीं है। संक्राति दोष दूर करने के लिए तिलों का त्रिकोण यंत्र बनाकर उस कोणों में तीन त्रिशूल बनाए व यथाशक्ति धातु दान रख कर वह मंदिर में चढाए। पंतग टोटका भी किया जाता है।
अर्थात पंतग पर समस्या लिख कर उसे उडाते है और जब पतंग काफ़ी दूर तक चलीं जाय तो उसकी डोरी तोड़ दे। ऐसी लोकाचार मे कई जगह मान्यताएं है।
मकर संक्रांति के दिन बंगाल में विश्व प्रसिद्ध गंगा सागर का मेला लगता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा जी को धरती पर भागीरथ लेकर आए थे। भागीरथ के पीछे पीछे चलती गंगा नदी कपिल मुनि के आश्रम पहुंची और सागर में मिल गई। गंगा के पावन जल से राजा सागर के साठ हजार पुत्रो का उद्धार हुआ और उन्हे श्राप से मुक्ति मिली।
मकर संक्रांति ऋतु परिवर्तन की सूचक है जो बंसत ऋतु आगमन की सूचना देती हैं। गुजरात व महाराष्ट्र में इस दिन रंगोली निर्माण करते हैं।
सौजन्य : भंवरलाल