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दुर्गा खोटे : बेमिसाल अभिनय की मिसाल - Sabguru News
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दुर्गा खोटे : बेमिसाल अभिनय की मिसाल

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दुर्गा खोटे : बेमिसाल अभिनय की मिसाल
Remembering Durga Khote on her birth anniversary
Remembering Durga Khote on her birth anniversary
Remembering Durga Khote on her birth anniversary

नई दिल्ली। पद्मश्री से सम्मानित दुर्गा खोटे ने मूक फिल्मों के दौर में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। ‘फरेबी जाल’ उनकी पहली फिल्म थी। फिल्मकार के. आसिफ की बहुचर्चित फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में सलीम की मां जोधाबाई की यादगार भूमिका से उन्हें प्रसिद्धि मिली। हिंदी के अलावा मराठी फिल्मों की भी वह प्रसिद्ध अभिनेत्री रही हैं।

इनका जन्म 14 जनवरी 1950 में मुंबई में हुआ था। इनके पिता का नाम पांडुरंग लाउद और माता का नाम मंजुलाबाई था। वह कैथ्रेडल हाई स्कूल और सेंट जेवियर्स कॉलेज में शिक्षित हुईं। उन्होंने यही से बी.ए. की डिग्री हासिल की।

दुर्गा खोटे का शुरुआती जीवन सुखमय रहा, लेकिन बाद में उन पर दुखों का पहाड़ टूटा। जब वह मात्र 26 साल उम्र की थीं, तभी उनके पति का निधन हो गया। उनका घरेलू जीवन बहुत ही कठिन और दुखों से भरा रहा। उन्हें जो कुछ खुशी मिली, अपने बच्चों से ही मिली। पति के निधन के बाद उन पर दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई थी। ऐसे में उन्होंने पैसे के लिए फिल्मों की राह पकड़ी।

उस दौर की फिल्मों में ज्यादातर पुरुष ही महिलाओं की भूमिका निभाते थे। महिलाएं पर्दे में रहती थीं, जो कोई फिल्मी पर्दे पर आती थी, उसे अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। फिर भी दुर्गा खोटे ने साहस दिखाया और कामयाबी उनके कदम चूमती रही।

दुर्गा खोटे ने 200 फिल्मों के साथ ही सैकड़ों नाटकों में अभिनय किया और फिल्मों को लेकर समाज द्वारा तय वर्जनाओं को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई। हिंदी फिल्मों में उन्हें विशेष रूप से मां की भूमिका के लिए याद किया जाता है।

उन्होंने विजय भट्ट की फिल्म ‘भरत मिलाप’ में कैकेई की भूमिका को जीवंत बना दिया। बतौर मां उन्होंने ‘चरणों की दासी’, ‘मिर्जा गालिब’, ‘बॉबी’, ‘विदाई’, ‘चाचा भतीजा’, ‘जय बजरंगबली’, ‘शक’, अभिमान, ‘बावर्ची’, ‘पापी’, ‘कर्ज’, ‘पहेली’, ‘चोर सिपाही’, ‘साहेब बहादुर’, ‘राजा जानी’ जैसी फिल्मों में शानदार किरदार निभाया।

सन् 1936 में बनी फिल्म ‘अमर ज्योति’ में उन्होंने सौदामिनी की भूमिका निभाई, जो उनके सबसे यादगार भूमिकाओं में से एक है। उनके बेमिसाल अभिनय को आज तक लोग याद करते हैं।

भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के लिए उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1968 में दुर्गा खोटे पद्मश्री से भी सम्मानित हुईं। इसके अलावा वर्ष 1958 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला। फिल्म ‘विदाई’ में बहेतरीन अभिनय के लिए उन्हें वर्ष 1974 में सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।

बाद के जीवन में उन्होंने मराठी में अपनी आत्मकथा लिखी। हिंदी एवं मराठी फिल्मों के अलावा रंगमंच की दुनिया में करीब पांच दशक तक सक्रिय रहीं दुर्गा खोटे ने 22 सितंबर, 1991 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह हमारी स्मृतियों में हमेशा बनी रहेंगी और आनेवाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेंगी।