सबगुरु न्यूज। हे जगत जननी मातेश्वरी! हम सब यह जानते हुए भी कि ये जगत नश्वर है और केवल एक तू ही अविनाशी है। यह सृष्टि तेरी माया के अधीन है और जिसे हम पालनहार कहते हैं वह भी तेरी निद्रा के बस में होकर बेबस हो जाता है। हे मां तू इस जगत में प्रकृति रूप में विद्यमान है और समदर्शी है। इस कारण जीव व जगत तेरे ही प्राकृतिक सिद्धांत पर चल रहे हैं। जहां मानव ने तुझ पर अतिक्रमण कर तुझे छोटा समझने की भूल की है वो धूल में मिल गया है।
हे मां! तेरा धर्म केवल जगत कल्याण है। तेरा कर्म निष्काम है। तू जो कुछ भी इस जगत को प्रकट ओर अप्रकट रूप से देतीं हैं इसमें तेरा अपना कोई स्वार्थ नहीं है। सात्विक बन कर तूने इस जगत को वनस्पति और खाद्यान्नों से भर रखा है। राजसी ठाट-बाट के लिए बहुमूल्य हीरे जवाहरात ओर खनिजों से भर रखा है। तामसी बनकर तूने इस प्रकृति को संतुलित रखने के लिए भूकंप ज्वाला मुखी जल ओर वायु प्रकोप अपने मे समा रखे हैं।
हे मां! भारी समुद्र और सदा बहार बहने वाली नदियों को को बहने के लिए छोड़ रखा है। पर्वत, मैदान, वन, उपवन यह सब तेरी ही विरासत है। हे जगत जननी मातेश्वरी मां यह सब कुछ तेरी ही विरासत है जिस पर हर प्रकार से अपनी नीति व अनीति को स्थापित कर हम जन कल्याण की योजना बना कर कल्याण घणी बनने की कवायद में जुटे रहते हैं। तेरी ही विरासत पर हम लाभ हानि की शंतरज बिछा कर मानव ओर मानव मे भेद कराकर इसे जाति, धर्म, भाषा, लिंग, स्त्री, पुरुष, ऊंच नीच की गोटियों से लड़वा कर विखंडन कर रहे हैं।
हे मा! यह जीव व जगत केवल कमजोरियों का पुतला और परिस्थितियों का गुलाम बना हुआ है, यह जानते हुए भी कि ये जगत नश्वर है फिर भी लोकाचार की आड में तेरे प्राकृत न्याय सिद्धांतों की अवहेलना कर तेरी ही विरासत को पृथ्वी के भगवान बना कर सबको सब का मसीहा बनने की कवायद में जुटा है।
हे मां! बदलते ऋतु परिवर्तन की ओर तू संकेत कर रही है कि हे मानव ये माघ मास जो मेरे सुखों को बढ़ा कर इस जगत के कल्याण को हर प्रकार की संपति से भरता है और सभी को सुखी और समृद्ध व स्वस्थ बनाए रखने के लिए काम करता है। इसलिए हे मानव तू कुछ शांत मन रख और मेरे इन नौ दिनों में अपनी शक्ति बढा। तेरा कल्याण होगा और मेरी गुप्त शक्ति का संचय कर तेरा गुप्त नवरात्रा सफल होगा।
इस काल में किए गए तप, यज्ञ और अनुष्ठान तथा तीर्थ यात्राएं तब सफल होंगी जब तेरे मन में विकार नहीं होंगे, अन्यथा ये अनावश्यक श्रम ही साबित होगा। निर्मल मन को सोने की झारी बना और स्वच्छ विचारों से उसे भर, तुझे घर बैठे गंगा मिलेगी।
सौजन्य : भंवरलाल