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ख्वाईशो की मंडी में कफन की दुकान - Sabguru News
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ख्वाईशो की मंडी में कफन की दुकान

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ख्वाईशो की मंडी में कफन की दुकान

सबगुरु न्यूज। ख्वाईशो की मंडी में कफ़न की दुकाने नहीं होतीं हैं लेकिन ख्वाईशे यदि बढ जाती है तो अपनी चादर का आकार बढाना पड़ता है या फिर अपनी ख्वाईशो को दफ़न करना पड़ता है। बिना इसके उन ख्वाईशो की मंडी में कफ़न की दुकाने खुल जाती हैं और वहां छोटीसी चादर और बढ़ती ख्वाईशो को लेकर व्यक्ति पहुंच जाता है।

ख्वाईशो की मंडी में कफ़न की दुकान देखकर यमराज को हंसी आ गई और वह दुकानदार से पूछने लगे कि कफ़न के व्यापारी इस ख्वाईशो की मंडी में कौन होगा जो कफ़न खरीदने की एक बार भी ख्वाईश करेगा।

व्यापारी बोला हे यमराज साहब आपकी सदा हम पर कृपा बढ़ती जा रही है। पहले तो कोई व्यक्ति केवल एक बार ही मरता था पर आपकी कृपा से अब एक व्यक्ति बार बार मर रहा है और हर बार जीते जी वह कफ़न खरीद रहा है।

यमराज थोड़े से परेशान हुए ओर बोले बार बार मरता है और फिर वह जिंदा हो जाता है। व्यापारी बोला कि ये कलयुग है यहां मौत से भी भारी हादसे होते हैं और उन हादसे को सुन व्यक्ति मर जाता है और जब सब मिलकर इकट्ठे होते हैं, बाते करते हैं कि अब तो हर दिन हर क्षेत्र में रोज हादसे होते रहते हैं तब मरा हुआ व्यक्ति यह सुनकर वापस जिन्दा हो जाता है और सभी को दुखी देखकर खुश होता है और राहत महसूस करता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव जब व्यक्ति अपनी चादर को बड़ी किए बिना पांव पसारता है तो उसके पांव फिर बाहर निकाल जाते हैं और उस चादर के योग्य नहीं होता है और उसकी ख्वाईशो का दफ़न हो जाता है। यदि ख्वाईशे पूरी करता है तो उसकी चादर फट जातीं हैं।

इसलिए व्यक्ति को अपनी चादर का आकार बढाना पड़ता है या फिर अपनी ख्वाईशो का दफ़न करना पड़ता है। ऐसा नहीं करने पर उसे रोज अपने जमीर को मारना पडता है और वह कुमार्ग पर चल कर अपनी सभी ख्वाईशो को पूरा कर जीते जी अपने आप को हर बार मार लेता है और अपनी चादर को फाड़ लेता है, दूसरो की चादर को ओढ लेता है जिसके योग्य वह नहीं होता है।

इसलिए हे मानव तू अपनी सीमा और मर्यादा का उल्लंघन मत कर, अपनी चादर के अनुसार ही पांव पसार अन्यथा मर्यादा व सीमा का उल्लंघन एक दिन तुझे हर प्रकार से भ्रष्ट बना कर तेरे कुनबे को डूबा देगा। उस समय तू ना घर का रहेगा ओर ना घाट का। अनीति का हर लाभ एक दिन तुझे अपने और पराये सभी से वंचित कर देगा क्योंकि ख्वाईशो की मंडी का अंत आखिर कफन की दुकान पर ही होता है।

सौजन्य : भंवरलाल