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गूगल ने उपन्यासकार वर्जीनिया वुल्फ को दी श्रद्धांजलि - Sabguru News
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गूगल ने उपन्यासकार वर्जीनिया वुल्फ को दी श्रद्धांजलि

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गूगल ने उपन्यासकार वर्जीनिया वुल्फ को दी श्रद्धांजलि
Google gives tribute to novelist Virginia Wolf
Google gives tribute to novelist Virginia Wolf

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नई दिल्ली| सर्च इंजन गूगल ने अपने डूडल के जरिए जानी-मानी उपन्यासकार वर्जीनिया वुल्फ को उनकी 136वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी। लेखिका ने अपनी लेखन शैली में ‘चेतना के प्रवाह’ के दृष्टिकोण को इस्तेमाल में लाने की कोशिश की, जिसके चलते उन्होंने अपने उपन्यास के किरदारों के जीवन की आंतरिक जटिलता को दर्शाया। लंदन के रहने वाले चित्रकार लुईस पोमेरॉय ने डूडल का निर्माण किया, जिसके बारे में गूगल ने कहा कि यह उनकी बेहद न्यून शैली को दर्शाती है। वुल्फ की काल्पनिक कहानियों ने हमें दिखाया है कि किसी व्यक्ति का आंतरिक जीवन किसी कथानक की तरह ही जटिल व अजीब होता है।

20वीं सदी की प्रमुख उपन्यासकारों में से एक वर्जीनिया का जन्म 1882 में लंदन में हुआ था। वुल्फ ने 1921 में एक डायरी प्रविष्टि में इस बात का जिक्र किया कि कैसे परिवार के साथ मनाई गई छुट्टियों की यादें और चारों तरफ के परिदृश्यों, खासकर गॉडरेवी लाइटहाउस ने बाद के सालों में उनकी काल्पनिक कहानियों पर अपना असर डाला।

वुल्फ ने तकनीकी रूप से अपनी लेखन शैली में चेतना के प्रवाह को बखूबी स्पष्ट करते हुए लिखा था, कॉर्नवल के प्रति मैं अविश्वसनीय रूप से इतनी रोमांटिक क्यों हूं? किसी एक के अतीत में, ऐसा लगता है कि मैं बच्चों को बगीचे में इधर-उधर भागते देख रही हूं..रात में समुद्र के लहरों की ध्वनि..जीवन के लगभग 40 वर्षो तक..सब कुछ उसी पर आधारित है, पूरी तरह से उसी के प्रभाव में हूं..बहुत कुछ है, जिसे कभी खुलकर स्पष्ट नहीं कर सकी।

बचपन के दिनों में वुल्फ ने घर पर ही अंग्रेजी क्लासिक और विक्टोरियन साहित्य की ज्यादातर पढ़ाई की। उन्होंने 1900 में पेशेवर रूप से लिखना शुरू किया और लंदन के साहित्यिक समाज और ब्लूम्सबरी समूह की महत्वपूर्ण सदस्य बन गई। ‘टू द लाइटहाउस’ (1927) और ‘मिसेज डलोवे’ (1925) जैसे उपन्यासों ने उन्हें खूब लोकप्रियता दिलाई।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उनकी साहित्यिक प्रतिष्ठा में हालांकि थोड़ी गिरावट आई, लेकिन उनके कामों ने नए सिरे से प्रमुख मुद्दों खासकर 1970 के दशक के नारीवादी आंदोलन को प्रेरित किया। वुल्फ मानसिक बीमारी से भी जूझ रही थीं और 59 साल की उम्र में जीवन से निराश होकर उन्होंने आत्महत्या कर ली।

28 मार्च 1941 को ससेक्स में अपने घर के पास की एक नदी में कूदकर वुल्फ ने आत्महत्या कर ली। उनका शव तीन सप्ताह तक नहीं मिला। उन्होंने अपने पति को संबोधित कर सुसाइड नोट में लिखा था, प्रिय, मुझे लग रहा है कि मैं फिर से पागल हो रही हूं। मुझे लगता है कि हम फिर से उन भयावह पलों से नहीं गुजर सकते और मैं इस बार ठीक नहीं हो सकती।

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