सबगुरु न्यूज। संत जन कहते हैं कि हे मानव तू अपने पर अपयश का ग्रहण मत लगने दे।अन्यथा किसी भी उपाय, अनुष्ठान और दान पुण्य से इस अपयश के ग्रहण के दुष्परिणाम से नहीं बच पाएगा और इस ग्रहण का सूतक काल बारह घंटे या नौ घंटे से ही प्रभावित नहीं होगा ना ही तेरे घट के पट बंद करने से रूकेगा।
अपयश का सूतक तो तेरे गलत सोच के साथ ही शुरू हो जाएगा और उसका मोक्ष तेरी मृत्यु के बाद भी नहीं होगा। ये ग्रहण का चन्द्रमा भले ही तेरा कुछ नहीं बिगाड़े पर अपयश का ग्रहण तेरा सब कुछ बिगाड़ देगा।
जन्म से मृत्यु के बीच हम जो कुछ भी कर्म करते हैं उसका लेखा जोखा यहीं रखा जाता है और उस कर्म के आसमां पर फल के रूप में यश तथा अपयश जो भी हों वे नजर आते हैं। यही जमीनी हकीकत भी होती है। यश आसमां में चमकते चन्द्रमा की तरह सर्वत्र अपनी चांदनी फैला देता है और अपने अस्तित्व की चादर उस व्यक्ति को ओढाकर यशस्वी बना देता है।
अपयश उस ग्रहण लगे चन्द्रमा की तरह होता है जो पूर्ण प्रकाशित होने के बाद भी काला हो जाता है और इससे परहेज रखने की बात कही जाती है। यहां तक की खाना, पीना, सोना और उसे देखना भी वर्जित कर दिया जाता है। उससे भी ज्यादा मंदिर में भगवान की प्रतिमा को ढंक दिया जाता है तथा मंदिरों के पट बंद कर दिए जाते हैं।
कुछ ही घंटों का यह ग्रहण काल चन्द्रमा के यश को धो देता है और उसके दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए व्यक्ति जप, तप और अनुष्ठान तथा दान पुण्य का सहारा लेता है। कुदरत अपना खेल खेलती है और चन्द्रमा अशुभ फल देने वाला मान लिया जाता है। सदियों से चली आ रही ग्रहण की यह दासता कभी रूकी नहीं और चन्द्रमा के ग्रहण का यह अपयश कभी धुला नहीं चाहे ये कारण ज्योतिष शास्त्र के हो या धार्मिक।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू अपने कर्म के आसमां पर अपयश के बादल मत छाने दे नहीं तो ये बादल बरस कर तुझे अपयश की वर्षा से भिगो देंगे। उसके बाद भले ही लाख शुद्धीकरण के जप, तप और अनुष्ठान तथा दान पुण्य कर ले यह सब एक अनावश्यक श्रम ही साबित होंगे।
इसलिए हे मानव, तू चन्द्रमा पर लगे ग्रहण से बचने के लिए हर उपाय कर अपने आप को खुश कर लेगा और ग्रहण के बाद दान पुण्य भी कर लेगा और फिर उसी चन्द्रमा की तू पूजा व उपासना कर ग्रहण के दुष्प्रभाव को दूर कर लेगा, लेकिन तू अपने पर लगे अपयश के ग्रहण को कभी भी किसी भी उपाय से दूर नहीं कर सकता है। इसलिए तू गुमराह मत हो और अपने कर्म से अपयश मत कमा।
सौजन्य : भंवरलाल