सबगुरु न्यूज। महाशिवरात्रि भगवान शिव की उदारता, अनुकंपा, धैर्य, त्याग तथा सर्व शक्तिमान के दर्शन का महानतम पर्व है। महाशिवरात्रि को शिव का ध्यान पूजन उपासना व्रत भक्ति भाव भजन, कीर्तन तथा श्रद्धा भाव से शिव को अर्पण की गई जलधारा नैवेध आदि से कोटि जन्मों के पापों का नाश होता है।
महाशिवरात्रि मनाएं जाने के संबंध में पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं। भागवत पुराण के अनुसार समुंद्र मंथन के समय वासुकि नाग के मुख में भयंकर विष की ज्वालाएं उठी और वे समुद्र के जल में मिश्रित हो विष के रूप में प्रकट हो गई। विष की यह ज्वालाएं संपूर्ण आकाश में फैलकर समस्त चराचर जगत को जलाने लगी। इस भीषण स्थिति से घबरा देव, ऋषि, मुनि भगवान शिव के पास गए तथा भीषण तम स्थिति से बचाने का अनुरोध किया तथा प्रार्थना की कि हे प्रभु इस संकट से बचाइए।
भगवान शिव तो आशुतोष और और दानी है। वे तुरंत प्रसन्न हुए तथा तत्काल उस विष को पीकर अपनी योग शक्ति के उसे कंठ में धारण कर लिया तभी से भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। उसी समय समुद्र के जल से चंद्र अपनी अमृत किरणों के साथ प्रकट हुए। देवता के अनुरोध पर उस विष की शांति के लिए भगवान शिव ने अपनी ललाट पर चंद्रमा को धारण कर लिया। तब से उनका नाम चंद्रशेखर पड़ा। शिव द्वारा इस महान विपदा को झेलने तथा गरल विष की शांति हेतु उस चंद्रमा की चांदनी में सभी देवों में रात्रि भर शिव की महिमा का गुणगान किया। वह महान रात्रि ही तब से शिवरात्रि के नाम से जानी गई।
लिंग पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु दोनों मैं भी इस बात का विवाद हो गया कि कौन बड़ा है। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि दोनों ही महान महाशक्तियों ने अपनी दिव्य अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग शुरू कर युद्ध घोषित कर दिया। चारों ओर हाहाकार मच गया देवताओं, ऋषि मुनियों के अनुरोध पर भगवान शिव इस विवाद को शांत करने के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। यह लिंग ज्वालामय प्रतीत हो रहा था तथा इसका ना आदि था और नहीं अंत।
ब्रह्मा विष्णु दोनों ही इस लिंग को देख कर यह समझे नहीं कि यह क्या वस्तु है। विष्णु भगवान सूकर का रूप धारण कर नीचे की ओर उतरे तथा ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर ऊपर की और यह जानने के लिए उडे कि इस लिंग का आरंभ हुआ अंत कहां है। दोनों को ही सफलता नहीं मिली, तब दोनों ने ही ज्योतिर्लिंग को प्रणाम किया। उस समय ज्योतिर्लिंग से ओम ॐ की ध्वनि सुनाई दी। ब्रह्मा विष्णु दोनों आश्चर्यचकित हो गए।
तब देखा कि लिंग के दाहिने और अकार, बांयी ओर उकार और बीच में मकार है। अकार सूर्यमंडल की तरह, उकार अग्नि की तरह तथा मकार चंद्रमा की तरह चमक रहा था और उन तीन कार्यों पर शुद्ध स्फटिक की तरह भगवान शिव को देखा। इस अदभुत दृश्य को देख ब्रह्मा और विष्णु अति प्रसन्न हो शिव की स्तुति करने लगे। शिव ने प्रसन्न हो दोनों को अचल भक्ति का वरदान दिया। प्रथम बार शिव को ज्योतिर्लिंग में प्रकट होने पर इसे शिवरात्रि के रूप में मनाया गया।
कथाएं जो भी है, सच्चाई इस बात की है कि विकट घड़ी में भगवान शिव ने चाहे विषपान से संबंधित समस्या थी या दो महाशक्तियों के युद्ध अशांति की समस्या, भगवान शिव ने साहस, पूर्वक धैर्यपूर्वक जगत के कल्याण हेतु कुशल आपदा प्रबंध किया इस हेतु शिवरात्रि को लोककल्याण उदारता ओर धैर्यता का प्रतीक माना जाता है।
सौजन्य : भंवरलाल