सबगुरु न्यूज। उस जमीं पर बने शाही महल को देखकर खामोश रूहें फिर खामोश हो गईं और हर रात खामोश रूहें खामोशी से उस शाही महल में ख़ामोशी से भ्रमण करने लगीं। उनमें से कई रूहें परेशान थीं तो कुछ बेफिकर होकर वहां डेरा डाल खामोशी से रूहानियत के नशे में चूर हो जाती थीं।
दिन में होने वाली हर हरकतों के लेखों पर खामोश रूहें हर रात में मनन करने लगी। दिन की हर हरकतों के लेख जब बढने लगे तो रूहों ने सभी रूहों को हर रात मेहमान बनाकर बुलाने का फरमान जारी कर दिया। इसी फरमान के सम्मान में हर रात उस शाही महल में रूहों के मेले लगने लगे।
अब भूत बनी रूहें जो कभी वर्तमान थीं, वर्तमान के प्राणी जो कल भूत कहलाएंगे उनकी हरकतों को देखकर हैरान थीं। फिर भी वे खामोश रहकर भी परेशान थीं। परेशान होती हुई खामोश रूहें बिना फाल्गुन के होलियां जलाती रहीं और वर्तमान को भूत बना अपनी रूहों की संख्या में इजाफा करती रहीं। फिर भी इससे कुछ ना हुआ क्योंकि वर्तमान भूत पर भारी था।
वर्तमान तो खुद रोज बिना आग की होलियां जलाकर अपने हित को पूरा करने के लिए हजारों को भूत बना रहा था और सदा भूतों पर भारी पडता रहा। पुरानी रूहें जर्जरित होने लगी और ताजा रूहें जो वर्तमान से भूत बन गईं थीं वे सब उस शाही महल में ख़ामोशी से मेले लगाती रहीं।
एक रात वे शाही महल बहुत सुन्दर तरीके से सजा हुआ था। उसमे नाच गाने की आवाजें आ रही थीं। एक राहगीर वहां से गुजर रहा था। यह सब देख वह हैरान था कि आज होली है और यहा दीपावली मनाई जा रही हैं। वे उस महल के अन्दर घुस गया और अन्दर के नजारे देखने लग गया।
शाही महलों की सभी रूहें आज इंसानी रूप में थीं और रंग बिरंगी पोशाके पहने हुए थीं। उन पोशाकों में एक अलग अलग संस्कृति की झलक आ रही थी। उस राहगीर ने पूछा तुम सब आज कौन सा त्योहार मना रहे हो।
वे रूह बोलीं कि हम सब मातम मना रहे हैं क्योंकि आज इंसानों की होली है और कुछ लोग रात भर यहां टोने टोटके और तंत्र मंत्र कर हमसे शक्ति के लिए हमें पूजते थे तो कुछ हमे अपना पूर्वज मान श्रद्धा से नमन करते थे। आज हमारे ठिकाने का अस्तित्व ही मिटा दिया गया और शाही महल बन गए हैं। हम रूहे हैं और अपना स्थान नहीं बदलते। इसलिए हे राहगीर हम सब मातम मना रहे हैं। यह सुनकर वह राहगीर वहां से भाग गया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव ये शाही महल व्यक्ति का शरीर होता है और जिसमें आत्मा एक खामोश रूह की तरह बैठी रहती है और अपने भूत काल के शरीर को याद रख कर मातम मनाती रहती हैं कि काश पिछले जन्म में मेरा मोक्ष हो जाता तो मुझे इस नए शरीर को धारण नहीं करना पडता। लेकिन शरीर में बैठ कर ये मन सदियों से आज तक भांति भांति के रूप धारण कर इस शरीर को बन्धन में डालकर फिर जन्म मृत्यु के चक्र में फंस जाता है और में सदा मातम मनाता हूं।
मैं भूत वर्तमान और भविष्य सभी मे एक ही रहता हू क्योंकि में परमात्मा का अंश हू और अजर, अमर, अविनाशी हूं। इसलिए हे मानव मैं मेरा स्थान जीवों का शरीर है उसे में नहीं छोडता हूं और सदा मातम मनाता हूं।
इसलिए हे मानव तू अपने भांति भांति के रूप धारण करना छोड़ होली के प्रकाश में अपने अंदर की छोटी सोच को हटाकर अपने आप को त्यागी बना क्योंकि इस जीवन में तुझे केवल जीने के लिए कुछ आवश्यक चीजों की ही जरूरत है चाहे तू राजा बन या रंक बन। ये कुदरत है जो तुझे पूर्ण यौवन पर ले जाएगी फिर बुढापे की ओर ले जाकर तुझे वर्तमान से भूत बना देगी चाहे तू राजा हो रंक हो संत हो या आम-जन।
सौजन्य : भंवरलाल