सबगुरु न्यूज। उसके मन की तड़पन ने दुनिया को प्रेम का मूल्य बता दिया। प्रेम की हैसियत का भान दुनिया को करा दिया। प्रेम में त्याग की संस्कृति परिभाषित कर दुनिया को दिखा दिया कि ढाई आखर प्रेम मे कितनी गरमी होती है। सभी संस्कारों से ऊपर उसने प्रेम के संस्कार को स्थापित कर दिया। उसने प्रेम को अजर अमर अविनाशी बना दिया जो किया नहीं जाता है स्वत: ही हो जाता है।
प्रेम की तड़पन मे उसने इस दुनिया को हिला दिया ओर अपने प्रेमी को मृत देख हाहाकार मचा दिया तथा उस संस्कृति को धराशायी कर दिय़ा जो प्रेम का अपमान कर रही थी। यह हाल देख जगत के समस्त देव घबरा गए ब्रह्मा विष्णु सहित कोई भी देव बचा नहीं पाए उस काल बेला को जब प्रेम के प्रतीक महादेव महाकाल बन गए ओर ब्रह्मा जी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति का सिर धड से अलग कर दिया।
दक्ष प्रजापति की पुत्री सती शिव से प्रेम करती थी और दक्ष ने ना चाहते हुए भी सती की शादी सती के जिद के कारण की। दक्ष प्रजापति ने एक बार यज्ञ करवाया लेकिन शिव और सती को नहीं बुलाया। सती इसे अपने पति का अपमान समझ स्वयं अपने पिता दक्ष प्रजापति के घर जाने की जिद करने लगी। शिव ने मना कर दिया तो सती ने अपने दस रूप बना शिव को दसों दिशा में घेर लिया ओर जबर्दस्ती से जाने की अनुमति मांगी।
सती अपने पिता दक्ष प्रजापति के घर पहुंच गई तो उसके पिताजी ने फिर शिव का अपमान किया। अपने प्रेम को अपमानित देख उसने उस यज्ञ कुंड में कूदकर जान दे दी। यह समाचार जब शिव ने सुने तो वहां उसने हाहाकार मचा दिया और दक्ष प्रजापति की गर्दन काट कर मौत के घाट उतार दिया और पार्वती की मृत देह को लेकर विलाप करते हुए इस ब्रहमांड में भटकते रहे।
शंकर भोले नाथ की यह हालत और सृष्टि को नष्ट होते देख विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र में मरी हुई सती की लाश के बाबन टुकड़े कर दिए जो लाश शिव के हाथों में थी। लम्बे समय तक विलाप करते शिव हिमालय की गुफाओं मे बैठ गए और साधना मे रम गए।
तारकासुर की उत्पत्ति से फिर सभी देव घबराए क्योंकि उसे वरदान था शिव पुत्र के हाथों से ही मरने का। सब देवो ने दैवी की आराधना की ओर दैवी ने हिमालय के घर पार्वती बन शिव के साथ विवाह करने को कहा। हिमालय के घर पार्वती जी ने जन्म लिया और अपने पिता हिमालय के साथ रोज शिव की पूजा उपासना करने जाने लगी।
देवताओं के कहने पर कामदेव ने शिव पर काम बाण चलाए और शिव ने उसे अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया, तभी से पहली बार होलिका उत्सव मनाया गया। शिव से कामदेव की पत्नी ने कामदेव को जीवित होने का वरदान मांगा तथा पार्वती से विवाह करने के लिए तैयार किया।
उस बसंत ने शिव मे प्रेम का संचार कर होली खिलवाई तथा चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की की सप्तमी के दिन शिव पार्वती की झांकी निकाल कर घरों मे ईसर गणगोर की पूजा पूरे चैत्र मास में की गई और शिव पार्वती को दूल्हा दुल्हन के रूप मे ईसर गणगोर के रूप में भ्रमण कराया।
बसंतीय नवरात्रा व शक्ति के रूप मे पार्वती जी को पूजा गया ओर इसी चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से शिव पार्वती का यह सम्बन्ध सती ओर शिव से बदल कर शिव पार्वती बन नए वर्ष का कारण बना।
संत जन कहतें है कि हे मानव प्रेम क्या होता है? उसने प्रेम के अर्थ को बता दिया और दुनियां को प्रेम की हैसियत का भान करा दिया। मृत देह ने इस दुनिया को अपनी शक्ति का भान करा दिया।
इसलिए हे मानव तू प्रेम का प्याला पी और उस भक्ति रस में लीन हो जा तथा शिव पार्वती के अमर प्रेम की अमर दासता को सुन, निश्चित तेरे मन में घृणा और नफ़रत की आंधियां चलनी बंद हो जाएंगी।
सौजन्य : भंवरलाल