SABGURU NEWS | 20वीं शताब्दी में ऑस्ट्रेलिया के स्कूली अध्यापक एने केलेवे ने 1913 में केरल के कोट्टायम के बाकर मेमोरियल स्कूल में महिला क्रिकेट को अनिवार्य कर दिया था।
तब से महिला क्रिकेट ने एक लम्बा सफर तय किया और अधिकृत रूप से महिलाओं का पहला वर्ल्ड कप 1973 में आयोजित किया जबकि पुरुषों का वर्ल्ड कप इसके दो साल बाद आयोजित किया गया। इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भारतीय महिलाओं को वर्ल्ड कप में पुरुषों जितनी क़ामयाबी नहीं मिली।
कालरा ने बताया कि ब्रैम्बले और हैम्बलेटन के बीच महिला क्रिकेट का पहला मैच 1745 में इंग्लिश काउंटी सरे में खेला गया था। वहीं भारत में महिला क्रिकेट की शुरुआत की कहानी भी दिलचस्प है।
न्यूज़ीलैंड की महिलाओं को तीन साल की अनुबंध राशि का 34 हज़ार डॉलर दिया जाता है जो पहले 20 हज़ार डॉलर था जबकि वेस्टइंडीज़ ने 12 हज़ार डॉलर की अनुबंध राशि को बढ़ाकर 30 हज़ार डॉलर कर दिया है।
गौरतलब है कि वेस्टइंडीज़ महिला क्रिकेट में पहला ऐसा देश है जिसने महिला क्रिकेटरों के लिए केंद्रीय अनुबंध को शुरू किया था। पाकिस्तान में भी महिला क्रिकेटरों के लिए हाल में केंद्रीय अनुबंध शुरू किया गया है जहां उन्हें करीब दस लाख रुपये सालाना मिलते हैं।
महिलाओं का टी-20 वर्ल्ड कप 2009 में शुरू किया गया और तब से भारतीय महिलाएं दो बार सेमीफाइनल में पहुंचने में सफल रहीं जबकि वनडे क्रिकेट के पिछले साल खेले गए वर्ल्ड कप में भारतीय महिलाओं ने शानदार प्रदर्शन करते हुए अपनी चुनौती फाइनल तक रखी। इसी टूर्नामेंट के शुरुआती दौर में भारत ने यह वर्ल्ड कप जीतने वाली इंग्लैंड टीम को 35 रन से शिकस्त देकर उलटफेर किया था।
कालरा के अनुसार केंद्रीय अनुबंध को लेकर हालिया घटनाक्रम से भारतीय महिला क्रिकेट टीम का निश्चय ही त्रिकोणीय सीरीज़ से पहले मनोबल बढ़ेगा। खिलाड़ियों के लिए विज्ञापन, प्रायोजन और प्रमोशन की गतिविधिया बढ़ने से भारतीय महिलाओं को विश्व स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिलेगी।