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प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कभी प्रधानमंत्री आवास में रात नहीं बितायी
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प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कभी प्रधानमंत्री आवास में रात नहीं बितायी

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प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कभी प्रधानमंत्री आवास में रात नहीं बितायी

बलिया। बगैर किसी गाडफादर के राजनीति की बुलंदियां हासिल करने वाले देश के आठवें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अपने कार्यकाल के दौरान कभी भी प्रधानमंत्री आवास में रात्रि विश्राम नहीं किया।

दिवंगत प्रधानमंत्री के अनन्य सहयोगी रहे प्रख्यात समाजवादी नेता ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने मंगलवार को उनकी 91वीं जयंती पर चंद्रशेखर के साथ बिताए पलों को साझा करते हुए कहा कि यह बात कम लोगो को पता है कि चंद्रशेखर जी देश के प्रधानमंत्री थे लेकिन वे प्रधानमंत्री के सरकारी आवास सात रेसकोर्स रोड पर एक भी रात रूके नहीं।रात को सब काम निपटाकर वह भोड़सी आ जाते या फिर तीन साऊथ ऐवेन्यू मे चले आते थे। एक बार बहुत रात हो गई, हमने कहा कि आज यहीं रूक जाया जाए। उन्होंने कहा कि नहीं -नहीं यहां नहीं रूकना है। चलो यहां से।

समाजवादी चिंतक ने कहा कि चंद्रशेखर जी के दिमाग मे शुरू से ही था कि गवर्नमेंट बहुत स्टेबल नहीं है। कांग्रेस के लोग क्या करेंगे इसका कोई ठिकाना नहीं है। चंद्रशेखर जी कहते थे कि जब स्थाई प्रधानमंत्री होना होगा तभी यहां रूकना चाहिए। उन्होंने कहा कि 1984 मे चंद्रशेखर जी चुनाव हारे थे। चुनाव हारने के बाद उन्होने कहा कि अरे भाई हमारे संसद में न रहने से संसद थोड़े न इरेलिवेंट हो जाएगी। संसद अपनी जगह पर है और रहेगी। उसका अलग महत्व है। ”
उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर बेजोड़ नेता थे। वे अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने बगैर किसी गाॅडफादर के अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की और अपने को राजनीति की बुलंदी पर पहुंचाया। देश मे चाहे उनके समय का नेता रहा हो चाहे वर्तमान समय के नेता हों कोई भी व्यक्ति उनके पासंग के बराबर नहीं टिकता।

श्रीवास्तव ने बताया कि 1986 मे राज्य सभा का चुनाव हो रहा था। कल्याण सिंह जनसंघ के अध्यक्ष थे और मै जनता पार्टी का अध्यक्ष था। उस वक़्त जनसंघ के 16 विधायक थे और हमारी पार्टी के 21 विधायक थे। कल्याण सिंह का प्रस्ताव था कि चंद्रशेखर जी भी राज्यसभा मे चलें। जीत पक्की थी लेकिन चंद्रशेखर जी ने मना कर दिया। वे कहते थे कि बलिया के लोगों ने मुझे हराया है और बलिया के लोग ही जब संसद में भेजेंगे तो मैं जाऊंगा।
वयोवृद्ध नेता ने बताया कि चंद्रशेखर भारतीय राजनीति की अमिट निशानी हैं। आज के दौर की भारतीय राजनीति मे उनकी जयंती पर उन्हें याद करना प्रासंगिक है।