अजमेर। अपनी संस्कृति, धरती, पहनावे, परंपरा, भाषा और साहित्य से जो विमुख होता है उसका विनाश निश्चित है, भविष्य के लिए उसके पास अपना कुछ नहीं होता। विरासत में मिली पहचान को संजोएं रखना और उसे पीढी दर पीढी आगे बढाना हर समाजबंधु का कर्तव्य है। बदलते समय के साथ आधुनिकता अपनाने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम अपनायत को बिसरा दें।
ये विचार अखिल भारतीय संस्कृति समन्वय संस्थान के संरक्षक तथा धर्म जागरण के निधि एवं विधि प्रमुख राम प्रसाद ने संस्थान की अजमेर ईकाई की ओर से आयोजित आसांन्जी सिन्धियत (हमारी सिन्धियत) कार्यक्रम में मुक्त वक्ता में बोलते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सिन्धी समाज इस देश के लिए एक मिसाल है, सिन्ध में अपना घर, संपत्ति सब कुछ छोडकर खाली हाथ आए सिन्धी समाज ने अपने पुरुषार्थ और स्वाभिमान से खुद को स्थापित किया। सिन्धियत की बलिदान ही परम्परा रही है, जिसमें राजा दाहरसेन, शहीद हेमू कालानी ने राष्ट्र की आजादी में अपना अमूल्य योगदान किया।
देश की आजादी से ठीक एक दिन पहले बंटवारे के कारण 14 अगस्त को सिन्ध की धरा पाकिस्तान के हिस्से में चली गई। सिन्ध पाकिस्तान के हाथों में जाने की कसक हर हिदोस्तांवासी के दिल में है। सिन्ध आज भी हमारे दिलों में है। सिंध का यह चिंतन कभी खत्म नहीं होना चाहिए। हम सिंध की धरती को कभी न भूलें। संकल्प करें कि एक फिर हम अपने पराक्रम और पुरुषार्थ के बूते सिन्ध को हासिल करेंगे।
इसके लिए जरूरी है कि हम सिंधियत के संस्कार अगली पीढी को भी दें। अपने घर में संस्कारित वातावरण बनाएं। उन्हें बताएं कि किस तरह सिन्ध हमारी पवित्र भूमि रही, कैसे हम वहां रहते थे, किस तरह बंटवारे के समय सिन्ध हमारे हाथ से चला गया। सिन्ध एक लक्ष्य की तरह अगली पीढी के लिए भी विचार का केन्द्र बना रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जनसंख्या किसी भी राष्ट्र का भाग्य होता है, सिन्ध में हमारा संख्याबल कम होने के कारण हमें निकाला गया। संकल्प और साहस का भाव रखेंगे तो सब कुछ संभव है, एक न एक दिन सिन्ध फिर हमारा होगा। हम सिन्ध अपने सिन्ध जरूर जाएंगे। इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी धरती, पहनावे, संस्कृति, भाषा को कभी न भूलें।
उन्होंने धर्मपरिवर्तन की बढती घटनाओं को गंभीर बताते हुए कहा कि पश्चिमी प्रभाव और धर्मांतरण में जुटी संस्थाएं सिन्धी समाज को भी प्रभावित करने में लगी हैं। सिन्धी समाज के भी कई लोग ईसाई धर्म को अपना लिए है। आखिर हमें धर्म परिवर्तन की जरूरत क्या है। हमारा अपना धर्म श्रेष्ठ है, लोभ, लालच अथवा किसी ओर कारण से धर्म परिवर्तन के कुचक्र में फंसने से हम अपना अस्तित्व खो बैठते हैं।
इस मौके पर प्रेम प्रकाश आश्रम वैशाली नगर के महंत ओम प्रकाश शास्त्री ने कहा कि हर सिन्धी को जानना चाहिए कि आखिर सिन्धियत क्या है, इसका उद्देश्य क्या है। हमारा धर्म और संस्कृति क्या है। उन्होंने कहा किसी भी संस्कृति को जीवित रखने के लिए उसकी भाषा महत्वपूर्ण केन्द्र बिन्दु होती है। इसलिए सिन्धियत को आगे बढाना है तो घर, परिवार के बीच सिन्धी भाषा का अधिकाधिक उपयोग करें। सिन्धी भाषा हमारी आत्मा है, आत्मा नहीं रहेगी तो हमारा अस्तित्व ही नहीं रहेगा।
उन्होंने सिन्धी समाज में बढ रहे धर्मांतरण को घातक बताते हुए कहा कि हर समाज में कमजोर वर्ग भी होता है, धर्मांरण में लगी संस्थाएं उन्हें निशाना बनाती हैं। इसलिए हम सजग रहें। हमारा कोई समाजबंधु पिछडा है तो उसे भी अपने साथ लेकर चलें। उसे भी पूर्ण सम्मान दें। धर्म और संस्कृति हमारी धरोहर है, धर्म और संस्कृति से ही हम संस्कार सीखते हैं। जो दूसरों के जीवन में बसंत लाते हैं, वो संत कहलाते हैं।
संत समाज को दिशा प्रदान करते हैं, संत समाज को जोडकर रखने की एक कडी है। संतों के सान्निध्य में रहेंगे तो धर्म की जानकारी होगी। संत ही बताते हैं कि हमारा अपना धर्म श्रेष्ठ है, इसे हम क्यों छोडें। परमात्मा ने हमें जिस धर्म में जन्म दिया है, हमें पहचान दी है उसे हम क्यों छोडें। हां जिन्हें अपने धर्म में ही विश्वास न हो तो वे धर्म के लायक खुद ही नहीं है, उनके जुडे रहने का कोई औचित्य नहीं है।
उन्होंने कहा आधुनिकता अपनाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन जिस आधुनिकता से हमारी संस्कृति और परंपराओं का क्षरण होता हो उससे किनारा कर लें। यह तकनीकी युग है, सुविधा और साधन बढ रहे हैं। उनका जरूरत के लिए कार्यक्षेत्र में उपयोग करने में कोई बुराई नहीं। लेकिन जब घर परिवार और अपनों के बीच हों तो परंपरा का निर्वहन की आदत बनी रहनी चाहिए।
संस्थान के राष्ट्रीय महासचिव आशुतोष पंत, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष कमल शर्मा सुदर्शन समूह के निदेशक राकेश गुप्ता, समाजसेवी एवं पूज्य सिन्धी पंचायत के अध्यक्ष राधाकिशन आहूजा ने भी विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र यादव और शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने संतों के बताए मार्ग को उत्तम बताते हुए उनके आग्रह पर प्रेमप्रकाश आश्रम वैशाली नगर के मुख्य मार्ग पर दो स्वागत द्वार बनाने जाने के लिए अपने कोष से आर्थिक सहयोग करने की घोषणा की।
संस्थान की अजमेर ईकाई के संरक्षक कंवलप्रकाश किशनानी ने अपने स्वागत भाषण में आगंतुक अतिथियों का परिचय कराया तथा संस्थान की गतिविधियों की जानकारी दी। संस्थान की अजमेर ईकाई के अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में आगंतुक अतिथितियों ने सिन्धी समाज के पूजनीय संतों की प्रतिमा और चित्रों पर माल्यार्पण किया तथा ज्योत जलाई। महाआरती के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। संचालन अशोक शर्मा ने किया इस अवसर पर दादा नारायणदास, राजेश घाटे, पार्षद संतोष मौर्य, भारती सोनी, सीमा अखावत, राजवीर कुमावत, झामनदास भक्तानी, रमेश झामनानी, अंकुश जैन, अशोक दाधीच, खानचन्द मेंघानी, एमके सिंह, श्यामसुन्दर पंजाबी, उमेश गर्ग, राजवीर कुमावत, हशु आसवानी, प्रिंस शेखावत, राजेश शर्मा, आनन्द टिलवानी, शैलेन्द्र सतरावाला, प्रेम गर्ग, मुन्सिफ अली, असगर अली, दिलीप, हरीश रूपानी, रमेश होतवानी के अतिरिक्त बडी संख्या में सिन्धी समाज ने शिरकत की।