नयी दिल्ली | सौंदर्य प्रसाधनों,एंटी सेप्टिक क्रीम तथा सुगंधित रसायनों के निर्माण में काम आने वाली सिन्ट्रोनेला की खेती से कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है जिसे देखते हुये देश में इसकी खेती व्यावसायिक पैमाने पर की जाने लगी है।
औषधीय गुण वाली जावा सिन्ट्रोनेला घास की खेती का एक बड़ा फायदा यह भी है कि किसान कम उपजाऊ और ऊसर जमीन में भी इसकी अच्छी पैदावार ले सकते हैं।मच्छर और मक्खियों को दूर रखने में सक्षम सिन्ट्रोनेला की खेती से जमीन की उर्वराशक्ति में काफी सुधार होता है। इस घास का उपयोग पूरे दुनिया में सैन्दर्य प्रसाधानों के निर्माण के अलावा एन्टीसेप्टिक क्रीम तथा सुगंधित रसायनों के निर्माण में किया जाता है।लेमन ग्रास या जामारोजा की प्रकृति की इस घास का उपयोग मुख्य रुप से तेल निकालने के लिए किया जाता है जिसमें सिन्ट्रोनिलेल जिरेनियाल,सिन्ट्रोनिलेल एसिटेट, एलमिसीन आदि रासायनिक घटक होते हैं। इसके तेल में 32 से 45 प्रतिशत सिन्ट्रोनिलेल, 12 से 18 प्रतिशत जिरेनियाल,11से15 प्रतिशत सिन्ट्रोनिलोल,3.8 प्रतिशत जिरेनियल एसीटेट,02 से04 प्रतिशत सिन्ट्रोनेलाइल एसीटेट, 02 से 05 प्रतिशत लाइमोसीन ,02 से 05 प्रतिशत एलमिसीन जैसे रासायनिक घटक पाये जाते हैं। इन रसायनों का उपयोग साबुन, क्रीम, ऑडोमास,एन्टीसेप्टिक क्रीम आदि के निर्माण में किया जाता है। जिरेनियाल तथा हाईड्रोक्सी सिन्ट्रोनेलोल जैसे सुगन्धित रसायनों के निर्माण में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
पूरी दुनिया में घरेलू और औद्योगिक उपयोग के कारण सिन्ट्रोनेला आयल की मांग तेजी से बढ रही है जिसके कारण इसकी व्यावसायिक खेती भी तेजी से बढ रही है। चीन, श्रीलंका,ताईवान, ग्वाटेमाला, इंडोनेशिया आदि देशों में इसकी खेती की जा रही है।अपने देश में पूर्वाेत्तर क्षेत्र के अलावा पश्चिम बंगाल , उत्तर प्रदेश ,महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश , तमिलनाडु , गोवा और केरल में व्यावसायिक पैमानें पर इसकी पैदावार ली जा रही है। देश में करीब 8500 हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है।कुल उत्पादित सिन्ट्रोनेला में पूर्वोत्तर क्षेत्र का हिस्सा 80 प्रतिशत है।उपजाऊ जमीन में तो इसकी अच्छी पैदावार होती ही है अम्लीय और क्षारीय जमीन में भी इसे सफलतापूर्वक लगाया जाता है।सिन्ट्रोनेला कई वर्ष तक लगे रहने वाली फसल है जिसके कारण कम लागत में किसानों को अच्छी आय होती है।यह एक बार लगाने के बाद यह पांच साल तक अच्छी पैदावार देती है जिससे पर्याप्त मात्रा में तेल निकलता है । इसके बाद इसमें तेल की मात्रा कम होने लगती है।
सिन्ट्रोनेला बुआई के लगभग 120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद 90 से 120 दिनों में फिर से इसकी कटाई की जाती है। इस प्रकार एक साल में तीन से चार फसल इसकी आसानी से ली जाती है।इसमें तेल की मात्रा पहले साल की तुलना में बढ जाती है।वाष्प आसवन विधि से सिन्ट्रोनेला की पत्तियों से तेल निकाला जाता है जो प्रक्रिया तीन से चार घंटे में पूरी हो जाती है।एक हेक्टेयर में जावा सिन्ट्रोनेला की खेती से पहले साल 150 से 200 किलोग्राम तेल निकलता है इसके बाद दूसरे से पांचवें साल तक 200 से 300 किलोग्राम तेल का उत्पादन होता है । इसके तेल की कीमत 1200 से 1500 रुपये प्रति किलोग्राम है।जोर लैब सी -5 जावा सिन्ट्रोनेला की नवीनतम किस्म है जिसे असम के उत्तर पूर्व विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान जोरहाट ने 2016 में विकसित किया है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे पिछले साल किसानों के लिए जारी किया था।इस किस्म की विशेषता यह है कि इसमें तेल की मात्रा अधिक है जबकि पुरानी किस्मों में तेल की मात्रा कम होती थी।सिन्ट्रोनेला की