अहमदाबाद। गुजरात हाई कोर्ट ने 2002 के राज्यव्यापी दंगों के दौरान यहां नरोडा पाटिया इलाके में अल्पसंख्यक समुदाय के 97 लोगों के जिंदा जलाये जाने से जुड़े नरोड पाटिया नरसंहार मामले में निचली अदालत की ओर से दोषी करार दी गयी राज्य की पूर्व मंत्री और भारतीय जनता पार्टी की तत्कालीन महिला विधायक मायाबेन कोडनानी को आज संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
हाई कोर्ट ने विशेष अदालत की आेर से 2012 में दोषी करार दिए गए 32 में से 12 लोगों को तो दोषी माना पर अन्य को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। इन 32 में से एक की मौत हो चुकी है। निचली अदालत की ओर से बरी किए गए 29 लोगों में से तीन को भी हाई कोर्ट ने दोषी करार दिया। उनकी सजा की बिंदु पर अगले माह अलग से सुनवाई होगी।
हाईकोर्ट ने प्रमुख आरोपी और तत्कालीन बजरंग दल नेता बाबू बजरंगी, प्रकाश राठाैड़ अौर सुरेश लंगड़ो को मुख्य आरोपी करार दिया पर उनकी सजा को भी अन्य दोषियों की तरह एकसमान 21 साल कर दिया। निचली अदालत ने बजरंगी को मृत्युपर्यंत उम्रकैद की सजा दी थी।
गुजरात दंगों के सबसे बड़े नरसंहार नरोडा पाटिया नरसंहार प्रकरण में दोषियों तथा अन्य तरह की अपीलों की उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर सुनवाई करने वाली हाई कोर्ट की न्यायाधीश न्यायाधीश हर्षा देवानी और न्यायाधीश एएस सुपेहिया की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई पिछले साल अगस्त में पूरी कर अपना निर्णय सुरक्षित रखा था। अदालत ने आज अपना फैसला सुनाया।
27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक डिब्बे को जलाने की घटना में 59 लोगों की मौत के एक दिन बाद भीड़ की ओर से 97 लोगों को जला कर मार देने से जुड़े नरोडा पाटिया नरसंहार मामले में विशेष जांच दल की अदालत ने 2012 में नरोडा की तत्कालीन विधायक कोडनानी को 28 साल की सजा सुनाई थी। इसके अलावा बजरंगी को मृत्युपर्यंत उम्रकैद और बाकी 30 दोषियों में से सात को 21 और अन्य को 14 साल की सजा दी थी।
एसआईटी के वकील आर सी कोडकर ने बताया कि कोडनानी के खिलाफ गवाही देने वाले 11 गवाहों के बयान में विरोधाभास और एक भी पुलिस गवाह के उनके मौका-ए-वारदात पर मौजूद होने की पुष्टि नहीं करने के चलते अदालत ने उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
अदालत ने इस मामले में उनका नाम बहुत बाद में यानी 2008 में जोड़े जाने का भी संज्ञान लिया। उधर, अदालत ने इस मामले में स्टिंग ऑपरेशन करने वाले तहलका पोर्टल के संपादक आशीष खेतान की गवाही और पुलिस के बयान के आधार पर बजरंगी और तीन अन्य को आपराधिक षडयंत्र का दोषी माना। हालांकि अदालत ने सभी दोषियों को एक जैसी सजा देने का निर्णय करते हुए सभी को 21 साल की एकसमान सजा दी।
अदालत की ओर से दोषी करार दिए गए लोग इस निर्णय की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में 90 दिन के भीतर अपील दायर कर सकते हैं। उधर, पीड़ित पक्ष ने अदालत के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील करने की बात कही है। अदालत का फैसला लगभग 3000 पन्ने का है।
ज्ञातव्य है कि इसके तथा गुजरात दंगों से जुड़े आधा दर्जन से अधिक अन्य बड़े मामलों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एसआईटी का गठन 2008 में किया गया था।
इस बीच, अदालत के फैसले को लेकर प्रतिक्रियाओं का दौर भी शुरू हो गया है। सत्तारूढ़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जीतू वाघाणी ने कहा कि कोडनानी को तत्कालीन कांग्रेस सरकार के षडयंत्र के तहत फंसाया गया था। उधर, कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष परेश धानाणी ने तो भाजपा पर न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का आरोप लगाया।
विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने दोषी करार दिए गए आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट में अपील में मदद करने की पेशकश की है। पीड़ित पक्ष ने कोडनानी को बरी किए जाने पर हैरत जताई है।