अजमेर। महाराज अग्रसेन ने अपने जीवन में तीन बार लक्ष्मी माता की आराधना की और तीनों बार मां लक्ष्मी ने उनके सामने प्रकट होकर इच्छित वरदान प्रदान किए। उन्होंने षड्दर्शन सहित अनेक प्रकार के शास्त्रों और ज्योतिष का अध्ययन किया है। वे युद्ध कला के भी माहिर थे महाराज अग्रसेन सभी वेदों के ज्ञाता और पूर्ण विद्वान महापुरुष हैं। उन्होंने अनेक मंत्रों से माता की आराधना की।
ये बात अग्र कथा मर्मज्ञ आचार्य नर्बदाशंकर गुरूजी ने जवाहर रंगमंच में अग्रसेन के जीवन पर आधारित श्रीअग्र भागवत कथा के दूसरे दिन कही। अग्रसेन प्रतिमा पूजा-अर्चना और माता लक्ष्मी की पूजा और पोथी पूजन के साथ कथा की शुरुआत हुई।
उन्होंने गुरु महिमा का बखान करते हुए कहा कि अपनी महत्ता के कारण गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा पद दिया गया है। शास्त्र वाक्य में ही गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।
जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी की जाती है। सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। जीवन को समर्पित करना है तो गुरु चरणों में समर्पित कर दो और भगवान की शरण को अपना लो।
सुख का समय बहुत जल्दी कट जाता है, जबकि दुःख का समय बड़ा लम्बा लगता है। जीवन में सुख और दुख धूप-छांव की तरह आते-जाते रहते हैं। कभी सुख की शीतल सुगंध की फुहारें उड़ती हैं तो कभी दुख की जलती-बिखरती चिनगारियां फैलती हैं। सुख के पल यों फिसल जाते हैं कि पता ही नहीं चलता।
सुख की सदियां ऐसे गुजर जाती हैं जैसे अभी अभी घटित हुई थीं, पर दुख के पल काटे नहीं कटते। सुख के तो पर होते हैं और वह उड़ जाता है। जो सफलतापूर्वक दुख के दरिया को पार कर लेता है, वही शूरवीर कहलाता है। कमजोर इसमें डूब जाते हैं और बहादुर पार चले जाते हैं।
महाराजा अग्रसेन ने एक तंत्रीय शाषण प्रणाली को समाप्त कर विश्व में सर्वप्रथम अपने ढंग की अनोखी लोक तंत्रीय शाखा प्रणाली का शुभारंभ किया। सम्राट बनकर अपने राज्य में समाजवाद की प्राण प्रतिष्ठा की। महाराजा अग्रसेन के राज्य में गरीब एवं ऊंचा-नीचा का कोई भेद नहीं था।
महाराज अग्रसेन की बारात, माल्यार्पण
कथा के दौरान नगर के प्रसिद्ध भजन गायक विमल गर्ग ने अनेक मनमोहक भजन प्रस्तुत किए। महाराजा अग्रसेन की भव्य बारात निकली गई। भक्तजन बाराती बने नाचते गाते चल रहे थे, वहीँ माधवी जी की बिंदोरी भी निकली गई, आगे आगे उनकी सखियां नृत्य करतीं चल रही थीं। मंच पर माल्यार्पण और विवाह पूर्व की अन्य रस्मों का सजीव चित्रण किया गया। बाद में विवाह की रस्म और कन्यादान की रस्म भी पूर्ण की गई।
मीडिया प्रभारी और प्रवक्ता शैलेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि अखिल भारतीय अग्रवाल महासम्मेलन के जिलाध्यक्ष अशोक पंसारी ने व्यासपीठ पूजन किया। अशोक पंसारी ने कहा कि यह सिर्फ अग्रवाल समाज की ही कथा नहीं है क्योंकि भगवान किसी जाति या समाज विशेष के नहीं अपितु सम्पूर्ण मानव जाति के होते हैं, उन्होंने सर्वसमाज के बंधुओं को इस कथा का श्रवण करने और पुण्यलाभ उठाने के लिए आमंत्रित किया।
आरम्भ में लोकेश अग्रवाल, शंकर लाल बंसल, जगदीश गर्ग, डॉक्टर विष्णु चौधरी, किशन चांद बंसल, शिवशंकर फतेहपुरिया ने पोथी पूजन और व्यासपीठ का पूजन कर कथा आरम्भ कराई। गोपाल गोयल ने आचार्य श्री का माल्यार्पण किया। पूर्व विधायक डॉक्टर श्रीगोपाल बाहेती, पत्रकार एसपी मित्तल, वैश्य महासम्मेलन जयपुर से राम अवतार सिंहल, अग्रसेन विकास ट्रस्ट के रामबाबू आमेरिया तथा आर के अग्रवाल, अग्रवाल इंटरनेशनल सोसायटी पुष्कर के अजित अग्रवाल, अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। मगलवार के कथा यजमान भजन गायक विमल गर्ग, गोपाल गोयल, साहङ्कारलाल बंसल, भीमसेन अग्रवाल, शिवशंकर फतेहपुरिया, जगदीश गर्ग, लोकेश अग्रवाल, सत्यनारायण पलड़ीवाल, दिनेश चांद तायल, आर एस अग्रवाल, बीपी मित्तल, प्रवीण अग्रवाल, सुनील गोयल, रामचरण श्रीकल्याण, सतीश बंसल, कैलाश डिडवानिया, गोविन्द नारायण कुचिलिया, गणेशीलाल अग्रवाल, महेश गुप्ता, जवरीलाल बंसल, दिनेश परनामी, सुरेश गर्ग, हनुमान श्रिया, बद्रीजी मैदावाले, संदीप मीता गर्ग, लक्ष्मीनारायण, विजय कुमार, घनश्याम तथा गोविंदनारायण हटूका मौजूद रहे। संचालन उमेश गर्ग ने किया।