नई दिल्ली। रेलवे ने दिल्ली सरकार के उन आरोपों को खारिज किया है जिनमें कहा गया है कि रेलवे दिल्ली को बिजली आपूर्ति करने वाले ताप विद्युत संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति नहीं कर पा रहा है।
रेलवे बोर्ड का कहना है कि दिल्ली को बिजली देने वाले दादरी संयंत्र को पिछले तीन दिनों से हर रोज़ आठ-आठ रेक कोयला मिल रहा है। जबकि मंगलवार को भी उसे सात रेक कोयला मिला है। वहीं बदरपुर संयंत्र को हर रोज़ 1.5 रेक कोयला चाहिए होता है और उसे हर रोज़ दो-दो रेक कोयला मिल रहा है। आज भी उसके लिए तीन रेल कोयला पहुंचा है। जबकि झज्जर के संयंत्र को हर रोज चार-चार रेक कोयला मिल रहा है जबकि उसे 3.5 रेक की ज़रूरत होती है। आज उसे पांच रेक कोयला मिला है।
कोयले की आपूर्ति के संदर्भ में रेलवे बिजली घरों को क्रिटिकल यानि जहां सात दिन से कम कोयला बचा है और सुपर क्रिटिकल यानी जिन संयंत्रों के पास तीन दिन से कम कोयला बचा है के आधार पर निगरानी कर रहा है।
इसके लिए रात 11 बजे तक हर जोन में खुद महाप्रबंधक स्तर से निगरानी की जा रही है। वहीं रेल मंत्रालय, कोयला मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय का एक उपसमूह मिलकर हर रोज इसकी निगरानी करता है और हफ्ते में कम से कम दो दिन इसकी बैठकें होती है।
जहां तक मालगाड़ियों से कोयले की ढुलाई की बात है तो 1 मई से अब तक रेलवे हर रोज औसतन 285 रेक कोयले की ढुलाई कर रहा है जिसमें प्राथमिकता बिजली घरों को दी जा रही है और इनमें 260 रेक कोयला देश के अलग अलग संयंत्रों के लिए ढुलाई हो रही है। गत सोमवार को रेलवे ने 292 रेक कोयले की ढुलाई की और इसमें कोल इंडिया लिमिटेड के 278 रेक कोयला शामिल है।
गर्मियों में बिजली की मांग ज्यादा होती है और इसलिए बिजली घरों के पास रिज़र्व कोयले की मात्रा भी कम हो जाती है। कोयला खदानों से बिजली घरों की दूरी के लिहाज से बिजली घर 7 दिन से 20 दिन तक कोयला रिजर्व में रखते हैं ताकि मालगाड़ियों के आवागमन पर असर होने से आपातकालीन परिस्थिति में इसका इस्तेमाल किया जा सके।
दिल्ली और इसके आसपास के बिजली घरों के पास 15 दिन का कोयला रिजर्व में होना चाहिए। रेलवे ने साल 2017 में 555 मिलियन टन कोयले की ढुलाई की थी जो 2016 के मुकाबले 22 मिलियन टन ज्यादा था।