कोलकाता | मर्बर्ग विषाणु संक्रमण रोग (एमवीडी) जिसे मर्बर्ग रक्तस्रावी बुखार के नाम से भी जाना जाता है, मानव जाति के लिए एक गंभीर और जानलेवा रोग है।
मर्बर्ग विषाणु ही मर्बर्ग संक्रमण रोग का कारक होता है। इस बीमारी में मृत्यु दर 88 प्रतिशत है। मर्बर्ग 1967 में पहली बार जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर और सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड में एक साथ दिखायी दिया था। मर्बर्ग और इबोला विषाणु दोनों ही फिलोविरिडे (फिलो वायरस) से संबंधित हैं। दोनों रोग अलग-अलग विषाणु के कारण होते हैं लेकिन चिकित्सा और उपचार की दृष्टि से समान हैं। इन दोनों रोगों का प्रकोप अचानक फैलता है और मृत्यु की दर बहुत अधिक है।
आरंभ में खान और गुफाओं में रहने वाले राउसट्टस चमगादड़ों से मानवों में एमवीडी संक्रमण शुरू हुआ था। मर्बर्ग सीधे संपर्क से मानव से मानव में संक्रमित होने वाला विषाणु है जो संक्रमित व्यक्ति के खून, स्राव, मल, शरीर से निकलने वाले अन्य द्रवों, कपड़ों, बिस्तर आदि के संपर्क में आने से फैलता है।
एमवीडी से संक्रमित रोगियों के उपचार के दौरान उनकी देखरेख करने वाले कर्मियों में इसके फैलने की आशंका रहती है। संक्रमण नियंत्रण की सावधानियों का कड़ाई से पालन न होने पर रोगियों से नजदीकी संपर्क होने पर इसका संक्रमण फैलता है। दूषित सुई से इस्तेमाल से भी यह संक्रमण तेजी से फैलता है।