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किस्मत बदलने वाले लहसुन का भाव गिरा, किसानों के चेहरे मुरझाए
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किस्मत बदलने वाले लहसुन का भाव गिरा, किसानों के चेहरे मुरझाए

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इटावा | गंभीर बीमारियों के इलाज मे अहम भूमिका अदा करने वाले लहसुन के भाव में तेजी से आई गिरावट ने उत्तर प्रदेश के किसानों के चेहरों की हवाईयां उड़ा दी है।

बीस हजार रूपये प्रति कुंतल बिकने वाला लहसुन आज की तारीख मे एक हजार रूपये कुंतल की दर से बिक रहा है। भाव में आई बड़ी गिरावट से लहसुन की पैदावार करने वाले किसानों की जान सांसत में पड़ी है। खासकर जिन किसानों ने कर्ज लेकर फसल तैयार की थी, उनकी हालत सबसे ज्यादा खराब है।

इन किसानों का कहना है कि अबकी बार तो लागत निकालना ही मुश्किल लग रहा है। किसानों की माने तो कभी 20 हजार रुपये प्रति कुंतल तक बिकने वाला लहसुन इस साल मात्र हजार रुपये प्रति कुंतल बिक रहा है। किसानों और लहसुन कारोबारी भाव में गिरावट के पीछे अन्य प्रांतों में लहसुन की बंपर पैदावार मान रहे हैं।

दाम में गिरावट से लहसुन उत्पादक किसान भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। दो साल पहले यही लहसुन 15 से 20 हजार रुपये प्रति कुंतल बिका था, लेकिन इस वर्ष लहसुन का माटी के मोल बिकना किसानों के लिए सिरदर्द बन गया है।

इटावा जिले में करीब दस हजार हेक्टेयर लहसुन का रकबा है। हर वर्ष जिले में लहसुन की बंपर पैदावार होती है। लेकिन इस वर्ष लहसुन की बंपर पैदावार किसानों को रूला रही है। राजस्थान, पश्चिम बंगाल के साथ ही आंध्र प्रदेश में हुई लहसुन की बंपर पैदावार के कारण यहां के किसानों को अब खरीददार नहीं मिल रहे हैं।

लहसुन के भाव में आई गिरावट का कारण यह भी है कि कोलकाता, नागपुर, रायपुर, हैदराबाद, कानपुर, रांची, अकोला, बिहार, दुर्गापुर जैसी मंडियों में इस बार यहां के लहसुन की डिमांड कम है। किसानों की माने तो अप्रेल माह में लहसुन का मूल्य तीन हजार प्रति कुंतल था। तब किसानों को भाव बढ़ने का इंतजार था।

लहसुन उत्पादक किसानों पर भाव की मार दूसरी बार पड़ी है। बीते वर्ष भी लहसुन एक हजार रुपए कुंतल के आसपास बिका था। उस समय तो किसानों ने किसी तरह अपने आप को संभाल लिया। दूसरी बार फसल का ठीकठाक भाव न मिलने से किसानों की कमर पूरी तरह टूट गई है। लागत न निकलने से किसान सदमे में हैं।

किसान जमील अहमद कहते हैं कि जिसने लहसुन की फसल कर्ज लेकर तैयार की थी, वह किसान तो इस बार बर्बादी की कगार पर है। क्योंकि पिछले साल भी भाव कम होने से किसानों को घाटा उठाना पड़ा था। फिलहाल भाव बढ़ा तो ठीक नहीं तो भगवान ही मालिक है।

किसान तिलक सिंह यादव के मुताबिक खाद, पानी, मजदूरी के दाम बढ़ने से लागत तो बढ़ी है, लेकिन लहसुन हजार रुपये प्रति कुंतल बिक रहा है। इस कारण फसल की लागत भी नहीं निकल पा रही है। ऐसे में किसान के सामने दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ गए हैं।

लहसुन कारोबारी प्रदीप गुप्ता कहते हैं कि मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सहित राजस्थान, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश की लहसुन मंडियों में लहसुन की आवक बढ़ी है। साथ ही इस समय लहसुन में नमी ज्यादा होने के कारण लहसुन मंडियों में पहुंचते-पहुंचते काला पड़ने की संभावना है। भाव में गिरावट का यह भी कारण है।

लहसुन व्यापारी विनोद कुमार ने कहा कि बाहरी मंडियों में लहसुन की डिमांड कम हुई है। साथ ही निर्यात में भी कमी आई है। यही कारण है लहसुन के खरीददार कम हुए हैं और उसके दामों में काफी गिरावट दर्ज की गई है। अन्य प्रांतों में भी लहसुन की बंपर पैदा हुई है।

प्रदेश में लहसुन की प्रमुख मंडियां घिरोर, कुरावली, भोगांव, ऊसराहार, उमरैन, कानपुर आदि हैं। इन मंडियों से लहसुन पश्चिम बंगाल के कोलकाता, दुर्गापुर, महाराष्ट्र के नागपुर, अकोला, मुंबई, झारखंड की बोकारो, रांची, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की लहसुन मंडियों सहित बंगलूरू, दिल्ली आदि स्थानों पर भेजा जाता है।

झारखंड बोकारो के व्यापारी हीरालाल बताते है कि बीते वर्षों में लहसुन की कीमत आसमान छूती रही थी, जिसकी वजह से अबकी बार बड़े भू- भाग पर लहसुन की फसल बोई गई। लहसुन की मंदी का यही कारण रहा।

कोलकाता,नागपुर और बिहार की मंडी में लहसुन का कारोबार करने वाले कारोबारी विनोद गुप्ता बताते हैं कि मध्य प्रदेश की मंडियों में लहसुन की आवाज बड़े स्तर पर हो रही है इसी वजह से दरों में तेजी नहीं आ पा रही है।

इटावा के प्रमुख लहसुन कारोबारी अतुलेश कुमार का कहना है कि लहसुन की दामो मे भारी गिरावट किसानो के लिए मुसीबत की बात तो मानी ही जाएगी साथ ही कारोबारियो के लिए भी चिंता पैदा करने वाली है क्योंकि कारोबारियों ने खासी तादात मे लहसुन पर अपनी रकम लगा रखी है लेकिन अब दामो मे भारी गिरावट आने से किसान और कारोबारी दोनों के चेहरे की हवाईयां उड़ी हुई हैं।

नगला हंसे निवासी किसान रामवीर यादव बताते हैं कि उनके गांव में लगभग 500 बीघा के करीब खेतों में लहसुन की फसल बोई थी इससे सैकड़ों किसान प्रभावित हुए हैं।

किसान सोनेलाल बताते हैं कि लहसुन की फसल में आमतौर पर 2000 से 3000 रुपए प्रति कुंतल की दर की लागत आती है और आज हजार रुपए कुंतल का भाव मिल रहा है एक बीघा में चार कुंतल के आसपास लहसुन का उत्पादन होता है ऐसे में किसान को उसकी मेहनत का फल नहीं मिल पा रहा है।

लहसुन की खेती में किसान को अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक लागत आती है साथ ही मेहनत भी दुगनी करनी पड़ती है। एक बीघा में किसान को 3000 रुपए तक खर्च करने होते हैं। इसमें बीज खाद कीटनाशक के बाद सिंचाई आदि का खर्चा आता है इतनी मेहनत के बाद उसे वाजिब मुनाफा नहीं हो पा रहा है। पहले लहसुन बेचकर किसान अपने बेटियों के हाथ पीले कर लेते थे अब यह फसल मुनाफा देने वाली नहीं रही है।

किसान रामनरेश शाक्य, अजय गुप्ता, तिलक सिंह, सत्यप्रकाश गुप्ता का कहना है कि ठीक भाव न मिलने के कारण उन्होंने अपने खेतों में ही लहसुन की पूरी फसल काे फेंक दिया। ताखा क्षेत्र में लहसुन की फसल ही सबसे प्रमुख हैं। किसान की आर्थिक स्थिति भी इस फसल पर निर्भर करती है। जबकि लहसुन का भाव गिरता है तो किसान परेशान होता है।