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चश्मों के नजरिये से मैले होते चेहरे
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चश्मों के नजरिये से मैले होते चेहरे

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चश्मों के नजरिये से मैले होते चेहरे

सबगुरु न्यूज। चश्मों में लगे कांच अपने गुण धर्म के अनुसार ही दिखने वाले हर दृश्य का बखान करते हैं। चश्मों के यह कांच हकीकत से रूबरू नहीं हो पाते हैं और उन कहानियों को बना देते हैं जिनका कोई आधार नहीं होता।

सोच का नजरिया मन को बदल देता है और मन उस नजरिये से किसी को देव तो किसी को दानव बना देता है। किसी भी घटनाक्रम को यह नजरिया अपने ही सोच की धारा में बहा ले जाता है और अंतिम रिपोर्ट भी अपने नजरिये से देने की कवायद करता है।

इस पूरी ही तपतीश में सोच का नजरिया सत्य को सिरे से ही खारिज कर देता है क्योंकि धारणा का आधार जब नकारात्मक हो तो वह कभी भी अपना सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकता और सत्य पर कालिख पोत दी जाती है। असत्य अपना झंडा लेकर अग्रिम पंक्ति में खडा होकर सत्य की जीत के नारे लगाते रहता है।

सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं सदा ही इन चश्मों की सोच से पीड़ित होती आईं हैं और उसका परिणाम सदा ही इन संस्थाओं में विखंडन ही देखने को मिलता है, उसी कारण समाज में ऊंच नीच छुआ-छूत जाति वर्ग प्रणाली विकसित होने लगी तथा हर क्षेत्रों में सामूहिकता के स्थान पर बिखराव होने लगा। अलग अलग चश्मों की इन्हीं नजरों से ग्रसित सोच ने चेहरों को मैला बना कर प्रस्तुत किया।

संत जन कहते है कि हे मानव, अपराध जब किसी मन में पनपता है तो साहूकार, चोर, शरीफ, बदमाश, अमीर, गरीब, ऊंचा, नीचा, अगडा, पिछडा, राजा और रंक या जो भी हो वह इन शब्दों से सरोकार नहीं रखता है तथा सभी पर कानून का एक ही नजरिया होता है साथ ही इनको अलग-अलग चश्मों की नजर से नहीं देखा जा सकता है।

केवल कानून ही अपने नजरिये से देखता है तो ही अंतिम अंजाम तक पहुंचा जा सकता है। सत्य का विश्लेषण करने वाले हर घराने हर संस्था के अधिकारों पर अतिक्रमण कर पहले ही अपना फैसला सुना देते हैं तो वह हर अपराध की हर दिशा और दशा को बदल देते हैं। समाज में संघर्ष को जन्म देकर सामूहिकता का खंडित कर देते हैं व नए अपराधों को जन्म देते हैं।

इसलिए हे मानव तू अपने अधिकारों मे अनुचित वृद्धि मत कर और दूसरो के अधिकारों का अतिक्रमी मत बन तब ही सत्य का चश्मा सत्य को उजागर कर सकेगा अन्यथा हर चेहरे तुझे मेले ही नजर आएंगे।

सौजन्य : भंवरलाल