नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस वक्तव्य को गुमराह करने वाला बताया है कि मंत्रालय ने उपराज्यपाल अनिल बैजल को दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारों के बारे में सुप्रीमकोर्ट के आदेश के एक हिस्से को नजरअंदाज करने की सलाह दी है।
केजरीवाल ने आज आरोप लगाया था कि गृह मंत्रालय ने उपराज्यपाल को सुप्रीमकोर्ट के आदेश के उस हिस्से को नजरअंदाज करने की सलाह दी है जिसमें उपराज्यपाल को सिर्फ तीन मामलों में अधिकार होने की बात कही गई है। उन्होंने कहा था कि यह बहुत ही खतरनाक है कि केंद्र सरकार उपराज्यपाल को न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने की सलाह दे रही है।
इसपर गृह मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया है कि उसने अपराज्यपाल को सुप्रीमकोर्ट के आदेश के किसी भी हिस्से को नजरअंदाज करने की सलाह नहीं दी है। मंत्रालय ने उपराज्यपाल के राय मांगने पर उन्हें यह सलाह दी है कि वह कानून के अनुरूप काम करें और यह सलाह कानून मंत्रालय की इस राय पर आधारित है कि संविधान पीठ ने आदेश में कहा है कि सेवाओं से जुड़ा मामला संबंधित नियमित पीठ के समक्ष रखा जाए।
गृह मंत्रालय ने कहा कि सेवाओं से संबंधित मामले पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है और यह नियमित पीठ के समक्ष लंबित है। यह संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधानों के अनुरूप भी है।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के अधिकारों को लेकर उच्चतम न्यायालय का निर्णय आने के बाद भी उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री केजरीवाल के बीच अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले के मुद्दे पर तनाव बरकरार है। सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के आलोक में केजरीवाल और उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार को राजनिवास जाकर बैजल से मुलाकात की थी।
मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने संवाददाताओं से कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के पैरा 277 में लिखा है कि पुलिस, भूमि और कानून-व्यवस्था के अलावा सभी मामलों में निर्णय करने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। प्रत्येक फाइल पर उपराज्यपाल की स्वीकृति की जरूरत नहीं होगी। उपराज्यपाल इस पर राजी हो गए हैं, किंतु सेवाओं से जुड़े मामलों को मानने से उन्होंने मना कर दिया है।
उनका कहना है कि गृह मंत्रालय के पूर्व के आदेश को न्यायालय ने खारिज नहीं किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र की मौजूदा सरकार उन्हें काम नहीं करने देना चाहती। उपराज्यपाल के जरिये वह अपना दबाव चाह रही है और इसलिए उपराज्यपाल ने सेवाओं का विभाग सौंपने से इन्कार कर दिया है।