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रानी पद्मवती की बेपनाह खूबसूरती और और उनकी पूरी ज़िंदगी की कहानी - Sabguru News
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रानी पद्मवती की बेपनाह खूबसूरती और और उनकी पूरी ज़िंदगी की कहानी

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रानी पद्मवती की बेपनाह खूबसूरती और और उनकी पूरी ज़िंदगी की कहानी

  1. रानी पद्मावती को रानी पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है। वह 13-14 शताब्दी की एक महान भारतीय रानी थी। मुहम्मद जयासी ने कविता पदमावत में सिंघल साम्राज्य की एक असाधारण सुंदर राजकुमारी का के बारे में बताया है। चित्तौड़ के राजा रतन सेन को रानी की सुंदरता के बारे में बोलने वाले एक तोते हीरामन से पता चला था, जिसके बाद उन्होंने पद्मावती से शादी कर ली।

2. वह रतन से की दूसरी पत्नी थीं। कहा जाता है कि वह बचपन में बोलने वाले एक तोते हीरामन की करीबी दोस्त बन गईं। जब पद्मिनी के पिता राजा गंधर्व सेन को बेटी और हीरामन के करीबी रिश्ते का पता चला, तो उन्होंने तोते को जान से मारने का आदेश दिया। हालांकि, हीरामन वहां उड़ने में कामयाब हो गया और एक बहेलिये ने उसे पकड़कर एक ब्राह्मण को बेच दिया। उसके बाद रतन सेन ने ब्राह्मण से तोते खरीद लिया।

3. राघव चेतन चित्तौड़ के शाही दरबार में बैठते थे और राजा रतन सेन ने धोखाधड़ी करने पर उन्हें निकाल दिया था। उन्होंने ही रानी पद्मावती के बारे में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को बताया था, जिसके बाद खिलजी ने पद्मावती से मिलने का फैसला किया।

4. अल्लाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी को पाने के लिए रतन सेन का अपहरण कर लिया। जब रतन सेन ने रानी पद्मिनी को देने से इंकार कर दिया, तो खिलजी ने रतन सेन को शांति संधि का धोखा दिया और उसे दिल्ली ले गया। बाद में रानी पद्मिनी ने राजा रतन सेन की भरोसेमंद सामंतों से मदद ली और उन्हें दिल्ली से बचा लिया।

5. इस बीच जब राजा रतन सेन दिल्ली से बचकर भाग रहे थे, तो कुंभालनेर के राजपूत राजा देवपाल ने रानी पद्मावती को शादी के लिए प्रस्ताव दिया। जब राजा रतन सेन वापस चित्तौड़ आए और उन्हें देवपाल की इस हरकत के बारे में पता चला, तो उन्होंने देवपाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

6. दोनों के बीच हुए युद्ध में राजा देवपाल और रतन सेन दोनों ने एक दूसरे की हत्या कर दी। रतन सेन की मौत के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने एक बार फिर चित्तौड़ पर हमला कर उसे जीतने की कोशिश खी। मगर, रानी ने इस बार जौहर व्रत (जिंदा आग में कूद जाना) ले लिया। उनके साथ राजमहल की हजारों वीरांगनाओं ने अपनी जान दे दी। खिलजी के हाथ में राख के अलावा कुछ नहीं आया।