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पिंजरा पोल गौशाला में बही भक्ति की रसधारा, झूम उठे भक्तजन
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पिंजरा पोल गौशाला में बही भक्ति की रसधारा, झूम उठे भक्तजन

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पिंजरा पोल गौशाला में बही भक्ति की रसधारा, झूम उठे भक्तजन
hari katha at pinjrapole gaushala in pali
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पाली। पाली की पिंजरा पोल गौशाला में श्रावणमासीय चातुर्मास्य के तीसरे दिन भक्ति की रसधारा ऐसी बही कि भक्तजन श्रद्धा और भक्ति से झुम उठे।

श्री अभय हरि सेवा संकीर्तन समिति की ओर से आयोजित कथा में प्रवचन करते हुए अभयदास महाराज ने कहा कि शरीर, मन-बुद्धि, चित्त-चेतना, अहंकार आदि से भिन्न अपने वास्तविक स्वरूप का बोध आनन्दप्रदाता है। अतः अपनी निजता-स्वभाव अर्थात् अस्तित्व की और लौटें जहां परम-शान्ति और अखण्ड-आनन्द विद्यमान है।

मनुष्य-जीवन ईश्वरीय उपहार है। अपने वास्तविक स्वरूप का बोध और जीवन के प्रयोजन की पूर्ति ही जीवन का लक्ष्य हो, यही परम पुरुषार्थ है। दीपक के प्रकाश से जैसे वस्तुओं का ज्ञान होता है, वैसे ही ज्ञान के प्रकाश से पदार्थों के वास्तविक स्वरूप का बोध हो जाता है।

ज्ञानयोग से तात्पर्य है ‘विशुद्ध आत्मस्वरूप का ज्ञान’ या ‘आत्मचैतन्य की अनुभूति’। इसे उपनिषदों में ब्रह्मानुभूति भी कहा गया है। मनुष्य का वास्तविक स्वरूप है सत् चित् एवं आनन्द।

hari katha at pinjrapole gaushala in pali

परम आनंद के बारे में भगवान ने गीता में बताया है कि वह स्थिति जिसमें मनुष्य सुख, दुख, हानि, लाभ, क्रोध, मोह और अहंकार आदि से मुक्त होकर स्वयं में स्थापित हो चुका हो, यानी मन का पूर्णतया निग्रह।

भगवान ने कहा कि निवार्त स्थान में रखे दीपक की ज्योति चलायमान नहीं होती है, लौ सीधी ऊपर जाती है वैसे ही योगाभ्यास द्वारा, जब चित वश में हो और योगी अपने आत्मस्वरूप में स्थित हो तब वो योगयुक्त्त कहलाता है!

यह बात भगवान बार-बार अर्जुन के सामने रखते हैं कि स्वयं को आत्म-स्वरूप में स्थित करो। क्यों ये बात बार-बार कही गई है? क्योंकि, व्यक्त्ति जिस स्वरूप में अपने को स्थित करता है, या मानता है, उसी की याद उसको सहज स्वाभाविक रूप से आती है।

मान लीजिए व​ह अगर डॉक्टर है, तो उसको रटने की आवश्यकता नहीं होती कि मैं डॉक्टर हूं, लेकिन जैसे ही वह अपना कार्य करता है वैसे ही अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है। इस तरह परमात्मा अर्जुन को यही समझाते हैं कि तुम अपने आपको आत्म-स्वरूप में स्थित करो।

क्योंकि जब तक तुम स्वयं को देहधारी रूप में देखते हो तब तक तुम्हें मोह सताता रहेगा। ये मेरे भाई हैं, ये मेरे बड़े हैं उसको मैं कैसे मारूंगा आदि? यानि मारने की बात कोई व्यक्ति को नहीं है। यहां मारने से तात्पर्य मोह को नष्ट करनेसे है और उसके लिए विधि बताई कि स्वयं को आत्म-स्वरूप में स्थित करो।

जब आत्म स्वरूप में स्थित होंगे तो कौन याद आएगा? तो परमात्मा की याद सहज, स्वाभाविक और निरन्तर बनी रहेगी। इसीलिए गीता में श्री भगवान द्वारा ये बात अर्जुन को बार-बार कही गई है।

कथा स्थल पर बाबा रामदेव सेवा समिति द्वारा शीतल पेयजल की व्यवस्था की जा रही है। आज के यजमान व प्रसाद के लाभार्थी देवीलाल सांखला रहे। विधायक ज्ञानचंद पारख, सभापति महेन्द्र बोहरा भंवरलाल पटेल, सोहनलाल बिड़ला नरेश पाण्डे, प्रेमसिंह सिसोदिया, गणेशराम कुमावत, दलपसिंह राजपुरोहित, बद्रीनारायण शर्मा, रामलाल तोषावरा, गणेशराम पटेल, चुन्नीलाल राजपुरोहित, सदासुखलाल कुमावत सहित समिति के अनोपसिंह चौहान, सुरेश पटेल, मेवाड़ा चम्पालाल सिसोदिया, गौतम यति, लालचन्द मेवाड़ा, हीरालाल व्यास, सोहनलाल बिरला, जयेश सोलंकी, रूपचन्द मेवाड़ा, जेठाराम पटेल, सोनाराम पटेल, भुण्डाराम चौहान, तुलसाराम पालीवाल, परमेश्वर शर्मा, खीमाराम पटेल, गणेशराम पटेल भी सहयोगी के रूप में सेवाएं दे रहें हैं।