सबगुरु न्यूज। वास्तु में पंच महाभूतों का अनुकूल संतुलन करने मात्र से ही वास्तु दोषों का निवारण नहीं हो जाता वरन उसने रहने वाला व्यक्ति भी पंचभूतों से पैदा हुआ है, उसके शरीर में भी इन पंच महाभूतों का अनुकूल संतुलन होना आवश्यक है।
एक ही वास्तु में जब व्यक्ति जन्म लेता है तो उसका समय अलग-अलग होता है उस समय की भौगोलिक और खगोलीय स्थितियां भिन्न- भिन्न होती है। चांद सितारे आकाशीय पिंड सदैव गतिमान रहते हैं विभिन्न विभिन्न समयों में उनकी अलग-अलग आकाशीय स्थिति रहती है उसी अनुसार व्यक्ति पर उनका प्रभाव पड़ता है।
जब उस व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है तो निश्चित रूप से वह जिस वस्तु में रहता है चाहे वहां पंचमहाभूतों का अनुकूल संतुलन भी क्यों न हो, उस व्यक्ति की ग्रह स्थितियां परिस्थितियां भी स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
हजारों छोटे- छोटे जीव जन्तु हमारे वास्तु में जन्मते हैं, हजारों लाखों प्रकाशकण नित्य हमारी वास्तु को प्रभावित करते रहते हैं, इस कारण उस वास्तु में प्रभाव आवश्य पड़ेंगे चाहे वे सकारात्मक हो या नकारात्मक।
वास्तु शास्त्र के नियम हमारे ऋषि मुनियों की अनुपम देन है। मानव के कल्याण व सुखी जीवन के लिए अपने लम्बे अनुभव व साधना के बाद उन्होंने ये नियम बनाए इसलिए सर्वत्र व सदा ये लागू रहेंगे। अतः वास्तु सम्मत नियमों के अनुसार आवास निर्माण हितकारी होते हैं अतः जहां तक हो सके उनकी पालना करनी चाहिए।
यदि पालना शत-प्रतिशत हो नहीं पा रही है तो घबराइए मत, केवल वास्तु सिद्धांतों के विपरीत बने निर्माण से ही आपका भाग्य नहीं बदल जाएगा या आप बड़ी हानि के शिकार नहीं बनोंगे। यदि आपकी जन्म समय के नक्षत्र, ग्रह अनुकूल है अरिष्ट निवारण योग मजबूत है तो आपका कुछ भी नहीं होगा।
मान लीजिए आप के ग्रह नक्षत्र भी अनुकूल नहीं है, तो भी घबराइए मत आप के साथ जुड़ा है आपके गुरु का आशीर्वाद, आपके साथ जुड़ी है आपके पितरों की कृपा, आपके साथ जुड़ी हुई है आपकी इष्ट साधना और आपके साथ जुड़े हुए हैं आपके शुद्ध विचार, शुद्ध कर्म, यदि इनमें भी अशुद्धि है तो मानव कल्याण और राष्ट्र की उन्नति में लग जाएं, हजारों लाखों लोगों का आपको आशीर्वाद मिलेगा और आपकी वास्तु और आपके नक्षत्र ग्रह जो अनिष्टकारी है व सब अपना प्रभाव दिखाना बंद करेंगे क्योंकि इनकी हजारों ध्वनि तरंगे आपके दिल और दिमाग से टकराएगी और आप हर क्षेत्र में समृद्ध हो जाएंगे।
एक बड़ा उद्योगपति, व्यापारी, व्यवसायी या धनाढय वर्ग जब हजारों लोगों को रोजगार देता है तो उन श्रमिकों की दिल से दुआ निकलते ही उसके वास्तु की ऊर्जाएं बढ़ जाती हैं और हजारों वास्तु और ग्रह दोषों से मुक्त हो जाता है। जितना भी हो, जैसा भी हो आपका दूसरों के प्रति सहयोग आपके दोषों को दूर करने में समर्थ होगा।
हमारे ऋषि मुनियों ने जो वास्तु सिद्धांत बनाए निःसंदेह वे सत्य थे और आज भी हैं, लेकिन साथ में उन्होंने मानव जीवन हेतु एक श्रेष्ठ आचार संहिता, उस संहिता को अपना कर व्यक्ति अपने दोनों लोकों की यात्रा सफल कर लेता है, इसमें कोई संदेह नहीं।
निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि मात्र और केवल मात्र वास्तु नियमों के अनुसार कार्य करने से ही भाग्य नहीं बदलता वरन् अन्य प्रभाव भी लगातार और प्रतिक्षण वास्तु को प्रभावित करते रहते हैं, इस कारण एक ही सिद्धांत से बनी वास्तु के परिणामों में भिन्नता आती है। इस कारण किसी का भाग्योदय हो जाता है तो कोई गुमनामी में रह जाता है, एक संतान सुख ही तो दूसरी दुखी रहती है।
नैऋत्य दिशा में सोने पर भी वास्तु के मुखिया का घर में नियंत्रण नहीं हो पाता। एक घर में रहने वाली महिलाओं में कुछ में प्रेम और कुछ में वैमनस्य हो जाता। एक ही वस्तु में महिलाओं के संतान होती है तो दूसरी बिना संतान के ही रह जाती है इत्यादि।
वास्तु के अतिरिक्त अन्य सिद्धांत भी पूर्ण रुप से लागू होते हैं जो मानव जीवन को प्रतिक्षण प्रभावित करते हैं। यदि आपके निर्माण में चाहकर भी वास्तु दोष का निवारण नहीं हो पा रहा है तो आप घबराइए मत, हताश ना हो, अपना उत्साह बनाए रखें, आप वास्तु देव की कृपा के लिए प्रार्थना, वंदना करें, अपने इष्ट को प्रबल बनाएं, पित्तरों के आशीर्वाद को लें।
विधिनुसार अनुष्ठान, पूजापाठ करें, मानव कल्याण हेतु जितना भी हो सके कार्य करें, जीवों पर दया रखें, बड़ों की आशीर्वाद ले, किसी का दिल ना दुखाएं। निश्चित रूप से आप आजमाकर देखिये। आपकी वास्तु के दोष आपको नुकसान नहीं करेंगे और आप वास्तु देव की कृपा प्राप्त करेंगे।
वास्तु सिद्धांत के अनुसार निर्माण कर और फल ले, ऐसा मानना व्यवहारिक रूप से उचित प्रतीत नहीं होती, ऐसा तभी हो सकता है जब भारत के उत्तर में हिमालय के स्थान पर जल के समुद्र हो और दक्षिण तथा दक्षिण पश्चिम में समुद्र के स्थान पर हिमालय हो (जैसा की वास्तु सिद्धांतों में माना गया है।) और ये सब कुछ संभव नहीं है। क्योंकि यत पिण्डे तद बह्मांडे के सिद्धांत को स्वीकारते हैं तो जैसा ब्रह्मांड में गुण होगा वैसा ही पिण्ड में होगा।
सौजन्य : भंवरलाल