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हरियाली का चीर बढने लगा

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हरियाली का चीर बढने लगा

सबगुरु न्यूज। इस सृष्टि जगत का निर्माण करने वाली प्रकृति रूपी शक्ति अपनी व्यवस्था के संचालन के लिए आकाश, धरती, हवा, अग्नि, पानी को पंच परमेश्वर के रूप मे स्थापित करती है। ये पंच परमेश्वर इस जगत में शासक बन कर अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं तथा प्रकृति प्रदत्त हर ग्रह, नक्षत्र, सूरज, चांद, तारे व अनेकों आकाशीय पिंडों की सहायता से वर्ष भर के कार्यक्रम की योजना बना कर ऋतुओं को काम करने का जिम्मा सौंप देते हैं।

ऋतुओं के द्वारा अंजाम दिए कार्यों और उपलब्धियों का हिसाब स्वयं प्रकृति साल में दो बार देखती है तथा उनकी सफलता व असफलता पर हाथों हाथ मोहर लगा देती है। भविष्य के लिए कार्यक्रम को कैसे करना है उसी के अनुसार पंच परमेश्वर को अपने दिशा निर्देश प्रदान करती है।

ऋतुएं सूर्य के उतरायण और दक्षिणायण को आधार मानकर उसके अनुसार ही व्यवहार करतीं है। सावन मास में ख़ूब बरसकर हरियाली के चीर को बढ़ाती रहती है और धरती का कण कण हरा भरा हो जाता है। उस हरियाली की रक्षा के लिए जाता हुआ सावन मास रक्षा का सूत्र बांध देता है कि हे बरसात अब जरा संभल कर चलना क्योंकि धरती की गोद हरी भरी हो चुकी है और वह फल तब ही देगी जब वर्षा का वेग आवश्यकता के अनुसार ही हो वरना धरती की गोद में फल आ नहीं पाएंगे और भादवा मास धरती की गोद को भर नहीं पाएगा।

आसोज मास उसको सहेज नहीं पाएगा और कार्तिक मास उस फल को काट कर प्राप्ति नहीं कर पाएगा। ये दक्षिणायण का सूर्य वापस जाने की ओर हो जाएगा और धरती की गोद सूनी ही रह जाएगी। इसलिए हे वर्षा तू जरा संभल कर बरस और मेरे रक्षा सूत्र की लाज बचाकर मेरी हरियाली को बनाए रख।

हे मेघों तुम और मैं दोनों ही प्रकृति की संतानें हैं और रिश्ते में हम बहन भाई हैं। इसलिए भाई तू मेरी रक्षासूत्र की लाज रख और हमारे शासन की व्यवस्था को कुशल ढंग से संचालन करने में सहयोग कर वरना प्रकृति हमसे रुष्ट होकर अपना प्रकोप करने लग जाएगी।

संत जन कहते हैं कि हे जीव, प्रकृति की शासन व्यवस्था मानव को निर्देशित करती हैं कि हे तू अपने वर्षभर के कार्यों की उपलब्धि का हिसाब जमीनी स्तर पर बता ताकि तेरी योजनाओं की सफलता और असफलता पर मोहर लग सके। उसे भविष्य के गर्भ और उसकी उपलब्धि पर मत छोड़। भविष्य में तेरा क्या होगा इसकी सत्यता का भान तूझे भी नहीं है।

इसलिए हे मानव तू अपना काम कर और हाथों हाथ फल की प्राप्ति करने की ओर बढ़ तब ही तू अपने कार्य के मूल्यांकन में खरा उतरेगा अन्यथा सूखे की चपेट में आ जाएगा और वर्षा की बाढ़ मे बह जाएगा।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर