अजमेर। ख्वाजा की नगरी अजमेर में ईद-उल-जुहा (बकरीद) का त्योहार बुधवार को हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। ईद की मुख्य नमाज केसरगंज स्थित ईदगाह पर पढ़ी गई जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने नमाज अदा की और विशेष दुआ पढ़कर मुल्क की खुशहाली एवं भाईचारे की दुआ मांगी।
बड़ी संख्या में मुसलमानों ने गले मिलकर एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद दी और परस्पर खुशियां बांटी और दरगाह परिसर स्थित संदली एवं शाहजहांनी मस्जिद, कलेक्ट्रेट मस्जिद, मस्जिद क्लॉक टावर एवं सूफी मस्जिद सोमलपुर पर भी अल्लाह की राह में कुर्बानी का त्योहार ईद की नमाज अदा की गई।
ईदगाह स्थित मुख्य नमाज के दौरान हजारों मुसलमानों ने नमाज अदा की। यहां दरगाह कमेटी ने नमाज के लिए विशेष इंतजाम कराए और वजू के लिए भी व्यवस्था की। बड़ी संख्या में खादिमों, दोनों अंजुमनों के पदाधिकारियों, दरगाह नाजिम ने नमाज अदा की तथा प्यार मोहब्बत, बलिदान, तपस्या के इस दिन पर देश में अमन चैन की कामना की।
इस मौके पर जिला कलेक्टर आरती डोगरा एवं पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह व्यवस्थाओं की कमान संभाली। नमाज के बाद कांग्रेस, आम पार्टी तथा भाजपा की ओर से भी मुस्लिम बिरादरी को गले मिलकर बकरीद की बधाई दी गई। नमाज के बाद मुस्लिम परिवारों में कुर्बानी का दौर शुरू हुआ।
कुर्बानी का प्रमुख आकर्षण हाजी फैय्याज उल्लाह के परिवार का शेरु नामक 120 किलो वजनी बकरा रहा जिसे पाल पोसकर परिवार के सदस्यों ने बड़ा किया और आज उसे सजाकर माला पहनाकर बाजार में उसकी सवारी निकाली गई तथा अल्लाह की राह में कुर्बानी देकर धार्मिक रस्म अदा की गई।
सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के वंशज एवं वंशानुगत सज्जादानशीन दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने ईद के मुबारक मौके पर जारी अपने संदेश में कहा कि ईद-उल-जुहा त्याग, आत्म इच्छा एवं समर्पण और आज्ञाकारिता के प्रतीक स्वरुप मनाया जाता है। लोगों को इसे अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि इस्लाम शांति, भाईचारा, मिलनसाहर से जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देता है।
छोटा हज के लिए कश्मीरियों का लगा रहा जमावड़ा
ईद के मौके पर अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में छोटा हज करने के लिए कश्मीरी एवं काठियावाड़ियों का आज जमावड़ा लगा रहा।
माना जाता है कि जो कश्मीरी लोग हज पर नहीं जा पाते है वे ईद के मौके पर अजमेर दरगाह आकर छोटा हज करने की परंपरा निभाते हैं। इस परंपरा को निभाने के लिए पिछले दो दिनों से कश्मीरी एवं काठियावाड़ियों का अजमेर पहुंचने का सिलसिला जारी रहा और दरगाह में हाजिरी देकर छोटे हज की धार्मिक रस्म को पूरा किया।
उधर ईद के मौके पर खोला गया जन्नती दरवाजा अपराह्न तीन बजे खिदमत शुरू होने पर बंद कर दिया गया। अलसुबह खोले गए दरवाजे के जरिए आस्ताना शरीफ में हाजिरी लगाने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी।
अनेक मुसलमानों ने ईद की नमाज के पूर्व जन्नती दरवाजे में प्रवेश किया तथा यह सिलसिला दरवाज़ा बंद होने तक जारी रहा। समय समाप्त होने के बाद पंक्तिबद खड़े लोगों को केवल दरवाजा चूमने से ही सब्र करना पड़ा।
गौरतलब है कि जन्नती दरवाजा साल में महज चार मौकों पर खोला जाता है। इनमें छह दिन गरीब नवाज का उर्स, एक एक दिन ईदुलफितर एवं ईदुलजुहा, तथा एक बार ख्वाजा साहब के गुरु उस्मान हारुनी के उर्स पर खोला जाता है।