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म्हाने अबके बचा ले म्हारी मां

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म्हाने अबके बचा ले म्हारी मां

सबगुरु न्यूज। शरीर रूपी विरासत को प्रकृति की जाग्रत रूपी शक्ति चलाती है और इनके संयोजन से मन उत्पन्न हो जाता है और वह इस विरासत पर राज करने लग जाता है।

इस विरासत पर जब मन सकारात्मक या नकारात्मक किसी भी तरह की ज़बरदस्ती करने लग जाता है और इस विरासत का रखरखाव नहीं करता है तो यह शरीर दुर्बल होकर पुनः अपने मूल स्वरूप पंच महाभूतों मे विलीन होने की ओर बढने लग जाता है और मन इसको हर तरह से रोकने की कोशिश में लग जाता है और शरीर के घाटे की पूर्ति में लग जाता। वह भरसक प्रयास करता है कि ये शरीर बच जाए।

सतं जनों ने इस पंच तत्व के शरीर को पांच भाईयों की बहन की तरह माना है जो जीवन रूपी पीहर में ही आनंद में रहना चाहती है और मृत्यु रूपी ससुराल में नहीं जाना चाहती। बीमारी या किसी कारण शरीर जब मृत्यु की ओर अग्रसर होता है तो मन अपनी शक्ति रूपी मां से कहता है कि हे मां मुझे इस बार बचा ले क्योंकि बटाऊ अर्थात यमराज लेने को आ रहा है।

मन की प्रधानता के कारण पंच महाभूत का यह शरीर पंच महाभूत के मिलन अपने मृत्यु रूपी ससुराल में नहीं जाना चाहता है और हर संभव प्रयास करता है कि भले ही प्राणदायक यंत्रों पर टिका रहे पर जिन्दा रहे और हर बचाने वाले को मां की तरह मानकर विनती करता है कि हे मां तू इस बार तो बचा ले।

आकाश, अग्नि, जल, हवा और पृथ्वी इनको पंच महाभूत कहा गया है। ये पंच महाभूत ही मानव शरीर का निर्माण करते हैं और अंत में मानव शरीर इन्हीं पंच महाभूतों में विलीन हो जाता है।

इस पंच महाभूत के शरीर को प्रकृति का शक्ति तत्व जाग्रत करता है और इसी क्रिया के साथ ही शरीर में मन उत्पन्न हो जाता है। यह मन पंच महाभूत उनके गुण और क्रिया पर राज करने लग जाता है। इसी के कारण शक्ति के जाग्रत होते ही शरीर में चौदह मनोवृत्तियों की स्वत: ही उत्पति हो जाती है और शरीर को भूख, प्यास, हंसना, रोना, स्पर्श आदि महसूस होने लगता है।

ऋतुओं की रानी बसंत रूपी नायिका ने अपने प्रियतम के मिलन के बाद सावन मास में झक कर स्नान कर लिया है और तीज के श्रृंगार के बाद वह अपने मेघ रूपी भाई के रक्षा सूत्र बांधकर अपने नए अवतार में जाने के लिए विदाई ले रही है। भाद्रपद मास में कष्टों को काटने और खुशियों के मेले लगाने की ओर बढ रही है। अपने गर्भ से धान्य रुपी फसलों के नए अवतारो को उत्पन्न करने के लिए विदा ले रही है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, सावन मास सुखों को बढ़ाकर सर्वत्र हरियाली तो कर देता है लेकिन जल प्रलय बर्बादी के खेल छोड़ जाता है और इस बर्बादी को दूर करने के लिए नवीन तकनीक और नए साधनों को जरूरते जन्म देती है। भाद्रपद मास में वर्षा के वेग में कमी आती है तब बर्बादी का पुनः जीर्णोद्धार होता है।

सभी दैत्य रूपी कष्टों में मुक्ति पाकर अपने मृतकों की शांति के श्रद्धा करता है तथा फिर नवीन शक्ति के नवरात्रा मना व्यक्ति सबल हो जाता है। इसलिए हे मानव प्रकृति का यह खेल सदा ही चलता रहेगा। इस कारण साहस रख सब कुछ ठीक हो जाएगा। राम सा पीर की जय।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर