सबगुरु न्यूज। काल चक्र सदा मानव के दिमाग के हर खेल को देखता रहा। मानव ने अपनी महत्वकांक्षी विचारधारा में मानव के कुछ समूह को दुर्बल बना डाला और उन पर अयोग्यता की मैली चादर डालकर ढंक दिया। मैली चादर जब फटने लगी तब राहत का पैबन्द उस पर लगा दिया और उसके मूल स्वरूप को ढक दिया।
मैली चादर के पैबन्द जब अपना रूप व अस्तित्व दिखाने लगे तो महत्वाकांक्षी मानव इससे घबराने लगा तथा मैली चादर पर लगे पैबन्द को हटाने के लिए लामबन्द होने लगा। बस यहीं से संघर्ष की कहानियां अपना आकार फैलाती हुईं सामाजिक ढांचे को बदलती रही।
ज्ञान, बल और धन का जब पहला युद्ध हुआ तो निश्चित रूप से इन तीनों की स्वतंत्र सत्ताएं थीं। इस युद्ध का परिणाम भी बल के पक्ष में गया क्योंकि बल, ज्ञान को तमाचा मारता है और धन को छीनता है। युद्ध के बाद ज्ञान को बल ने अपना सलाहकार तो धन को अपना व्यवस्थाकार बनाया।
तीनों के पास एक ही कमी थी, सेवादार की क्योंकि तीनों ही अपनी शान मान में रहने वाले थे। तब ज्ञान ने सलाह दी कि सब अपने में सबसे कम ज्ञानवान, बलवान और धनवान को ही अपना सेवादार बना लेते हैं। इस मशवरे पर किसी का भी हित नहीं टकराया और तीन तरह के सेवादार बन गए।
तीनों ही सेवादारो की संताने जब अपने गुणों मे बहुत आगे निकलने लगी तो मूल ज्ञान, बल और धन ने उन्हें अयोग्य व निम्न घोषित कर दिया। इतना ही नहीं उन पर अत्याचार और जुल्म ढाने लगे तथा ज्ञान, बल और धन से उन्हें हीन कर दिया।
सेवादार की निष्ठा अपने मूल स्वामी पर ही थी इसलिए उन्होंने अपनी संतानों को अत्याचारों से नहीं बचाया। धर्म के दायित्वों की दुहाई देते हुए इन्हें धर्म से हीन समझ कई अयोग्यताएं इन पर लाद दी गई।
कालचक्र किस्सा आगे बढाता रहा। अत्याचार जुल्म सहकर भी मूल सेवादारों की संताने कमजोर नहीं पडी। ज्ञान, बल और धन से संघर्ष करती रहीं तथा हर युग में इन्हें चुनौती देती रही। पर मूल ज्ञान, बल और धन ने इन्हें दंड देते हुए सम्पूर्ण समाजिक संस्था में निम्न स्थान पर ला दिया।
युग बदलते रहे ज्ञान, बल और धन की परिभाषाएं बदलने लगीं पर नहीं बदली वह भावना जो हकीकत को मानकर स्वीकार कर ले। तब प्रेम का मसीहा बन कालचक्र ने इनको गले लगाया और उन्हें मैली चादर के स्थान पर सम्मान के वस्त्र धारण कराने के मार्ग खोले। पर ये मार्ग आसान न थे और ये भी संघर्ष के खेल में अपमानित होते रहे। मैली तथा फटी चादर पर लगे पैबन्द को भी मूल से उखाडने की कवायद शुरू हुईं और इस कवायद के कारण संघर्ष शुरू हो गया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव ये सब रचना ज्ञान, बल और धन की थी, जो अपनी सत्ता को जमाना चाहते थे और सामाजिक संगठन की संरचना का निर्माण अपने अनुसार करना चाहते थे लेकिन आधुनिक काल चक्र ने इस सब मे हस्तक्षेप कर ज्ञान, बल और धन को विखंडित कर दिया तथा सामाजिक ढांचे को बदल कर मानवीय मूल्यों को बनाए रखने का ढांचा बना दिया।
इसलिए हे मानव भूतकाल के इतिहास की आड़ में तू वर्तमान को मत ढकेल और नईं सोच से नव निर्माण के मार्ग की ओर बढ, क्योंकि ज्ञान, बल और धन अब किसी की ही जागीर नहीं रही। इसलिए कर्म कर और अपने चयन का फल उठा।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर