सबगुरु न्यूज-सिरोही। राज्य सरकार द्वारा सिरोही राजकीय महाविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष नारणाराम चौधरी पर चल रहे राजकार्य में बाधा के मुकदमे को विड्राॅ किए जाने की राज्य सरकार की अर्जी को सीजेएम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। पूर्व अध्यक्ष पर लाॅ काॅलेज का कक्ष खाली करवाने के लिए किए गए कथित हंगामे और तोड़फोड़ का मुकदमा जारी रहेगा।
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में ठीक 2015 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से नारणाराम चौधरी विजयी हुए थे। राज्य और केन्द्र में सत्ता के मद में उन्होंने महाविद्यालय में छात्रसंघ कार्यालय के लिए लाॅ काॅलेज को आवंटित किए गए कक्ष को जबरन खाली करवाने के लिए ठीक तीन साल पहले 14 सितम्बर, 2015 को उस कक्ष में प्रवेश किया और हंगामा किया।
इसके बाद लाॅ काॅलेज के तत्कालीन प्राचार्य मधुसुदन पुरोहित ने नारणाराम पर राजकार्य में बाधा का मुकदमा दर्ज करवाया। स्थानीय भाजपा जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों ने कथित रूप से सत्ता का दुरुपयोग करते हुए दबाव दिलवाकर पुलिस से इस प्रकरण में एफआर लगवा दी।
इसके बाद प्रचार्य ने न्यायालय में इस वाद को ले गए जहां उनके अधिवक्ता भैरूपालसिंह बालावत की दलीलों से सहमत होते हुए न्यायालय ने माना कि प्रथम दृष्टया नारणाराम पर राजकार्य में बाधा समेत आईबीसी 447 और 427 का मामला बनता है। न्यायालय की कार्रवाई जारी ही थी कि भाजपा नेताआंे ने फिर से सत्ता का दुरुपयोग करते हुए राज्य सरकार के गृह विभाग से फिर से 30 अप्रेल 2018 को इस मामले को विड्राॅ करने का आदेश निकाला गया।
इसके लिए लोक अभियोजक द्वारा न्यायालय में इस प्रकरण में केस को वापस लिए जाने का प्रार्थना पत्र लगा दिया गया। इस पर प्राचार्य के अधिवक्ता ने इस पर सुनवाई के दौरान दलील दी कि इस प्रकरण में राज्य सरकार पक्षकार नहीं हैं। यह निजी प्रकरण है। परिवादी इसे राज्य सरकार विड्राॅ नहीं करवा सकती है।
सरकार ने जनहित में इस प्रकरण को विड्रा करने की दलील दी थी, न्यायालय ने यह पूछा कि आखिर इस प्रकरण के वापस लिए जाने में कौनसा जनहित है और जनहित उस जनहित से संबंधित साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय में लोक अभियोजक की भूमिका को भी स्पष्ट करते हुए कहा कि लोक अभयोजक सरकार के आदेशानुसार काम नहीं कर सकता और न्यायालय का अधिकारी होने के नाते उसे वस्तुनिष्ठ रूप से काम करना होता है।
न्यायाधीश ने यह भी लिखा कि न्यायालय यह भी निर्णय करने के लिए स्वतंत्र है कि प्रथम दृष्टया मामला बन गया है या नहीं। अधिवक्ता की दलीलों से सहमत होते हुए न्यायालय ने राज्य सरकार की इस वाद को वापस लेने की अर्जी को खारिज कर दी और अभियुक्त को जरिए सम्मन तलब करने के आदेश दिए हैं।
-अब आगे क्या?
नारणाराम चैधरी स्थानीय सांसद देवजी पटेल और जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चैधरी की जाति के हैं। सांसद के गृह जिले जालोर के निवासी भी हैं। यह मामाल वापस नहीं होने की स्थिति में आने वाले चुनावों में इन दोनों नेताओं के साथ ही गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी को भी इस समाज का गुस्सा झेलना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो प्रकरण दर्ज करवाने पर भाजपा नेताओं ने लाॅ काॅलेज के प्राचार्य को भी सत्ता का कथित दुरुपयोग से परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अब स्थिति इन लोगों के नियंत्रण से बाहर होकर फिर से प्राचार्य के पाले में चली गई है।सत्ता का दुरुपयोग करके उत्पात मचाने वालों के लिए न्यायालय का यह निर्णय यह सबक देने के लिए काफी है कि कानून से बढ़कर आज भी सत्ताएं नहीं हैं।