सबगुरु न्यूज। ऋषि पंचमी के दिन माहवारी कन्याएं और महिलाएं अपनी गलतियों को सुधारने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत रखती है।
हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी व्रत को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है। हालांकि ज्यादातर महिलाएं इस व्रत के बारे में नहीं जानती है। ऋषि पंचमी के दिन पूजा करने से माहवारी के समय हुई गलतियों से महिलाएं दोषमुक्त हो जाती हैं।
ब्रह्मा पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा अर्चना की जाती है यानी हरतालिका तीज और गणेश चतुर्थी के अगले दिन इनका व्रत होता है।
माहवारी के समय महिलाएं सबसे अधिक अपवित्र मानी जाती है। ऐसे समय कई महिलाएं नियमों से भटक जाती है और जाने-अनजाने में उनसे भूल हो जाती है। लेकिन ऋषि पंचमी के दिन सच्चे मन से पूजा करने पर और उपवास रखने पर दोष-बाधाएं दूर होती है और इन श्रापों से मुक्ति मिलती है।
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥
दोष से बचने के लिए ऐसे करें पूजा
ऋषि पंचमी पर सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यदि संभव हो तो नदी में स्नान करें वरना घर पर ही गंगाजल पानी में डालकर स्नान करें। घर में जिस स्थान पर पूजा करना है उसे स्वच्छ कर लें। इसके बाद हल्दी से चौकोर मंडल और गाय के गोबर से चैका पूरा करें। लकड़ी के पाटा या पिढ़वा पर सप्त ऋषि बनाकर उनकी स्थापना करें और उनकी पूजा करें। इसके बाद कलश की स्थापना करें। तत्पश्चात उपवास का संकल्प लें। अंत में सात गोदान तथा सात युग्मक. ब्राह्मण को भोजन करा कर उनका विसर्जन करें।
ऋषि पंचमी की प्रामाणिक कथा
एक समय राजा सिताश्व धर्म का अर्थ जानने की इच्छा से ब्रह्मा जी के पास गए और उनके चरणों में सिर नवाकर बोले- हे आदिदेव! आप समस्त धर्मों के प्रवर्तक और गुढ़ धर्मों को जानने वाले हैं।
आपके श्रीमुख से धर्म चर्चा श्रवण कर मन को आत्मिक शांति मिलती है। भगवान के चरण कमलों में प्रीति बढ़ती है। वैसे तो आपने मुझे नाना प्रकार के व्रतों के बारे में उपदेश दिए हैं। अब मैं आपके मुखारविन्द से उस श्रेष्ठ व्रत को सुनने की अभिलाषा रखता हूं, जिसके करने से प्राणियों के समस्त पापों का नाश हो जाता है।
राजा के वचन को सुन कर ब्रह्माजी ने कहा कि हे श्रेष्ठ, तुम्हारा प्रश्न अति उत्तम और धर्म में प्रीति बढ़ाने वाला है। मैं तुमको समस्त पापों को नष्ट करने वाला सर्वोत्तम व्रत के बारे में बताता हूं। यह व्रत ऋषिपंचमी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को करने वाला प्राणी अपने समस्त पापों से सहज छुटकारा पा लेता है।
ऋषि पंचमी की पौराणिक व्रत कथा
विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था। उस ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी। विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई। दुखी ब्राह्मण दम्पती कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे।
एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बात मां से कही। मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?
उत्तंक ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया कि पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं।
धर्म-शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी।
पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला।
ऋषि पंचमी सभी वर्ग की स्त्रियों को करना चाहिए। इस दिन स्नानादि कर अपने घर के स्वच्छ स्थान पर हल्दी, कुंकुम, रोली आदि से चौकोर मंडल बनाकर उस पर सप्तऋषियों की स्थापना करें।
गन्ध, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्यादि से पूजन कर अर्घ्य दें। इसके पश्चात बिना बोया पृथ्वी में पैदा हुए शाकादिका आहार करके ब्रह्मचर्य का पालन करके व्रत करें। इस प्रकार सात वर्ष करके आठवें वर्ष में सप्तर्षिकी पीतवर्ण सात मूर्ति युग्मक ब्राह्मण-भोजन कराके उनका विसर्जन करें। कहीं-कहीं, किसी प्रांत में स्त्रियां पंचताडी तृण एवं भाई के दिए हुए चावल कौवे आदि को देकर फिर स्वयं भोजन करती है।