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RSS convention in delhi : reservation should be continued as per constitution says Mohan Bhagwat-संविधान सम्मत हर प्रकार का आरक्षण जारी रहना चाहिए : मोहन भागवत - Sabguru News
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संविधान सम्मत हर प्रकार का आरक्षण जारी रहना चाहिए : मोहन भागवत

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संविधान सम्मत हर प्रकार का आरक्षण जारी रहना चाहिए : मोहन भागवत
RSS chief Mohan Bhagwat
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RSS chief Mohan Bhagwat

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आज दो टूक शब्दों में कहा कि देश में सामाजिक आधार पर आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक आरक्षण प्राप्त समुदाय ना कह दे कि उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने यहां विज्ञान भवन में ‘भविष्य का भारत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’ विषय पर अपनी व्याख्यानमाला के तीसरे एवं अंतिम दिन प्रश्नों के उत्तर देते हुए कहा कि सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए संविधान सम्मत सब प्रकार के आरक्षण का संघ पूरा समर्थन करता है। आरक्षण कब तक चलेगा, इसका निर्णय वही करेंगे जिनके लिए दिया गया है।

उन्होंने कहा कि क्रीमी लेयर को हटाने या अन्य जातियों को जोड़ने के बारे में विभिन्न आयोग निर्णय करें। संविधान ने पीठ स्थापित कीं हैं उनमें इसका निराकरण हो सकता है। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि आरक्षण कोई समस्या नहीं है लेकिन आरक्षण को लेकर राजनीति समस्या है। समाज एक अंग पंगु हो गया है तो उसे ठीक करके बाकी अंगों के समान स्वस्थ बनाना होगा।

भागवत ने कहा कि सामाजिक कारणों से हजारों वर्षों से यह स्थिति है कि हमारे समाज के एक अंग हमने निर्बल बना दिया है, हजार वर्षों की बीमारी ठीक करने में यदि 100-150 साल हमें नीचे झुक कर रहना पड़ता है तो यह महंगा सौदा नहीं है, यह हमारा कर्तव्य है।

अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार कानून के दुरुपयोग को लेकर देश के कुछ भागों में आंदोलन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंंने कहा कि सामाजिक पिछड़ेपन के कारण स्वाभाविक रूप से अत्याचार होते हैं और उससे निपटने के लिए कानून बनते हैं। उन कानूनों को ठीक प्रकार से लागू किया जाये और उसका दुरुपयोग नहीं होने दिया जाए। उन्होंने कहा कि अत्याचार को सदभावना जागृत करके लागू किया जाए।

जाति व्यवस्था को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में सरसंघ चालक ने कहा कि आज जो है वह जाति अव्यवस्था है और उसे समाप्त होना है। लेकिन हमें उसके स्थान पर क्या होना चाहिए, उस पर ध्यान देना चाहिए। अंधेरे को लाठी मार कर नहीं भगाया जा सकता। एक दीपक जला देने से अंधेरा दूर हो जाता है। उन्होंने कहा कि समाज से सामाजिक विषमता का पोषण करने वाली बातें दूर होनी चाहिए। ऐसा करना कठिन कार्य है।

भागवत ने कहा कि ऐसा अगर कोटा प्रणाली से किया जाएगा तो नहीं होगा। सहज प्रक्रिया से होगा तो एक निश्चित समय बाद स्वाभाविक रूप से हो जाएगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि संघ में जाति पूछने की प्रथा शुरू से ही नहीं है। संघ में 1950 के दशक में केवल ब्राह्मणों का वर्चस्व था लेकिन बाद में हर ज़ोन में हर जाति समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व बढ़ता जा रहा है और यह स्वाभाविक रीति से हो रहा है। संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी में भी ऐसा ही स्वरूप दिखने लगा है।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि संघ ने घूमंतू जातियों को स्थिर करने और उनके बच्चों के शैक्षणिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए प्रयास करना आरंभ कर दिया है। सरसंघ चालक ने जातिप्रथा की कुरीतियों का जिक्र करते हुए कहा कि अस्पृश्यता किसी कानून या शास्त्र से नही आई, यह समाज की रूढिवादिता और दुर्भावना से आई, हमारी सदभावना ही उसका प्रतिकार कर सकेंगे। यही कार्य संघ के स्वयंसेवक करते हैं।

हिन्दुत्व से जुड़े सवालों पर कहा कि हिंदुत्व के लिए अंग्रेज़ी में हिन्दुइज़्म गलत शब्द है। ‘इज़्म’ एक बंद चीज मानी जाती है, यह कोई इज़्म नहीं है, एक प्रक्रिया है जो चलती रहती है। गांधीजी ने कहा है कि सत्य की अनवरत खोज का नाम हिंदुत्व है। इसी प्रकार से सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का कथन है कि हिंदुत्व एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है।

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि विश्व में हिंदुत्व को लेकर आक्रोश और हिंसा नहीं है, विश्व में हिंदुत्व की स्वीकार्यता बढ रही है। आक्रोश भारत में है, और यह आक्रोश हिंदुत्व विचार के कारण नहीं है, विचार को छोड़कर हमने अपने आचरण से जो विकृत उदाहरण प्रस्तुत किया, उसको लेकर है।

उन्होंने कहा कि हमारे मूल्यबोध के अनुसार जो आचरण करना चाहिए, उसे छोड़कर हम पोथीनिष्ठ बन गए, रूढीग्रस्त बन गए, और हमने बहुत सारा अधर्म धर्म के नाम पर किया, आज की देश काल परिस्थिति के अनुसार धर्म का आचरण हमको करना होगा, तो सारा आक्रोश विलुप्त हो जाएगा।

उन्होंने व्यावहारिक पहलू पर जोर देते हुए कहा कि जो तत्व व्यवहार में नहीं उतार सकते वह तत्व किस काम का? और यदि तत्व श्रेष्ठ है और व्यवहार गलत है तो भी वह तत्व किस काम का? पहले हिंदू अच्छा, सच्चा हिंदू बने, इसी कार्य को संघ कर रहा है।

भाषा के संबंध में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी में काम करना पड़ता है इसलिए अन्य प्रांतों के लोग हिंदी सीखते हैं, हिंदी बोलने वालों को भी दूसरे प्रांत की एक भाषा को सीखना चाहिए, इससे मन मिलाप जल्दी होगा, और यह कार्य जल्दी हो जाएगा। उन्होंंने कहा कि हिन्दी को सर्वश्रेष्ठ भाषा मान कर आगे बढ़ाएंगे तो विरोध होगा लेकिन सुलभता के आधार पर हो और हिन्दी भाषी भी अपनी सुविधा से एक अन्य भाषा सीखे तो समस्या नहीं आएगा।

उन्होंने कहा कि भारत की सभी भाषाएं हमारी भाषा है, ऐसा मन होना चाहिए, जहां रहते हैं वहां की भाषा आत्मसात करनी चाहिए, आपकी रुचि और आवश्यक्ता है तो विदेश की भाषा सीखिये और उसमें भी विदेशी लोगों से ज्यादा प्रवीण बनिए, इसमे भारत का गौरव है। अंग्रेजी को हटाना नहीं है, उसे यथास्थान रखें। पर हमारी शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए।

उन्होंने संस्कृत के बारे में कहा कि संस्कृत को हम महत्व नहीं देते, इसलिए सरकार भी नहीं देती, यदि हमारा आग्रह रहे कि अपनी परंपरा का सारा साहित्य संस्कृत में है, इसलिए हम संस्कृत सीखें, यदि यह हमारा मानस बने तो अपनी विरासत का अध्ययन भी ठीक से हो सकेगा।

उन्होंने कहा कि संस्कृत इतनी श्रेष्ठ भाषा है कि कंप्यूटर के लिए भी वह सर्वाधिक उपयोगी है। इसका गौरव यदि समाज में बढता है तो उसका भी चलन बढता है और उससे विद्यालय भी खुल जाते हैं, पढाने वाले भी मिल जाते हैं। सरकार की नीतियों को भी समाज का मानस प्रभावित करता है।

शिक्षा व्यवस्था को लेकर पूछे गए सवालों पर उन्होंने कहा कि आधुनिक शिक्षा की अच्छी बातें और परंपरा की अच्छी बातों को मिला कर नई शिक्षा नीति बननी चाहिए। वेद, रामायण, गीता, त्रिपिटक, गुरुग्रंथ साहिब, उपनिषद आदि शास्त्रों का भी अध्ययन होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आज समाज में शिक्षा का स्तर कम नहीं हुआ है। शिक्षा देने वाले और शिक्षा लेने वाले का स्तर कम हुआ है। हर व्यक्ति को लगता है कि उसकी संतान डाक्टर या इंजीनियर बने जबकि होना यह चाहिए कि वह जो सीखे उससे उत्कृष्ट बने।

उन्होंने बाल गंगाधर तिलक उदाहरण देते हुए कहा कि तिलक जी ने अपने बेटे को पत्र लिखा कि जीवन में क्या पढना है तुम विचार करो, तुम अगर कहते हो कि मुझे जूते सिलना है तो मुझे आपत्ति नहीं, किंतु ध्यान रहे कि तुम्हारा सिला जूता इतना उत्कृष्त होना चाहिए कि पुणे का हर व्यक्ति कहे कि जूता वहीं से लेना है।

उन्होंने कहा कि क्या हम ऐसी भावना भर कर छात्रों को विद्यालय भेजते हैं कि जो मैं सीख रहा हूं वह मैं उत्कृष्ट और उत्तम करूंगा, उसकी उत्कृष्टता में मेरी प्रतिष्ठा है? इसी प्रकार से शिक्षक को ये भान है क्या कि मैं अपने देश के बच्चों का भविष्य गढ रहा हूं?

उन्होंने कहा कि हम उनको ज्यादा कमाओ का मंत्र देकर भेजेंगे, तो शिक्षक कितना भी अच्छा हो तो यह कार्य नहीं करेगा। अनेक महापुरुष अपने शिक्षकों को याद करते हैं क्योंकि उनके जीवन में शिक्षक का सहयोग रहा है।

उन्होंने कहा कि सर्वांगीण विचार कर के सभी स्तरों की शिक्षा का एक अच्छा मॉडल हमको खड़ा करना पड़ेगा, इसलिए शिक्षा नीति का आमूलचूल विचार हो एवं इसमें आवश्यक परिवर्तन किया जाये। आशा करते हैं नई शिक्षा नीति में यह होगा।

महिला सुरक्षा के बारे में पूछे गए सवाल पर सरसंघचालक ने कहा कि महिला तब असुरक्षित होती है जब पुरुष उसे देखने की अपनी दृष्टि को बदलता है। उन्होंने कहा कि ऐसा वातावरण बनाना होगा जहां लोग अपनी पत्नी के अलावा सभी को मातृभाव से देखें। सुरक्षा के लिए महिलायें को सजग और सक्षम बनाना पड़ेगा, इसलिये किशोर आयु के लड़के और लड़कियों का प्रशिक्षण करना होगा।

गौरक्षा के नाम पर हिंसा की निंदा करते हुए कहा कि किसी भी दशा में हिंसा या तोड़फोड़ करना अत्यंत अनुचित अपराध है। लेकिन गाय परंपरागत श्रद्धा का विषय है। अपने देश के छोटे किसानों की आर्थिक व्यवस्था का आधार गाय बन सकता है, अनेक ढंग से गाय उपकारी है, पहले ए2 दूध की बात नही होती थी, अब होती है।

उन्होंने कहा कि गौरक्षा तो होनी चाहिए, लेकिन गौरक्षा सिर्फ कानून से नहीं होगी, गौरक्षा करने वाले देश के नागरिक गाय को पहले रखें, गाय को रखेंगे नहीं, खुला छोड़ेंगे तो उपद्रव होगा, गौरक्षा के बारे में आस्था पर प्रश्न लगता है।

उन्होंने कहा कि गौसंवर्धन का विचार होना चाहिए, गाय के जितने उपयोग हैं उनको कैसे लागू किए जाए, कैसे तकनीक का उपयोग कर उसको घर घर पहुंचाया जाए, इस पर बहुत लोग काम कर रहे हैं, वो गौरक्षा की बात करते हैं, वो लिंचिंग करने वाले नहीं हैं, वो सात्विक प्रकृति के लोग हैं। अच्छी गौशालाएं चलाने वाले, भक्ति से चलाने वाले लोग हमारे यहां हैं, मुस्लिम भी इसमे शामिल हैं। उन्होंने यह भी कहा कि गोरक्षा के नाम पर हमलों पर शोर मचाना और गोतस्करों के हमलों पर चुप्पी साधने की दोगली प्रवृत्ति छोड़नी होगी।

जनसांख्यिकीय अनुपात के बारे में उन्होंने कहा कि डेमोग्राफिक संतुलन रहना चाहिए, एक जनसंख्या के बारे में नीति हो, अगले 50 वर्ष की स्थिति की कल्पना करते हुए एक नीति बने, और उस नीति में जो तय होता है वो सभी पर समान रूप में लागू होना चाहिये, जहाँ समस्या है, वहां पहले उपाय करना चाहिये।

धर्मान्तरण के बारे में उन्होंने कहा कि अगर मत पंथ समान हैं जो धर्मान्तरण की क्या आवश्यकता है। धर्मान्तरण का उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति है तो पैसे देकर मतांतरण क्यों कराया जाता है। उन्होंने कहा कि देश विदेश के इतिहास को पढिए, उसमे धर्मांतरण करने वालों की क्या भूमिका रही है, इसका डेटा निकालिए,जो संघ ने नहीं लिखा, और संघ के विरोधी विचार रखने वालों ने भी लिखा है।

चर्च में आने के लिए इतने रूपए देंगे, ऐसा होता है तो विरोध होना चाहिए, अध्यात्म बेचने की चीज नहीं है। उन्होंने धर्मान्तरण एवं घुसपैठ के माध्यम से जनसांख्यिकीय बदलाव किये जाने के विरुद्ध कठोर कदम उठाने की वकालत की।

समलैंगिकता के बारे में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बारे में पूछे जाने पर भागवत ने कहा कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति समाज का एक अंग है। कुछ विशिष्टताएं समाज के लोगों मे है, किंतु वह समाज के ही अंग हैं। उनकी व्यवस्था करनी चाहिए, यह सह्रदयता से देखने की बात है। जितना उपाय हो सकता है वह करना, अन्यथा जैसे हैं वैसा स्वीकार करना चाहिए। उन्हें अलग थलग नहीं करना है।

अल्पसंख्यकों को लेकर पूछे गए सवालों पर उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा स्पष्ट नहीं है, जहां तक रिलिजन, भाषा की संख्या का सवाल है, अपने देश में वो पहले से ही अनेक प्रकार की है, अंग्रेजों के आने से पहले हमने कभी अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया।

उन्होंने इस बात से इन्कार किया कि संघ मुसलमानों में भय फैलाता है। उन्होंने सभी समुदायों का आह्वान किया कि वे संघ के अंदर आकर देखें और अपने अनुभव के आधार पर राय बनाएं। संघ मातृभूमि, संस्कृति और पूवर्ज के आधार पर देश में रहने वाले सभी समुदायों को हिन्दू मानता है और मुसलमान उससे अलग नहीं है।