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Sanjhi Festival celebrations in ajmer-कृष्ण के प्रति राधा के प्रेम का प्रतिबिंब है सांझी पर्व - Sabguru News
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कृष्ण के प्रति राधा के प्रेम का प्रतिबिंब है सांझी पर्व

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कृष्ण के प्रति राधा के प्रेम का प्रतिबिंब है सांझी पर्व
Sanjhi Festival celebrations in ajmer
Sanjhi Festival celebrations in ajmer
Sanjhi Festival celebrations in ajmer

अजमेर। लोक पर्व एवं संस्कृति सागर एवं रसिक मण्डल की ओर से अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने, कला एवं प्रकृति प्रेम व युगल सरकार के प्रेम विहार का उत्सव सांझी धूमधाम से मनाया गया।

सुन्दर विलास स्थित गर्ग भवन में श्राद्ध पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक चलने वाले इस उत्सव में फूलों एवं रंगों द्वारा श्रीकृष्ण की लीलाओं का चित्रण कर पूजा एवं आरती की गई।

संयोजिका अरूणा ने बताया कि इस अवसर पर महिलाओं द्वारा सांझी के गीत व पदों का गायन कर आरती एवं पूजा की। लोक पर्व एवं संस्कृति सागर के अध्यक्ष उमेश गर्ग ने सांझी के बारे में बताया कि यह मात्र कला ही नहीं आराधना पद्धति है। कृष्ण के प्रति राधा के प्रेम का प्रतिबिम्ब है।

अष्ट सखाओं एवं हरिदास महाराज,हित हरिवंश गोस्वामी ने साक्षी के कई गीत व पदों की रचना की जिसमें राधा-कृष्ण के अटुट प्रेम का वर्णन मिलता है। मान्यता है कि राधाकृष्ण आज भी रसिक भक्तों की साधना, प्रेम एवं भक्तिमयी अनूठी लोककला को निहारने आते हैं।

संस्था अध्यक्ष गर्ग ने समृद्ध एवं सांस्कृतिक महत्व के पर्वों को पुनर्जीवित व भव्यता से मनाने का अग्रह करते हुए कहा कि पराधीनता के इस युग में हमारी वैदिक शिक्षा, कला और संस्कृति का नाश हुआ साथ ही हमारी लोक कला संस्कृति का भी ह्रास हुआ है।

उत्सवों में जन-जन का वह आनंद लोप हो गया और सांझी कला मात्र कुछ मन्दिरों तक सिमट कर रह गई। चित्त को अति आनन्दित करने वाले कला प्रेमियों एवं रसिक भक्त जनों के इस पर्व को जन-जन का पर्व बनाने की आवश्यकता है।

जब किसी मानव मन की गहनतम अनुभूति की सौंदर्यात्मक अभिव्यक्ति जब किसी अनुकृति के रूप में परिणित होती है तो वह अनुकृति हमारी संस्कृति और लोककला के प्रतीक के रूप में पहचानी जाती है। कला की अभिव्यक्ति जब धर्म के माध्यम से की जाती है तो वह कृति पवित्र और पूजनीय हो जाती है।

कला और धर्म का सुखद मिलन ही सांझी है। सांझी का ऐतिहासिक पक्ष ठोस प्रमाणों सहित है लोकगीत, अष्ट छाप पदों के माध्यम से प्रमाणिकता स्पष्ट होने के पश्चात भी लुप्त होने के कगार पर है। फिर भी इतना स्पष्ट है इसमें गृहस्थ जीवन के लिए मंगलकामना और समृद्धि का संदेश है, सौभाग्य का आदर्श प्रतीक है।

Sanjhi Festival celebrations in ajmer
Sanjhi Festival celebrations in ajmer

सांझी उत्सव में अनेक पद गाए जाते हैं जिनमें से प्रमुख है स्वामी हरिदास जी का पद ’सखी वृंद सब आय जुरीं वृषभान नृपति के द्वार। बीननि फूल चलौ बन राधे, नव सज साज सिंगार। ये सुनि कीरति जू हंसिकै प्यारी कौ कियौ सिंगार, कवरी कुसुम गुही है मानों उरगन की अनुहार।

चललित चाल मराल बाल सी राधा सखियन मांझ। बीनिति फूलनि जमुना कूलनि खेलति सांझी सांझ, वन की लीला लालहि भावे, पत्र-प्रसून बीच प्रतिबिम्बही नख-सिख प्रिया जनावे, फूलन बीनन हों गई जहां जमुना कूल द्रुमन की भीड, अच्रूझी गयो अरूनी की डरिया तेहि छिन मेरी अंचल चीर।, आज सखिन जल सांझी बनाई, कुसुमन सो भीने रंग लीनों श्री यमुना जी सो जल पधराई। अनिता, रेणू मित्तल, अनूपमा अग्रवाल, सन्जू अग्रवाल ने भजनों की प्रस्तृती दी।

उत्सव में ओमप्रकाश मंगल, किशनचन्द बंसल, रमेश मित्तल, गोकुल अग्रवाल, बेणीगोपाल फतेहपुरिया, दिपीका फतेहपुरिया, विजय लक्ष्मी विजय, मीनल अग्रवाल, लक्ष्मी अग्रवाल, सुरूचि अग्रवाल, कौशल गर्ग, अनिता, कान्ता गनेड़ीवाल, सुशीला झापरवाल व रेखा बंसल सहित श्रृद्धालु उपस्थित थे।