विजय सिंह मौर्य
राजस्थान विधानसभा चुनावों के ऐन पहले प्रदेश में बड़ी राजनीतिक चुनौती कांग्रेस और सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही भारतीय जनता पार्टी को अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे का सहारा है।
गाहे बगाहे मीडिया में बयानबाजी करते भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की जुबां से इस बार मोदी लहर का दावा नहीं निकलता। लेकिन उनका मानना है कि विधानसभा चुनाव प्रचार के जोर पकड़ने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी रैलियों और रोड शो शुरू करने के साथ ही राज्य में पार्टी के पक्ष में माहौल बनने लगेगा।
पीएम मोदी के 6 अक्टूबर को अजमेर के प्रस्तावित दौरे को लेकर सरकार और संगठन दोनों जी जान से जुटे हैं। इसे अधिकारिक तौर भाजपा के चुनावी अभियान के आगाज के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।
प्रदेश में चल रहे कर्मचारी आंदोलनों और खासकर राजस्थान रोडवेज का चक्का जाम प्रदेश की राजे सरकार के लिए सिर दर्द बन चुका है। चुनावी सीजन के चलते विरोधी दल इन कर्मचारी आंदोलनों को हवा देने से नहीं चूक रहे। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गौरव यात्रा के जरिए प्रदेश में घूम कर अपनी राजनीतिक हैसियत को आंक चुकी है। पहले की तुलना में उनकी सभाओं में कम भीड जुटना इस बात का संकेत हैं कि चुनाव में भाजपा को इनकमबैंसी फैक्टर से जूझना होगा।
राजनीतिक के जानकारों की माने तो सत्ता पर काबिज होने के बाद सरकार और संगठन के बीच खाई बढती गई। मंत्री राज सुख भोगने में लगे रहे, प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी भी संगठन से अधिक मुख्यमंत्री राजे के प्रति वफादारी में जुट उनके स्पोकपर्सन की तरह भूमिका में ही दिखाई दिए। कार्यकर्ताओं के रोष और हालात को भांते हुए आलाकमान ने उनका इस्तीफा मांग लिया। दो माह तक नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर मची खींचतान ने पार्टी के नितले स्तर तक के कैडर को हिला कर रख दिया।
कई साल से अनुशासन के नाम पर बेलगाम होती जा रही बीजेपी पर अंकुश रखने के लिए मातृ संगठन आरएसएस ने संगठन महामंत्री के रूप में चन्द्रशेखर जैसा राजनीति का जानकार लगाया।लेकिन वे प्रदेश में सत्ता व संगठन के बीच नासूर का रूप ले चुकी खाई को पाटने की कोशिश में ही लगे थे कि उपचुनाव एक परीक्षा के रूप में सामने आ गए। उपचुनाव में सत्ता के पूरी तरह जुटने के बाद भी तीनों सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों की अप्रत्याशित हार हुई।
उपचुनाव में हार के बाद मुख्यमंत्री राजे के खिलाफ पार्टी के एक वर्ग में विरोध बढा, पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच भी नाराजगी के सुर निकले पर इसे दबा दिया गया। मोदी तुझसे बैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं जैसे नारे जोर पकडे पर पार्टी आलाकमान का वरदहस्त राजे के सिर पर बरकरार रहा। इस बात की पीडा पार्टी के आम कार्यकर्ता के जेहन में अब भी सुलग रही है।
अब जब विधानसभा चुनाव सिर पर हैं तो भाजपा पूरी ताकत के साथ चुनावी समर में विरोधियों खासकर कांग्रेस से दो दो हाथ करने के लिए खुद को तैयार बता रही है। उधर उपचुनावों में जीत से उत्साहित कांग्रेस सत्ता पर काबिज होने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड रही। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पीसीसी चीफ सचिन पायलट के बीच मुख्यमंत्री पद के दावेदारी को लेकर चल रहे शीत युद्ध के बावजूद मजबूती के साथ डटी कांग्रेस चुनावों में भाजपा को टक्कर देने की स्थित बना चुकी है।
कांग्रेस के बढते प्रभाव तथा राजे सरकार के प्रति जनता में बढी नाराजगी भाजपा के रणनीतिकारों की धडकने बढाए हुए है। प्रदेश में कांग्रेस से पार पाने के लिए भाजपा अगले दो महीने में राज्य में मतदाताआें के साथ अधिक संपर्क करने के फार्मूले पर काम कर रही है। भाजपा चुनाव प्रबंधन समिति में शामिल पार्टी के दिग्गज नेता भी शायद भांप चुके हैं कि अकेले राजे के भरोसे राजस्थान की चुनावी चैतरणी पार नहीं लगेगी इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अधिक से अधिक रैलियां आयाेजित करने की योजना बनाई जा रही है।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ‘राजस्थान गौरव यात्रा’ के समापन के अवसर पर छह अक्टूबर काे अजमेर में एक विशाल रैली में मोदी को बुलावा इसी का संकेत है। भाजपा नेता खुलकर नहीं पर दबी जुबान में स्वीकार करते हैं कि मोदी के आने से पार्टी को चुनावी माहौल अपने पक्ष में करने में बडी मदद मिलेगी। इस रैली में 51 हजार से अधिक मतदान केंद्रों से पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक हिस्सा लेंगे।
हालांकि भाजपा प्रदेश में जीत के प्रति आश्वस्त होने का दावे में यह कहने से नहीं चूकती कि हम कड़ी मेहनत करते हैं जिसके बल पर जब त्रिपुरा जैसे राज्य के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की जहां हमारी पकड़ बहुत कमजोर थी। हाल ही में पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष मदनलाल सैनी ने राज्य में भाजपा विरोधी लहर के दावे काे खारिज करते हुए कहा है कि राजस्थान में कांग्रेस नेताअों में जनता का सामना करने की हिम्मत नहीं है।
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