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गांधीजी की 150वीं जयंती : अहिंसा के पुजारी के विचार और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक

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गांधीजी की 150वीं जयंती : अहिंसा के पुजारी के विचार और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक
mahatma gandhi 150th birth anniversary celebration at samrat prithviraj chauhan govt college in ajmer

अजमेर। महामा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में मंगलवार को सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय अजमेर में राष्ट्रीय सिन्धी भाषा विकास परिषद दिल्ली के तत्वावधान में महात्मा गांधी के जीवन दर्शन और शिक्षाओं पर व्याख्यान माला का आयोजन किया गया।

दीप प्रज्वलन और छात्रा मुस्कान कोटवानी ने देश​भक्ति गीत के साथ कार्यक्रम का आगाज किया। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रोफेसर सुशील बिस्सू ने महात्मा गांधी के बचपन से लेकर अंतिम समय तक के आदर्श से ओत प्रोत कार्यों प्रकाश डालते हुए कहा कि मोहन दास करमचंद गांधी से महात्मा बनने तक के सफर तक गांधीजी सदैव अडिग रहे। उन्होंने अपने लिए खुद नियम बनाए और उनका अक्षरश: पालन भी किया।

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आज महात्मा गांधी को हम उतना ही जान पाते हैं जितना पुस्तकों या अन्य मुद्रित सामग्री में सूचना उपलब्ध है। ये जानकारी सीमित है, गांधी जैसे विराट व्यक्तित्व को अल्प जानकारी के जरिए पूरी तरह नहीं समझा जा सकता। अंग्रेजों से दो दो हाथ करने को उतावले रहने वाले क्रांतिकारियों और अहिंसा तथा सत्याग्रह के मार्ग पर चलने वाले गांधी के बीच सैदांतिक मतभेदों के बावजूद प्रगाढ संबंध बना रहा। दोनों का लक्ष्य एक था।

गांधी एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व वाले रहे जिन्होंने अपने जीवनकाल में असंतुष्टों को भी सदैव स्वीकार किया। उनके समर्पण की ही कशिश थी कि लोग उनकी एक आवाज पर साथ चल लेते थे। उन्होंने कभी किसी को छोटा या बडा समझ कर अंतर नहीं किया। कभी खुद से कोई गलती हो जाती तो उसे सह रूप में मान लेना उनकी आदत में शुमार रहा। अनगिनत अच्छाईयों के कारण ही करमचंद इस देश के लिए महात्मा बन गए।

छूआछूत के प्रबल विरोधी रहे गांधी ने सामाजिक समानता के समर्थक रहे तथा उन्होंने समाज के हर तबके को सम्मान से जीने का अधिकारी माना। वे भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हो, इसके लिए उनका मत था कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी तो पूरे देश का विकास होगा साथ ही शिक्षा के साथ युवाओं को स्वारोजगार को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। यही कारण रहा कि तब देश में कुटीर आंदोलन व्यापक रूप से फैला। वे स्वच्छता के प्रति हमेशा गंभीर रहे। उनका कहना था कि हर व्यक्ति यह तय कर ले कि मैं कहीं गंदगी नहीं फैलाउंगा तो इस समस्या का खुद ब खुद समाधान हो जाएगा।

राजनीति विज्ञान की व्याख्याता चंदा कोटवानी ने कहा कि आजादी की लडाई की मुख्य धुरी सदैव महात्मा गांधी रहे। उनके दो मुख्य सिद्धांत सत्य और अहिंसा जीवन की अंतिम सांस तक बने रहे। उनका मानना था की अंतरआत्मा की आवाज ही सत्य है। सत्य के लिए मन, वचन और कर्म में सामंजस्य रखना अतिआवश्यक है। गांधीजी अहिंसा के समर्थक रहे लेकिन इस बारे में उनका मत था कि अहिंसा का मतलब किसी को कष्ट न पहुंचाएं लेकिन बुराई का प्रतिकार भी करें। इसके लिए सत्याग्रह उचित मार्ग है।

गांधीजी का मत था कि युवाओं में अपेक्षाकृत अधिक उर्जा होती है, इसे सकारात्मकता के साथ अच्छे काम में उपयोग लिया जाना चाहिए। वे राजनीति में आध्यात्म परामर्श पर सदैव बल देते रहे। सामाजिक, राजनीतिक तथा वैश्विक कल्याण के संदर्भ में उनके विचारों की गहराई के कारण ही उनके आदर्श ​समूची दुनिया में आज भी प्रासंगिक है। यह कहना गलत न होगा कि तकनीकि विकास के वर्तमान समय में चारीत्रिक विकास पीछे छूटता जा रहा है। इसके लिए युवा वर्ग को गांधीजी की तरह स्वअनुशासन की राह पर चलना होगा।

दर्शन शास्त्र की व्याख्याता रेखा यादव ने कहा कि महात्मा गांधी राजनीतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक दर्शन के जीते जागते उदाहरण थे। उनके किए गए कार्यों तथा विचारों की स्वीकार्यता के चलते ही गांधीवाद की नींव पडी। गांधीजी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता के धनी रहे। विषम परिस्थितियों में भी जीवन जीने की कला गांधी में थी। कुछ लोग गांधी और उनके मत के विरोधी हो सकते हैं लेकिन गांधी कभी किसी के विरोधी नहीं रही रहे।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघ चालक जगदीश राणा ने कहा कि गांधी तब भी प्रासांगिक रहे और आज भी उनके प्रतिपादित सिद्धांत अनुकरणीय हैं। गांधीजी ने उस समय वैश्विक मान्यता पाई जब न आज की तरह टीवी, रेडियो, मोबाइल जैसे प्रचार के साथ थे। इसके बावजूद पूरी दुनिया में गांधीजी के विाचार पहुंचे। सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह से सफलता के मार्ग को दुनिया ने सराहा। यह कहना गलत नहीं होगा कि गांधी का सम्मान भारत के कहीं अधिक अब विश्वभर में है। गांधीजी के बताए रास्ते पर चलें तो राम राज्य की संकल्पना साकार हो जाएगी।

प्रोफेसर मधु माथुर ने वो प्यारा गांधी, वो उजियारा गांधी गीत के जरिए गांधीजी के प्रति अपने विचारों को व्यक्त किया। प्राचार्य स्नेह सक्सेना ने कहा कि गांधीजी जैसे विराट व्यक्ति की आभा को शब्दों के सागर से बांधना सहज नहीं। उनमें कष्टों से संघर्ष करने की असीम शक्ति थी। वे हर नियम की पालना की शुरुआत खुद से करते थे उसके बाद दूसरों से आग्रह करते थे। गांधी भले ही प्रांसगिक हो लेकिन हम अप्रासंगिक हो रहे हैं। हम गांधी नहीं बन सकते पर उनकी शिक्षाओं में से किसी एक को भी पूरी करने का संकल्प कर लें तो जीवन ही बदल जाएगा।

अंत में राष्ट्रीय सिंधी भाषा अकादमी परिषद के सदस्य सुूरेश बबलानी ने सभी का आभार जताया। मंच संचालन अनिल दाधीच ने किया। इस अवसर पर मीना आसवानी, डॉ परमेश्वरी, उपाचार्य हासो दादलानी, प्रोफेसर नारायण लाल गुप्ता, व्याख्याता मनोज बेहरवाल समेत बडी संख्या में छात्र छात्राएं मौजूद रहे।