सबगुरु न्यूज। करवे के जल तथा चन्द्रमा की अमरता और यश की साक्षी में अपने जीवन साथी की उम्र बढ़ाती आस्था सदियों से आज तक चली आ रही है। आस्था और विश्वास की संस्कृति का मूल आधार ब्रह्म और माया है जो जगत का सृजन ओर पालन करती है तथा संहार कर्ता से आयु का अभय दान मांगती है।
ब्रह्म और माया के संयोग से सृष्टि का सृजन होता है, इस सृजन में माया की ही प्रधानता होती हैं क्योंकि माया के बिना ब्रह्म सृष्टि जगत का सृजन नहीं कर सकता है। जब माया और ब्रह्म में इस बात का संघर्ष हुआ कि हम दोनों में से कौन बडा है तब ब्रह्म ने खुले मंच पर घोषणा कर दी की इस जगत में ब्रह्म बडा है और माया छोटी है।
यह सुनकर माया क्रोधित हुई ओर उसने भी खुले मंच पर घोषणा कर दी की इस जगत में ब्रह्म बडा नहीं है माया ही बड़ी है। यह सुनकर ब्रह्म रूठ कर जाने लगे कि हे माया तुम ने मेरा अपमान कर दिया है और अब हम दोनो साथ नहीं रह सकते हैं। यह कह कर ब्रह्म एक सुनसान स्थान पर चले गए।
यह यह सब देख कर माया ने अपना रूप परिवर्तन किया ओर ब्रह्म को रिझाने लगीं। ब्रह्म माया के खेल को समझ नहीं पाए ओर मायाजाल में फंस गए। तब माया अपने असली रूप में प्रकट हुईं और बोली हे ब्रह्म अब बताओं हम दोनों में से कौन बडा है तब ब्रह्म ने फिर खुले मंच पर घोषणा करके बताया कि मेरा पहला फैसला गलत था, अब मै समझ गया हूं कि हम दोनों में से कोन बडा है।
ब्रह्म बोले प्राणियों और सृष्टि के सृजन के समय माया की ही प्रधानता होती है इसलिए वह बड़ी हैं लेकिन सृष्टि के अंत में ब्रह्म ही बडा होता है और माया ब्रह्म में विलिन हो जाती है। मैं ब्रह्म रूपी शिव हूं, पुरूष हूं और माया स्त्री रूपी पार्वती है। इसलिए प्रलय काल में मेरी ही आयु बड़ी होती है और सब का अंत मेरे सामने ही हो जाता है। माया जो स्त्री रूपी पार्वती है उसका अंत भी मेरे सामने हो जाता है और वह अमर सुहागन हो जाती है।
ब्रह्म अकेला रह सकता है लेकिन माया ब्रह्म के बिना नहीं रह सकती। इस भावना के ओत प्रोत स्त्रियां अपने जीवन साथी की आयु बढाने के लिए अदृश्य शक्ति, अदृश्य परमात्मा के समक्ष मन्नतो के धागे बांधती है और पूजा, उपासना व व्रत करती है। आस्था और श्रद्धा के ठिकानों पर विश्वास को पाकर मानव आंतरिक सबलता को प्राप्त कर लेता है यह जानते हुए भी कि प्राणी नश्वर है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, विवाह के माध्यम से स्त्री ओर पुरूष जीवन साथी के रूप में रहते हैं। जमीनी स्तर पर स्त्री परिवार की सृजन कर्ता होती है और पुरुष पालन कर्ता होता है। पालन कर्ता की भूमिका लम्बे समय तक होती है। इसलिए स्त्री पालन कर्ता के दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए हर संभव प्रयास करतीं हैं। जमीनी स्तर पर चिकित्सा पद्धति के विज्ञान तथा श्रद्धा और आस्था के स्तर पर अदृश्य शक्ति के परमात्मा में विश्वास रख कर अपने जीवन साथी को दीर्घायु बनाने का प्रयास करती है।
इसलिए हे मानव तू सृजन कर्ता का तहेदिल से शुक्रिया अदा कर और हर हाल में उसका पालन हार बन। झूठे अहंकार और तनातनी को छोड़, जीवन के अमूल्य समय को विवादों में मत गंवा। एक ही घर में रहकर पूर्व और पश्चिम की दो अलग अलग दिशाओं की तरह जीवन गुजर बसर मत कर। क्योंकि विवादों में ज़िन्दगी यूं ही गुज़र जाएगी और मरने के बाद तेरी धन, दौलत, अहंकार, तनाव, लड़ाई, झगड़े सब कडवी यादों के इतिहास बनकर तुझे छोड़ कर चले जाएंगे।
इसलिए हे मानव तू दिल के करवे रूपी पात्र में प्रेम और निर्मल विचारों का शुद्ध जल भर और अपने जीवन साथी को पिला। चौथ तिथि रिक्ता है इस तिथि में अहंकार और तनावों से रिक्त बन तथा करवे मे पंचमी की पूर्णा का रस भर ओर जीवन साथी के रिश्ते को अमर बना।
सौजन्य : ज्योतषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर