सबगुरु न्यूज। तंत्रों का नाम आते दिल और दिमाग़ में सांप जैसी सरसराहट होने लग जाती है। शेर की दहाड़ से भी ज्यादा डर व्यक्ति को सांप की सरसराहट से लगता है। तंत्र, मंत्र, टोने, टोटके, काला जादू और नकारात्मक शक्तियां यह सब उन जहरीले सांपों के समान मानी जाती है जो डसते ही जीवन को भारी परेशानियों में डाल देतीं हैं।
सदियों से चलीं आ रहीं ये मान्यताएं आज भी समाज में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। बाहर कोई भी दिखावटी विरोध कर ले पर उसका आन्तरिक मन भावी हानि की आशंका में डूबा रहता है क्योंकि मानव की जन्मजात मनोवृत्ति में भय समाहित है। इसलिए मानव भले ही आधुनिक विज्ञान का ज्ञाता भी हो तो भी वह सबसे पहले मानव ही होता है और अपनी मनोवृत्ति के अनुसार ही व्यवहार करता है।
तंत्र का तात्पर्य “तकनीक” से होता है जो किसी कार्य को अंजाम देतीं हैं। हमारा पूरा शरीर तंत्रिका संस्थान ही होता है जिसमें समस्त नाडियां और अंग अपनी अपनी तकनीक के माध्यम से ही कार्य करते हैं और अपने क्रिया को अंजाम देते हैं। यह तंत्र सकारात्मक बन शरीर को स्वस्थ रखता है। यदि शरीर में कोई रोग प्रवेश कर ले तो शरीर का तंत्रिका संस्थान बिगड जाता है और एक नकारात्मक ऊर्जा शरीर पर कब्जा कर उसको रोगी बनाने लग जाती है।
तंत्र शास्त्र की मान्यता होती हैं कि वह शरीर को दूर बैठे बैठे ही रोगग्रस्त बना सकता है, तो किसी के रोग को दूर कर सकता है। व्यापार, उद्योग, धंधा, नौकरी, घर, परिवार व मानसिक स्थिति को खराब कर सकता है तो ठीक भी कर सकता है। यहां तक ही नहीं यदि कोई भी काली शक्ति या नकारात्मक शक्ति यदि किसी को परेशान करती है तो वह इसे दूर कर सकती है। कुल मिलाकर वह हर समस्या का समाधान अपने तंत्रों से कर देता हैं।
समाज का बहुत बड़ा तबका इन सब बातों में भरोसा करने लगता है और तरह तरह की सुनी हुई कहानियों पर व विद्वानों के लिखे तंत्र व धर्म साहित्यों पर विश्वास करने लगता है। सदियों से चलीं आ रही ये तंत्र, मंत्र, टोने, टोटके और नज़र उतारने के तंत्रों की संस्कृति आज भी जीवित है। भले ही विज्ञान इन सब बातों को अंधविश्वास ही माने।
मां अंजनि का पूत
क्षण में कीलो नो खंड का भूत।
नज़र लगने और उतारने के टोटके की संस्कृति आज भी जीवित है और आधुनिक विज्ञान को अंगूठा दिखाती है, भले ही भारी बीमारी के लिए चिकित्सा विज्ञान की शरण में जाएं। बीमारी तक तो स्थिति फिर भी ठीक है लेकिन जब व्यक्ति कई समस्याओं का एकदम शिकार हो जाता है और अचानक कई घटनाक्रम घटने लग जाते हैं तब व्यक्ति का साहस और मनोबल टूटने लग जाता है और कई शक और वहम पाल लेता है। वह तंत्रों की शरण में चला जाता है और कोई इसे कमजोर भाग्य, ग्रहों और हस्त रेखाओं के दोष मान कर अपने आप को सांत्वना देकर हताश हो जाता है।
तंत्रशास्त्र के ग्रन्थों में तंत्रों को मानव कल्याण का हितैषी माना गया है। प्राचीन कहानियां तथा अथर्ववेद, अग्नि पुराण समेत लगभग हर पुराणों में तंत्र शास्त्र की भूरि भूरि प्रशंसा की है। इस धारा में रामायण, महाभारत जैसे धर्म महायुद्धों में भी तंत्र सर्वत्र नजर आता है। मायावी युद्ध से लेकर सुखी और समृद्ध होने के लिए तंत्रों की संस्कृति मिलतीं है लेकिन उसके बाद यह संस्कृति लोप ही हो गई है।
अगर अस्तित्व में रहतीं तो आज ना केवल हमारे देश मे वरन् समूचे विश्व मे धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा वैज्ञानिक या किसी भी क्षेत्रों में कोई भी समस्या नहीं रहती। अगर तंत्र है तो वह ज्योतिष शास्त्र की तरह भविष्यवाणी नहीं करता बल्कि हर समस्या का निदान बिना विवादों के ही कर देता।
तंत्र क्या व्यक्ति विशेष पर ही कार्य करता है किसी सीमा में रह कर ही कार्य करता है या फिर इस विषय के जानकारों का टोटा हो गया बस यही सवाल अब बाकी रह गए हैं। संत जन कहते हैं कि हे मानव भूत, प्रेत, जिंद, राक्षस, कच्चे कलवे और पिशाचों को बैरियों से बरी कर के इस प्रकृति ने उनकी नजरों पर ताला जड दिया है। ये संसार के विचारों की एक बदसूरत व्याधियां है जिसे मानव जिन्दा करता है और एक ऐसा रोग इस जगत को दे देता है कि वह एक बिना हल होने वाला प्रश्न बन कर रह जाता है।
कुछ तो लकीर के फकीर बन इन सब को शमशानो में ढूंढते हैं और जो हकीकत को जानता है वो स्वयं इन विचारों की भूमिकाओ को ग्रहण कर लेता है और मानव पर राज करने के लिए इन सभी व्याधियों की धारणाओं को सर्वत्र फ़ैलाकर सभी को कहानियों के भूतों की तरह परेशान करता है। यहीं विचारो की व्याधियां मानव ओर मानव में भेद करा किसी को निर्बल और किसी को सबल बना देती है।
इसलिए हे मानव तेरी ओरा को किसी नकारात्मक शक्तियों ने घेर लिया है या वह तेरे घर में अनहोनीयां कर रही है और तू इन सब से परेशान हैं या कोई मीटर इसे नाप के बता रहा है तो भी तू आत्म बल और साहस रख, केवल तेरे मनोबल की सकारात्मक ऊर्जा बढा, नकारात्मक शक्तियों का खेल खत्म कर। तंत्रों के मायाजाल की नकारात्मक शक्तियां यदि है तो स्वयं विदा हो जाएंगी अन्यथा ऐसे ही हर समस्या हल हो जाएगी।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर