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Deepavali believed to play gambling - दीपावली पर जुआ खेलना माना जाता है शगुन - Sabguru News
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दीपावली पर जुआ खेलना माना जाता है शगुन

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दीपावली पर जुआ खेलना माना जाता है शगुन
Deepavali believed to play gambling
Deepavali believed to play gambling
Deepavali believed to play gambling

पटना । दीपों के पर्व दीपावली पर जुआ खेलने की परम्परा सदियों से चली आ रही है और इस त्योहार पर लोग जुआ शगुन के रूप में खेलते हैं।

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि दीवाली के दिन जुआ खेलना शुभ होता है। माना जाता है कि दीवाली की रात माता पार्वती ने भगवान शिव के साथ पूरी रात चौसर खेला था। माता पार्वती ने कहा था कि दीवाली की रात ताश खेलने वाले के घर असीम सुख समृद्धि आएगी।

पहले इस खेल को चोरी-छुपे खेला जाता था लेकिन आज-कल यह हाई सोसायटी फैमिली वालों के लिए स्टेटस सिंबल बन गया है, जिसके चलते घर पर ही इसका आयोजन किया जाने लगा है। परिवार के सभी सदस्य माता लक्ष्मी की पूजा के बाद खाना खाकर एक जगह बैठकर जुआ खेलते हैं। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि ताश के खेल के बहाने परिवार के सभी सदस्य साथ बैठकर अपने सुख-दुख बांट लेते हैं।

एक सर्वेक्षण के अनुसार देश के लगभग 45 प्रतिशत लोग दीपावली की रात जुआ खेलते हैं। इनमें 35 प्रतिशत लोग ही शगुन के तौर पर जुआ खेलते हैं लेकिन 10 प्रतिशत लोग ऐसे होते हैं, जो पक्के जुआरी होते हैं और किसी भी मौके पर जुआ खेलने से परहेज नहीं करते हैं।

सर्वे से पता चलता है कि अधिकतर जुआरी सबसे पहले दीपावली की रात जुआ खेलने की शुरुआत करते हैं और बाद में उन्हें इसकी लत लग जाती है। ऐसा देखा जाता है कि लोगों ने दीपावली पर शौक या शगुन के रूप में जुआ खेलने की शुरआत की और उसमें हारने पर हारी हुई रकम हासिल करने के लिए आगे भी जुआ खेला और उन्हें इसकी लत लग गई। इसी तरह यदि जुआ खेलने वाला दीपावली को जीतता है और जीतने की लालसा में अगले दिन भी खेलता है तो वह जुए की लत का शिकार हो जाता है।

ऋग्वेदकालीन ग्रंथों में बताया गया है कि आर्य जुए को आमोद-प्रमोद के साधन के रूप में इस्तेमाल करते थे। उस काल में पुरुषों के लिए जुआ खेलना समय बिताने का साधन था। जुए से जुड़े विभिन्न खेलों की अनेक ग्रंथों में चर्चा की गई है। अथर्ववेद के अनुसार जुआ मुख्यतः पासों से खेला जाता था। अथर्ववेद वरुण देव का वर्णन करते हुए कहता है कि वह विश्व को वैसे ही धारण करते हैं जैसे कोई जुआरी पासों से खेलता हो।

महाभारत में उल्लेख है कि दुर्योधन ने पांडवों का राज्य हड़पने के लिए युधिष्ठिर को जुए की साजिश में फंसा दिया था। युधिष्ठिर ने जुए में सब कुछ लुटाने के बाद अपनी पत्नी द्रौपदी को भी दाव पर लगा दिया और उसे हार गए। यह जुआ भीषण संग्राम का कारण बना था।

सार्वजनिक मनोरंजन के लिए भी जुआ खेलने का प्रचलन रहा है। मौर्यकालीन समाज में इस खेल का जिक्र किया गया है। विदेशी राजदूत मेगस्थनीज ने मौर्यकालीन वैभव का जिक्र करते हुए लिखा है कि भारतीय भड़कीले वस्त्र और आभूषणों के प्रेमी हैं तथा वैभव और विलासिता को दिखाने के लिए जुआ खेलते हैं।

वात्स्यायन के कामसूत्र में आरामदायक और आनन्दपूर्ण जीवन का वर्णन करते हुए सामान्य गृहस्थ के शयन कक्ष में जुआ और ताश खेलने की बात कही गई है। इस साहित्य में जुए में ताश को भी शामिल किया गया है। उस समय कौड़ी और पासे से भी जुआ खेला जाता था, जाे चौसर के नाम से प्रसिद्ध है।

बौद्ध ग्रंथ मिलिन्दपन्हो में भी जुआ खेलने का वर्णन है। मौर्यकालीन भारत में भी जुआ खेलने का वर्णन है लेकिन उस समय जो जुआ खेला जाता था, वह राज्य के नियंत्रण में होता था। उस दौर में समृद्ध लोग मनोरंजन के साधन के रूप में जुआ खेलते थे लेकिन बाद में यह विलासिता का साधन बन गया। ईसा बाद दसवीं शताब्दी में भी द्यूतक्रीड़ा का प्रचलन था। इतिहासकारों का मानना है कि इस दौरान शासक वर्ग अपनी पत्नियों के साथ झूले पर बैठकर शराब पीते हुए पासों से जुआ खेला करते थे।