सबगुरु न्यूज। अपने आगोश में समेटती हुई ठंड अब भारी गर्जना करने लग गई हैं और गर्मी को बता रही हैं कि हे गर्मी तू अपना करिश्मा दिखाने के लिए जिस शोर शराबे के साथ आई थी।
अपने करिश्मे दिखा तूने अपने अहंकार वश असंख्य लोगों को दाने पानी के लिए भी मोहताज कर डाला था और अपने क्रोध से सबको जिन्दा जला जला कर राख बना डाला था। उस राख़ को आज मैंने ठंडा कर डाला और वही राख आज बर्फ के अंगारे बन कर दुनिया को अपनी दास्तां सुनाते हुए कह रहे हैं ऐ ठंड तुमने कमाल कर डाला। हमें और कहीं नहीं तो क्या कम से कम रेनबसेरो में ठहरा डाला।
वो गर्मी ना तो ठंडे पानी पिला सकी और ना ही हमारे सिर छुपाने के लिए झोपड़ियों को बचा सकी। इतना ही नहीं हमारेे पैरों की जमीन को गर्म कर हमे खडा रहने के लिए भी मोहताज कर डाला।
यह कहते कहते ठंड ने हंसी का ठहाका लगाया और कहने लगी अरे ठहर, अभी तो मैंने तेरी विदाई का तिलक ही लगाया है और तुझे विदाई की गाड़ी में बैठाने का शंखनाद ही मैंने किया ही है। अभी गाड़ी की रफ़्तार तो बढ़ना शेष है। थोड़ा ओर इंतजार कर फिर देख तेरे माहौल को मैं बर्फ से ढंक दूंगी और बची हुई गरमी को बर्फ में बदल दूंगी। तूझे फिर समझ में आ जाएगा कि सर्दी की भी भारी हैसीयत होतीं हैं। मैं बालक बन कर ही निकलती हूं पर मुकाबले के समय जवान बनकर मैं सब को ठंडा कर देती हूं। हां, आने वाले हर दिन तूझे मेरी कहानी से रूबरू करवा देंगे।
मौसम और माहौल की शुरूआत बंसत ऋतु करती है, लगता है कि अब माहौल में सुन्दर और अच्छी शुरुआत हो जाएगी। इसी खुशी में मदमस्त होकर मानव सुखी और समृद्ध होने के सपने देखने लग जाता है लेकिन ज्यूं ही ऋतु अपनी करवट बदलती है तो गरमी अपना प्रमाण देने लग जाती है। बंसत ऋतु का सुन्दर और अच्छा माहौल झुलसने लग जाता है। वो गर्मी अपने अहंकार में सबको त्राहि त्राहि करवाने लग जाती है। मानव इस ऋतु से बचने के लिए भागने लगता है तो वर्षा ऋतु उसे बहा कर ले जाती है मानो ये शनि ग्रह की साढ़ेसाती का अंतिम दौर हैं जो अपने साथ ले जा रहा है माया से दूर ओर बहुत दूर।
संतजन कहते हैं कि हे मानव यह बालक बनकर घुसी सर्द ऋतु अपने परवान चढ़ने लगी है और जवान बनकर मुकाबले के लिए ललकार रही है और कह रही है कि हे मानव, तू संभल कर रहना और गर्म खाता पीता रहना ताकि तू मुझे संभाल सके अन्यथा तूझे मै ठंड पिला दूंगी ओर मेरे नशे का असर तुझे दिखला दूंगी।
इसलिए हे मानव, यह पौष मास की ठंड है और इसकी रातें बेहद ठंडी होती है जो शरीर पर तीखा वार करती है। इस जानलेवा ठंड से अपनी रक्षा कर और यथासंभव उन गरीब और बेसहारे जिन्दगी को भी ठंड से बचाने के लिए प्रयास कर। यही समय की पुकार है और यही मानव धर्म है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर