नई दिल्ली। तीन तलाक पर तीन साल की कैद एवं जुर्माने के प्रावधान वाला मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2018 गुरुवार को लोकसभा में मतविभाजन के जरिये पारित हो गया।
कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों के बहिर्गमन के बीच विधेयक के पक्ष में 245 और इसके विरोध में 11 मत पड़े। इससे पहले पिछले साल मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 लोकसभा से पारित हुआ था, लेकिन अभी वह राज्यसभा में लंबित है। उसे पारित कराने में हो रही देरी के कारण सरकार इस साल सितम्बर में तीन तलाक को गैर-कानूनी बनाने के लिए अध्यादेश लेकर आई थी और नया विधेयक अध्यादेश की जगह लेगा।
विधेयक में यह प्रावधान है कि सिर्फ पीड़ित महिला, उससे खून का रिश्ता रखने वाले तथा विवाद से बने उसके रिश्तेदार ही प्राथमिकी दर्ज करा सकेंगे। साथ ही पीड़िता का पक्ष सुनने के बाद मजिस्ट्रेट को सुलह कराने और आरोपी को जमानत देने का भी अधिकार होगा, हालांकि थाने से जमानत की अनुमति नहीं होगी।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक पर करीब साढे चार घंटे चली चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि यह मुस्लिम महिलाओं को सम्मान और बराबरी का हक देता है। इसमें पीड़ित महिला प्राथमिकी दर्ज कराएगी और यदि वह नहीं करा पाई तो उससे खून का रिश्ता रखने वाले संबंधी प्राथमिकी दर्ज करा सकेंगे। आरोपी को तीन साल की कैद और जुर्माने का इसमें प्रावधान है।
एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवेसी, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन तथा बीजू जनता दल के भर्तृहरि महताब ने विधेयक में 13 संशोधन पेश किए, लेकिन सदन ने सभी को अस्वीकार कर दिया। इनमें विपक्षी दलों के सदस्यों ने 11 संशोधनों पर मतविभाजन भी मांगा लेकिन सभी संशोधन भारी अंतर से गिर गए।
इससे पहले कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे तथा अन्नाद्रमुक के पी.वेणुगोपाल ने विधेयक का विरोध किया और कहा कि इसे संयुक्त प्रवर समिति को भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि उनकी बात नहीं मानी जाती है तो वे सदन से बहिर्गमन करेंगे। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी तथा अन्नाद्रमुक ने सदन से बहिर्गमन किया।
प्रसाद ने कहा कि विधेयक में प्रावधान किया गया है कि महिला के मामले की सुनवाई पुलिस नहीं करेगी, बल्कि मजिस्ट्रेट के समक्ष होगी। मजिस्ट्रेट ही इस मामले में न्याय देगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि मजिस्ट्रेट जब तीन तलाक के किसी मामले की सुनवाई कर रहा होगा तो उसी समय यह विवाद निपट जाएगा और दोनों पक्ष सुलह के लिए राजी हो जाएंगे।
उन्होंने कहा कि विधेयक को लाने में राजनीति के विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुये कहा कि इसके जरिये मुस्लिम महिलाओं को सम्मान दिया गया है और बराबरी के उनके संवैधानिक हक का संरक्षण किया गया है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विधेयक के माघ्यम से किसी समुदाय विशेष को लक्ष्य नहीं बनाया गया है। उनका कहना था कि विधेयक में सभी दलों के सदस्यों से मिले जरूरी सुझावों को शामिल किया गया है।
कानून मंत्री ने जल्दबाजी में विधेयक लाने के विपक्ष के आरोप को गलत बताया और कहा कि यह विधेयक उच्चतम न्यायालय के फैसलेे के आलोक में नहीं लाया गया है बल्कि इसे संसद की संप्रभुता के अनुकूल सदन में पेश किया गया है।
इस संबंध में अध्यादेश लाने संबंंधी जरूरत पर उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष विधेयक लोकसभा में पारित हुआ था, लेकिन इसे राज्यसभा में पारित नहीं किया जा सका। इस दौरान कई महिलाओं के साथ अन्याय होता रहा और सदन इस तरह के अन्याय को नहीं देख सकता, इसलिए यह विधेयक लाया गया। उन्होंने कहा कि लोकसभा से पहले पारित किए गए विधेयक को राज्यसभा से वापस लिया जाएगा।