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जाता हुआ कल, कुछ बयां कर गया

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जाता हुआ कल, कुछ बयां कर गया

सबगुरु न्यूज। दिन, महिने, साल इकट्ठे होने लगे और वे जाने से पहले बहुत कुछ इस दुनिया को समझा गए तथा अपने अवशेष छोड़ यह बता गए कि हे मानव, अब संभल जा ओर अपने आप को भाग्य के नहीं बल्कि कर्म के भरोसे रहकर कर्मवीर बन। अब सतयुगी और कलयुगी कहानियों का दोर खत्म हो चुका है, संस्कृति ने भी अपनी चादर बदल डाली है। बदलते युग ने इन सब को बहुत पीछे छोड़ दिया है।

समय कहने लगा कि अब मैं वो नहीं जिससे पीडित हो कर तुम टूट जाओ या खुश हो कर रंग रस में खो जाओ। मेरे युग में भावनाओं का खेल नहीं होता और ना ही मैं इसमें बहता हूं, ना ही मेरे राज में सच ओर झूठ जैसे शब्द अपने कोई मायने रखते हैं। इन सब से परे हट गया हूं मैं और आने वाले दिन, महिने, साल केवल ओर केवल मेरे ही पद चिन्हों पर गुजर बसर करेंगे।

संस्कृति को लूटते हुए अपार लुटेरों को देखकर मै दंग रह गया कि इन छद्म वेषधारियों ने यह क्या कर डाला ओर अपार अबलाओं, बचपनो तथा बेसहारो को भी रौंद डाला। ना दर्द था इस जमाने के बलधारियों में जिन्होंने अपने बल को क़ायम रखने के लिए दुर्बलों को ही मिटा डाला।

धर्म और समाज को तो बेहाल बनाकर उसके मायनों को ही बदल डाला। कौन क्या था यह सब मैदान में बता डाला। दैव, दानव भी सोच में पड गए और कहने लगे वाह रे मानव तूने यह क्या कर डाला। हमें भी बहुत पीछे छोड़ डाला।

जमीन भी रो पडी अपने अपने को ही बंटता हुआ देखकर और उपज भी बिलख पडी अपना बेहाल देखकर। जमीन बोली मुझ पर मोहताज रहने वाले तूने तो गज़ब ही कर डाला, आखिर मुझे भी मोहताज बना डाला। आकाश भी तडपने लगा सब के हाल देखकर और उसने भी कहर ढहाना शुरू कर दिया जीव जगत के यह हाल देखकर। राज रह गई सब नीतियां जो कुछ कर गुजरने के लिए बनी थी। कारण राज सारा खुल गया, भेद सारे खुल गए जब सागर में आकर बाहर के पक्षी मछलियों को चुन चुन कर खाने गए।

अतिथि बनकर वह मालिक बनने लगा और असली मालिक झोला लेकर निकल पडा। इसलिए की अतिथि के सत्कार में कोई कमी ना रह जाए। मालिक भटकता रहा अतिथि मौज उड़ाता रहा। एक संस्कृति बचाने के लिए तो दूसरा संस्कृति बदलने के लिए अपना कारवां बढाने लगा। कोई कामयाबी ना मिली दोनों को तो संस्कृति मौन हो गई और कहने लगी कि अब मैं किस्से कहानियों में जा चुकी हूं और हे मानव अब तुम आगे बढ जाओ और कर्मवीर बनो, अब नाम बदल चुका है और तुम कल के ही साथी बनों।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, हर बीता कल जाने से पहले अपने अवशेष छोड़ जाता है और उन इतिहास को लिख जाता है जिसे भावी पीढ़ी देखती है और कर्म की भूमि पर अपने को खडा रखने की कवायद करती है। इस कवायद में बीते हुए लम्हों की तस्वीर उसे आने वाले कल में उसी अनुरूप व्यवहार करना सीखा देती है।

इसलिए हे मानव, तू आज की सच्ची तस्वीर देख और भावुकता को भूला दे, उसी अनुरूप व्यवहार कर। मानव द्वारा समय के बनाए हुए अंतिम व नए बिन्दु तो सदियों से चले आ रहे हैं और अपना हर बार रूप रंग बदलते जा रहे हैं। इस औरलिए आज के इतिहास को देख और कल का नया कर्म वीर बन कर सफल बन।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर