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एकता पर छाता है जब मनभेद का कोहरा

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एकता पर छाता है जब मनभेद का कोहरा

सबगुरु न्यूज। मतभेद अलग अलग मार्गों से अपने लक्ष्यों की ओर बढता है ऐसे में जिसका मार्ग जितना सरल होता है विजयी श्री उसी को मिलती है। एक ही समूह में जब मतभेद बढ जाते हैं तो समूह टूट जाता है और उसके कई अग्रणी अलग अलग बंटकर अपनी स्वतंत्र पहचान बना लेते हैं और बडा समूह टुकडों में तब्दील हो जाता है। यहां एकता नदी के दो किनारों की तरह अलग अलग होती हैं जो एक दूसरे को देखते रहते हैं पर मिलते नहीं है।

मनभेद उस असाध्य रोग की तरह होता है जो शरीर से अलग नहीं होता है और शनैः शनैः उस सम्पूर्ण शरीर को मृत्यु की ओर ले जाता है। मनभेद में एकता दिखाई तो देती लेकिन उस पर स्वार्थों घना कोहरा का छाया रहता है, यही कोहरा सूरज की रोशनी को बाहर निकलने नहीं देता और अथक प्रयास के बाद भी सूर्य शाम की ओर बढ तो जाता है। एकता का संध्या काल हो जाता है और एकता रात्रि की चादर ओढ़ लेती है जिसे ढूंढने के लिए रात्रि के चिराग कामयाब नहीं होते हैं।

एकता पर जब मनभेद का कोहरा छा जाता है तो लक्ष्य साधने के मार्ग दिशा विहिन हो जाते हैं और लक्ष्य पंगु बनकर खडा हुआ इंतजार करता रहता है कि कौन मेरे झंडे लेकर आगे बढे।

मनभेद के यह कोहरे दुश्मनों की राह आसान कर देते हैं। खंडित और मतभेद से टूटा हुआ समूह अलग अलग जगह अपने विजयी अभियान में सफल हो जाते हैं। मतभेद भुला कर वे अपने स्वार्थों के लिए फिर एक हो जाते हैं और मतभेद आखिर जीत जाता है और मनभेद एक साथ रह कर भी हार जाता है।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, दिखावटी एकता मनभेद की खाई को पाटने में समर्थ नहीं होती क्योंकि उस पर स्वार्थों का घना कोहरा छाया रहता है और वह सूरज की रोशनी को ढंके ही रहता है। घने कोहरे के बीच सूरज भी धुंधला सा दिखाई देता है जैसे किसी राज्य में राजा और मंत्री भले ही एक साथ राजदरबार में बैठे हैं और उन सब पर मनभेद का कोहरा छाया हुआ है। वे सब नारे तो राजा की जय जयकार के लगा रहे हैं और काम अपने मन के अनुसार ही कर रहे हैं।

इसलिए हे मानव तू त्याग कर और घर में मनभेद का कोहरा छांटकर उस सूरज को रोशन होने दे। भले ही ठंड बढ जाए लेकिन मन पर छाया कोहरा छंट जाएगा और एकता बढ जाएगी तथा लक्ष्य का भेदन आसान हो जाएगा।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर