नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी महसूस कर रही है कि लाेकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे 2019 के आम चुनावों के बाद ‘बड़े नेता’ के रूप में उभर सकते हैं और इसलिए पार्टी उन्हें कर्नाटक में गुलबर्गा संसदीय सीट पर कड़े मुकाबले में फंसाने की योजना बना रही है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार भाजपा ने चुनाव पश्चात की संभावनाओं को देखते हुए खड़गे के विरुद्ध कर्नाटक की पूर्व मुख्य सचिव के रत्नप्रभा को उम्मीदवार बनाने की योजना बनाई है।
पार्टी की कर्नाटक प्रदेश इकाई ने एक संक्षिप्त सूची तैयार की है और उसमें रत्नप्रभा का नाम जोड़ा है। रत्नप्रभा की उनके सेवाकाल में कर्नाटक में लोकप्रियता वैसी ही थी जैसी किसी फिल्मी सितारे की होती है। भाजपा की राष्ट्रीय परिषद के अधिवेशन में शामिल होने आए एक नेता ने कहा कि रत्नप्रभा अपने काम की वजह से राज्य में बहुत लाेकप्रिय रहीं हैं।
1981 बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी ने बीदर जिले में तैनाती के दौरान अपने काम की छाप छोड़ी। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि जब उनके कार्यालय के सहयोगियों एवं प्रशंसकों ने अपने नवजात बच्चों के नाम रत्नप्रभा के नाम पर रखे।
कांग्रेस का गढ़ माने वाले गुलबर्गा की संसदीय सीट पर भाजपा 1998 में विजयी रही थी। उस समय भाजपा के बसवाराज पाटिल सेदाम ने जनता दल के कामरुल इस्लाम को पराजित किया था। खड़गे 2009 और 2014 में इस सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। वर्ष 2009 से पहले गुलबर्गा की सीट सामान्य सीट हुआ करती थी लेकिन पुनर्परिसीमन के बाद इस सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया।
सूत्राें का कहना है कि कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं के एक वर्ग ने 2019 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस की राजनीति में खड़गे को बड़ी भूमिका दिए जाने के विचार पर गहन मंथन किया है। दलित समुदाय से आने वाले और बेदाग छवि के खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के विश्वास पात्र हैं और इसका परिचय तब भी मिला जब पार्टी के सदन में नेता होने के बावजूद उन्हें लोकलेखा समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
सूत्रों के अनुसार भाजपा को महसूस हो रहा है कि कांग्रेस की रणनीति में 2019 के आम चुनावों के बाद खड़गे को कांग्रेस में ‘महत्वपूर्ण’ भूमिका मिल सकती है और वह कांग्रेस के ‘नए मनमोहन सिंह’ हो सकते हैं।
हालांकि सूत्रों ने यह भी कहा कि कांग्रेस में पूर्व में महत्वाकांक्षी नेताओं के अनुभव को देखते हुए खड़गे के लिए यह परीक्षा की घड़ी हो सकती है। कांग्रेस में शरद पवार एवं प्रणव मुखर्जी एक समय ऊंचाई हासिल करने के बाद नेतृत्व से अलग थलग पड़ने के भी उदाहरण मौजूद हैं।