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धरती हिलने लगी, सिंहासन कांपने लगे

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धरती हिलने लगी, सिंहासन कांपने लगे

सबगुरु न्यूज। धरती हिलने का ज्ञान जब नहीं था तो ऐसा माना जाता था कि पृथ्वी बड़ी विपदा में है और भगवान अपने ध्यान में हैं, ऐसे में भगवान को को जगाने के लिए उनका सिंहासन कांपने लग जाता था और भगवान को यह समझाने का प्रयास करता था कि पृथ्वी पर कोई भारी विपदा आ गई हैं और उसे तुरंत मदद की जरूरत है।

शनैः शनैः जब ज्ञान ने अपने हस्ताक्षर किए तो समझ में आ गया है कि अपनी आंतरिक संरचना के किसी भारी कमी पैदा होने के कारण कारण धरती हिल रही है और इस धरती के हिलने को भूकंप कहते हैं, जो वेग और समय अवधि तथा अपने विस्तार के अनुसार धरती पर आसीन सजीव और निर्जीव सभी को तहस-नहस कर देता है।

सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक आदि किसी भी क्षेत्र में लगा व्यक्ति जब अपने कार्यक्षेत्र की जमीन तैयार करने लगता है तो उन क्षेत्रों की आतंरिक संरचना में कमी या दोष के कारण वह सफल नहीं हो पाता है, उसके कार्यक्षेत्र की जमीन हिलने लग जाती है और उस की भूमिका कांपने लग जाती है।

इस हिलने या कंपन होने से व्यक्ति अपनी कुशलता से जो भी बचा सकता है उसे बचाने के लिए हर संभव उन प्रयासों में लग जाता है। ऐसी स्थिति में वह केवल जीतने के लिए नहीं वरन् अपनी भूमिका को भी बचाने के लिए युद्ध के मैदान में भारी गरजना के साथ शंखनाद कर देता है।

राजनीति और राज़ सिंहासन के क्षेत्रों में यह युद्ध ओर भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि राजनीति की जमीन पर माहौल के भूकंप बहुत ज्यादा आते हैं और कुछ ऐसी तीव्र गति से आते हैं कि देखते देखते सब कुछ बदल जाता है तथा स्थितियों की जमीन अनिश्चितता के भंवर में फंस जातीं हैं। बदली हुई परिस्थितियों का उस जमीन पर कब्जा हो जाता है।

परिस्थितियां उस जमीन पर राज सिंहासन के लिए महल बनाकर अपना राज़ मुकुट पहनकर राज करने लग जाती हैं। स्थितियों और परिस्थितियों का यह संघर्ष फिर रूकता नहीं है, राज सिंहासन के युद्ध फिर केवल अपनी भूमिका को बचाने के लिए ही लडे जाते हैं और बाहरी शक्तियां उस युद्ध को विराम देने के लिए सामने प्रकट हो जाती हैं।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, पौराणिक कथाओं में एक कथा थी। एक बार नेमिषारण्य वन में नर और नारायण का भक्त प्रह्लाद के साथ युद्ध छिड़ गया और दोनों के सामने ही अपने अस्तित्व को बचाने का संकट पैदा हो गया। हर अस्त्र, शस्त्र, नीति, कूटनीति, शब्द भेदी बाण चलने लगे। सारे देव समूह चिन्तित हो कर यह युद्ध देखने लगे।

कई वर्षों के बाद भी कोई नहीं हारा। यह देखकर श्री भगवान का सिंहासन हिलने लगा और धरती कांपने लगीं। भगवान ने युद्ध बंद करवा दिया और दोनों में से कोई भी जीत नहीं पाए। नर और नारायण वापस तपस्या में लग गए और भक्त प्रह्लाद अपने रास्ते चले गए, तीसरी शक्ति के हस्तक्षेप से नेमिषारण्य विवाद मुक्त हुआ।

इसलिए हे मानव, शरीर रूपी धरती पर मन इच्छाओं की पूर्ति के लिए उछलकूद का भूकंप ले आता है और इससे शरीर रूपी धरती कांपने लगती है और शरीर परेशान होकर सबसे पहले प्राण वायु रूपी ऊर्जा को बचाने का प्रयास करता है ताकि शरीर का अस्तित्व बना रहे। इसलिए हे मानव, मन की हर इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती इसलिए मन की उछाल कूद को नियंत्रण में रख तथा शरीर का अस्तित्व बना रहे।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर